दिल्ली के करोल बाग के रहने वाले शक्ति कपूर (उनका असली नाम सुनील कपूर था) बचपन से ही मस्तमौला टाइप के रहे हैं, और शैतान भी. उनकी हरकतों की वजह से ही उनको तीन बार स्कूल बदलना पड़ा था. उनके पिता की कनॉट प्लेस में टेलर की दुकान थी और वे चार भाई-बहन थे. पढ़ाई में उनकी कोई दिलचस्पी थी नहीं और वे हमेशा ही बहुत ही खराब नंबरों से पास होते. क्रिकेट के शौकीन शक्ति कपूर ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से थर्ड डिविजन में ग्रेजुएशन किया. उन्होंने अपने पिता के काम में जाने की बजाय कुछ अलग करने के बारे में सोचा. शक्ति मुंबई गए और वहां उन्होंने लंबा संघर्ष किया.
शक्ति कपूर अभी तक लगभग 700 फिल्में कर चुके हैं. उन्होंने शुरुआत जहां बतौर विलेन (रॉकी, कुर्बानी और हीरो जैसी फिल्में की) की, लेकिन समय के साथ उन्होंने कॉमेडी में भी खुद को ढाल लिया. जैसे ‘राजा बाबू’ का नंदू का किरदार आज भी याद है. ‘बाप नंबरी बेटा दस नंबरी’ और ‘अंदाज अपना अपना’ उनकी यादगार फिल्मों में हैं. आज वे 59 साल के हो गए हैं.
सुनील दत्त ने दिया शक्ति नाम
सुनील दत्त बेटे संजय दत्त को लेकर ‘रॉकी’ बना रहे थे, और उन्हें फिल्म के लिए विलेन की तलाश थी. उस समय तक सुनील कपूर नाम का शख्स कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल कर चुका था. तो सुनील दत्त ने कहा कि विलेन के लिए यह नाम नहीं चलेगा, और उन्होंने सुनील को शक्ति बना दिया, और वे इस तरह शक्ति कपूर हो गए.
एक हादसे ने बदली तकदीर
बात 1980 के दशक की है. शक्ति कपूर ने उन दिनों मॉडलिंग और छोटे-मोटे किरदारों के जरिये जो पैसे कमाए उससे एक फियट कार खरीदी. वे गाड़ी चला रहे थे कि एक मर्सिडीज कार उनमें टकराई. शक्ति कपूर कार से उतरे और चिल्लाने लगे लेकिन तभी कार से फिरोज खान उतरे तो उनकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. लोगों की भीड़ के आगे शक्ति कपूर ने उनसे काम मांगना शुरू कर दिया. उस दिन बात आई-गई हो गई लेकिन जब फिरोज कुर्बानी बना रहे थे तो एक दिन स्क्रिप्टराइट के.के. शुक्ला ने शक्ति कपूर को इस बारे में जानकारी दी और कहा कि वे एक शख्स को ढूंढ रहे हैं जिसने उनकी कार में कार दे मारी थी. शक्ति कपूर तुरंत वहां पहुंच गए और ‘कुर्बानी’ से उनके सितारे सातवें आसमान पर पहुंच गए.