Home धर्म/ज्योतिष शिंगणापुर में खुले आसमान के नीचे विराजमान हैं शनिदेव….

शिंगणापुर में खुले आसमान के नीचे विराजमान हैं शनिदेव….

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देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं. लेकिन उनमें सर्वाधिक प्रमुख है महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर.

विश्व प्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहां स्थित शनिदेव की प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है.

शिंगणापुर के इस शनि मंदिर में लोहा एवं पत्थर युक्त दिखाई देनेवाली, काले वर्ण की शनिदेव की प्रतिमा लगभग 5 फीट 9 इंच लंबी और एक फीट 6 इंच चौड़ी है जो धूप, ठंड तथा बरसात में दिनरात खुले में है.

श्री शनि शिंगणापुर के बारे में यह प्रचलित है कि यहां, ‘देवता हैं, लेकिन मंदिर नहीं. घर है, लेकिन दरवाजा नहीं. वृक्ष है, पर छाया नहीं. भय है, पर शत्रु नहीं.’

श्री शिंगणापुर की ख्याति इतनी है कि आज यहां प्रतिदिन 13 हजार से ज्यादा लोग दर्शन करने आते हैं और शनि अमावस, शनि जयंती को लगने वाले मेला में करीब 10 लाख लोग आते हैं.

शिंगनापुर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां घरों में किवाड़ नहीं होते.

शनि देव के लिए पांच सूत्र का पालन करने को कहा जाता है ये पांच सूत्र हैं- जीवन के हर्षित पल में शनि की प्रशंसा करनी चाहिए. आपत् काल में भी शनि का दर्शन करना चाहिए, मुश्किल समय में शनिदेव की पूजा करनी चाहिए. जीवन के हर पल शनिदेव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना चाहिए.

शिंगणापुर में हर साल शनि जयंती बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन शनिदेव का जन्मदिवस मनाया जाता है. वैशाख वद्य चतुर्दशी- अमावस के दिन आमतौर पर शनि जयंती आता है.

इस दिन शिंगणापुर में शनि देव की प्रतिमा निल वर्ण की दिखती है. 5 दिनों तक यज्ञ और सात दिन तक भजन-प्रवचन कीर्तन का सप्ताह कड़ी धूप में मनाया जाता है.

इस दिन यहां ग्यारह ब्राह्मण पंडितों से लघुरुद्राभिषेक समपन्न होता है. यह कुल 12 घंटे तक चलता है. अंत में महापूजा से उत्सव का समापन होता है.

शुरुआत में इसी दिन मूर्ति को पंचामृत, तेल तथा पड़ौस के कुंआ के पानी और गंगाजल से नहाया जाता है. इस कुंए का पानी केवल मूर्ति सेवा के लिए ही किया जाता है. स्नान के बाद मूर्ति पर नौरत्न हार जो सोना, हीरे से रत्नजड़ित है, उसे चढ़ाया जाता है.

क्या है शनि देव का महत्व
सूर्य पुत्र शनि देव अति शक्तिशाली माने जाते हैं और इनका इंसान के जीवन में अद्भुत महत्व है. शनि देव मृत्युलोक के ऐसे स्वामी हैं, जो व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों के आधार पर सजा देकर उन्हें सुधरने के लिए प्रेरित करते हैं. आमतौर पर यह धारणा है कि शनि देव मनुष्यों के शत्रु हैं. यह भी मान्यता है कि क्लेश, दुःख, पीड़ा, व्यथा, व्यसन, पराभव आदि शनि की साढ़ेसाती के कारण पैदा होता है.

लेकिन, सच्चाई यह भी है कि शनि देव उन्हीं को दंडित करते हैं जो बुरा करते हैं. अर्थात, जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा. उनके नियमों के अनुसार अगर हमने कुछ स्वार्थवश गलत किया है तो वह उसका फल फौरन देता है. विद्वानों के मतानुसार शनि मोक्ष प्रदाता ग्रह है और शनि ही शुभ ग्रहों से कहीं अधिक अच्छा फल देता है.

 शनिदेव के प्रति लोगों में जो डर है उसी के कारण वो दुर्व्यवहार करने से बचते भी हैं. सच्चाई तो यह है कि अगर हम कोई दुर्व्यवहार ना करें तो शनि देव हमारे मित्र हैं.

ऐसी मान्यता है कि चोरी, डकैती, व्यभिचार, परस्त्रीगमन, दुर्व्यसन तथा झूठ से जीवनयापन नहीं करना चाहिए. यदि कोई जातक झूठे रास्ते पर चला गया है तो शनि उसे तकलीफ देता है. अन्यथा परम संतुष्ट होकर पहले से अधिक संपत्ति, यश, कीर्ति, वैभव प्रदान करता है.

क्या है शनि की साढ़ेसाती
लोगों में शनि की साढ़ेसाती का बहुत खौफ होता है. साढ़ेसाती यानी सात वर्ष का कालावधि. शनि सभी द्वादश (बारह) राशि घूमने के लिए तीस साल का समय लेता है. यानी एक राशि में शनि ढाई वर्ष रहता है. जब शनि जन्म राशि के बारहवें (जन्मराशि में से द्वितीया में भ्रमण करता है) तब प्रस्तुत परिपूर्ण काल साढ़ेसाती का माना जाता है.

शनि एक राशि में ढाई वर्ष होता है, इस प्रकार तीन राशि में शनि के कुल निवास साढ़ेसाती कहते हैं. यानी ये साढ़ेसात वर्ष काफी तकलीफ, आफत और मुसीबतों का समय होता है. किवदंती के अनुसार वीर राजा विक्रमादित्य भी शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव में आये थे, और तभी उनका राजपाठ सब छिन गया था.

शनि महामंत्र
जिस राशि में साढ़ेसाती लगती है उस राशि के जातक को शनि महामंत्र के 23 हजार मंत्रों को साढ़ेसात वर्षों के भीतर करना अनिवार्य है. शनि महामंत्र के जाप 23 दिनों के अंदर पूरा करना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि जातक को शनि महामंत्र जाप एक ही बैठक में नित्य एक ही स्थान पर पूरा करना चाहिए.

महामंत्र हैः
ऊं निलांजन समाभासम्। रविपुत्रम यमाग्रजम्।।
छाया मार्तंड सम्भूतम। तम् नमामि शनैश्चरम्।।

शिंगणापुर के आसपास क्या देखें

शिरडी के साईं बाबा
त्र्यंबकेश्वर
नासिक

कैसे पहुंचे शनि शिंगणापुर

सड़क मार्ग
औरंगाबाद-अहमदनगर राजमार्ग संख्या 60 पर घोड़ेगांव में उतरकर वहां से 5 किलोमीटर पर शनि शिंगणापुर या मनमाड-अहमदनगर राज्यमार्ग संख्या 10 पर राहुरी उतरकर वहां से 32 किलोमीटर पर स्थित शिंगणापुर के लिए बस या शटल सेवा ले सकते हैं.

रेल मार्ग
भारत के किसी भी कोने से यहां आने के लिए रेलवे सेवा का उपयोग भी किया जा सकता है. जिसके लिए श्रद्धालुओं को अहमदनगर, राहुरी, श्रीरामपुर (बेलापुर) उतरकर एस.टी. बस, जीप, टैक्सी सेवा से शिंगणापुर पहुंच सकते हैं.

हवाई मार्ग
हवाई मार्ग से यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु मुंबई, औरंगाबाद या पुणे आकर आगे के लिए बस या टैक्सी सेवा ले सकते हैं.

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