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अंधविश्वास, ढोंग और बाबा

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भारत में चारों तरफ उपदेश, प्रवचन, स्वामी और कई प्रकार के बाबे घूमते नजर आते हैं। बहुत कम सच्चे धर्म वेदांत की बात करते हैं। कोई बीज मंत्र से कैंसर का उपचार करने का दावा कर रहा है, कोई निर्मल बाबा ऊटपटांग बातों में उलझा रहा है। हरियाणा में संत रामपाल क्या गुल खिलाता रहा है। समझ नहीं आता हजारों-लाखों की भीड़ इन बाबाओं के पीछे क्यों घूमती है। विश्व में और कोई देश नहीं है जहां इतने प्रवचन, कुंभ, महाकुंभ, जगराते और न जाने धर्म पर कितने कार्यक्रम होते हैं, परन्तु इस सबके बावजूद भारत में भयंकर गरीबी है और भारत दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाता है। धर्म के नाम पर होने वाले इतने सारे कार्यक्रम मनुष्य के मन को निर्मल, पवित्र और ईमानदार क्यों नहीं बनाते?
एक दिन गंगा स्नान करके अधिकतर लोग सोचते हैं कि उनके 364 दिनों के सारे पाप धुल गए और उसके बाद फिर से जिन्दगी उसी रास्ते पर चलने लग पड़ती है। वास्तव में अधिकतर लोग पाखंडी हो गए। कथनी और करनी में अंतर हो गया, दिखावा और नाटक बहुत हो गया।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारा समाज धार्मिक ठोंग पाखंड और अंधविश्वास की बेड़ियों में लोभी और गुमराह मुल्लाओं , पंडितों ,भगवानो द्वारा जकड़ा हुआ समाज है |चमत्कारी बाबाओं और भगवानो द्वारा महिलाओं के शोषण की बातें हमेशा से प्रकाश में आती रही हैं और धन तो इनके पास दान का इतना आता है कि जिसे यह खुद भी नहीं गिन सकते | इसके दोषी केवल यह बाबा ,मुल्ला या भगवान् नहीं बल्कि हमारा यह भटका हुआ समाज है जो किरदार की जगह चमत्कारों से भगवान् को पहचानने की गलती किया करता है| सबसे पहले तो हर जागरूक और पढ़े लिखे इंसान को ऐसे ढोंगी और पाखंडियों के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए और पूरे विश्व में जो धर्म के नाम से अफवाहों, फरेब और अधर्म के सहारे बेगुनाहों का नरसंहार हो रहा है उसे रोकने में सहयोग करना चाहिए | जो काम समाज में नफरत फैलाए वो कभी धर्म नहीं हो सकता |आप कह सकते हैं की जिस बात का कोई सम्बन्ध धर्म से ना हो उसी को ढोंग और पाखंड कहते हैं और अपने फायदे के लिए धर्म की आड़ में बनाए कानून को कुरीति कहते हैं |

परंतु यह कैसी बिडम्बना है कि एक तरफ तो हम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली खोजों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। मगर दूसरी तरफ कुरीतियों, मिथकों, रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं पाखंडों ने भी हमारे जीवन और समाज में जगह बनाए हुए हैं। हमारे समाज की शिक्षित व अशिक्षित दोनों ही वर्गों की बहुसंख्य आबादी निर्मूल एवं रूढ़िगत मान्यताओं की कट्टर समर्थक है। आज का प्रत्येक शिक्षित मनुष्य वैज्ञानिक खोजों को जानना, समझना चाहता है। वह प्रतिदिन टीवी, समाचार पत्रों एवं जनसंचार के अन्य माध्यमों से नई खबरों को जानने का प्रयास करता है। तो दूसरी तरफ यही शिक्षित लोग कुरीतियों, मिथकों, रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं पाखंडों के भी शिकार बन जाते हैं। यहाँ तक कई वैज्ञानिक भी अंधविश्वास एवं कुरीतियों के शिकार बन जाते हैं ; जो चकित करता है।
सबसे पहले तो हर जागरूक और पढ़े लिखे इंसान को ऐसे ढोंगी और पाखंडियों के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए और पूरे विश्व में जो धर्म के नाम से अफवाहों, फरेब और अधर्म के सहारे बेगुनाहों का नरसंहार हो रहा है उसे रोकने में सहयोग करना चाहिए | जो काम समाज में नफरत फैलाए वो कभी धर्म नहीं हो सकता |

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