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वर्तमान शिक्षा और भविष्य

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आज की शिक्षा एक शहरी, प्रतिस्पर्धी उपभोक्ता समाज के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए उन्मुख है. वर्तमान शिक्षा के द्वारा भारत ने पिछले पांच दशको में अधिक संख्या में काफी वैज्ञानिकों, पेशेवरों और टेक्नोक्रेट का उथपधान किया है जो अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है. आदि शीर्ष वैज्ञानिकों , डॉक्टरों, इंजीनियरों , शोधकर्ताओं , प्रोफेसरों , का पूरा शिक्षा भारत में ही हुआ, विदेश में नहीं. इन विशेषज्ञों और उच्चम स्तर पर पहुंचे हुए लोग, इसी वर्तामन शिक्षा प्रणाली के माध्यम से आये है. तो हम शिक्षा व्यवस्था के सकारात्मक पहलुओं को इंकार नहीं कर सकते है. हम पूरी तरह से हमारे वर्तामन शिक्षा का आलोचना नहीं कर सकते हैं. लेकिन हम वास्तव में एक बेहतर भविष्य को लेकर चिंतित है तो कुछ मुद्दे है जहाँ हमारी तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.
रटना सीखना अभी भी हमारे सिस्टम में विपक्तिया है. छात्रों अभी भी सिर्फ परीक्षा में आँख स्कोर करने के लिए अध्ययन करते हैं या कभी कभी आईआईटी जेईई , अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान या CLAT तरह परीक्षा दरार करने के लिए. एक जमाने पर सिविल सेवाओं और बैंक अधिकारियों का परीक्षा के लिए सामूहिक रूप से तैयार युवाओं आज कल इंजीनियरों बनने के लिए तैयार करते हैं। अगर शैक्षिक उत्कृष्टता के कुछ केन्द्रों है तो उनके प्रत्येक एक के लिए हजारों साधारण स्कूलों और कॉलेजों है. अभ विश्वविद्यालयों भी न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं करते.
नए स्कूलों और कॉलेजों निर्माण करने से हमारे शिक्षा का संकट सुधर नहीं कर सकते. भारत में शिक्षा के लिए माता पिता के जीवन की बचत और उधार के पैसे खर्च करते है. फिर भी मानक शिक्षा नहीं मिलता और उनकी पसंद का रोजगार खोजने के लिए संघर्ष करते है.मन स्तब्ध प्रतिस्पर्धा और रटना सीखना केवल भारतीय छात्रों की रचनात्मकता और मौलिकता को कुचलता नहीं, लेकिन यह प्रतिभाशाली छात्रों को आत्महत्या करने के लिए भी प्रेरित करती है।
हमारी शिक्षा प्रणाली शिक्षण कौशल की ओर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. एक आदमी को मछली दो तो उसे एक दिन खिला सकते हो. लेकिन उसी आदमी को मछली पकड़ना सिखाओगे तो जीवन भर के लिए उसे खिलाओ. रचनात्मकता, मूल सोच , अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए. होशियार लोगों को सिखाने के लिए नियमित करना चाहिए. शिक्षा के लिए बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी बुनियादी सुविधाओं को लेकर आना चाहिए. शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए. शिक्षा निजीकृत – एक आकार सभी को फिट नहीं होती है. तभी वर्तमान शिक्षा का भविष्य बदल सकता है.

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