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आत्मिक शांति का अनुभव कराता है ओरछा….

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राम राजा के दर्शन के साथ राफ्टिंग का एडवेंचर भी
ओरछा : राम है राजा बाकी सब प्रजा

देश भर में भगवान राम की पूजा राजा के रूप में कहीं होती है तो वह मध्‍यप्रदेश का ओरछा है। प्रतिदिन यहाँ चार बार आरती होती है- बालभोग, राजभोग, सायंकाल आरती और शयन (ब्‍यारी) आरती। चारों आरती के समय राजा राम को सशस्‍त्र पुलिस द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। दरअसल देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु तीर्थ-यात्रियों और पर्यटकों के लिये यह क्षण और दृश्‍य किसी कौतूहल से कम नहीं होता। आस्‍था और श्रद्धा से ओत-प्रोत वातावरण में वे जैसे रम जाते हैं।

ओरछा में राजा राम प्राचीन रानी महल में विराजित है, जो अब भव्‍य मंदिर के रूप में विख्‍यात है। मंदिर में भगवान राम, सीता और लक्ष्‍मण के साथ दरबार के रूप में विराजे हैं। सबसे अनूठी बात यह है कि मंदिर अपने निर्धारित समय पर ही खुलता और बंद होता है। यहाँ कोई व्‍ही.आई.पी. नहीं होता। राजा राम के दरबार में सभी एक समान हैं। मंदिर से प्रसादी के साथ मिलने वाला ‘पान का बीड़ा’ एक सुखद अनुभूति का अहसास कराता है। तभी गोस्‍वामी बालमुकुंद ने लिखा है ‘नदी बेतवा तीर पर बसा ओरछा धाम – कष्‍ट मिटे संकट टले मन पावे विश्राम।’

हर साल मार्गशीर्ष (अगहन) माह में राम राजा की विवाह पंचमी उत्‍सव के रूप में मनाई जाती है। इस मौके पर भगवान राम की बारात निकलती है। बारात ओरछा नगर और जानकी मंदिर तक भ्रमण कर वापस मंदिर लौटती है। वैदिक रीति से विवाह संस्‍कार और भंडारा होता है। बड़ी संख्‍या में श्रद्धालु और तीर्थ-यात्री इस अवसर के साक्षी बनते हैं। इसी तरह आज भी प्रत्‍येक पुष्‍य नक्षत्र में यहाँ मेला भरता है। ऐसी मान्‍यता है कि पुष्‍य नक्षत्र में ही भगवान राम ओरछा पधारे थे। स्‍मृति स्‍वरूप आज भी एक दिन का मेला भरता है।

यूँ तो बारहों महीने ओरछा में श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्रि तथा रामनवमी पर भारी भीड़ जुटती है। कवि केशव की जयंती भी धूमधाम से मनाई जाती है।

जनश्रुति और किंवदंती की मानें तो राम राजा को अयोध्‍या से स्‍वयं कुँवर गणेशी बाई ओरछा लेकर आयीं थीं। तब उन्‍हें रानी महल में विराजित किया गया था। राम राजा की इच्‍छा के अनुरूप रूद्रप्रताप ने राम राजा महल निर्माण की शुरूआत 1501 से 1503 के मध्‍य की। भारतीय चन्‍द्र ने 1531 से 1554 के बीच इस महल को एक मंजिल तक बनवाया। कालान्‍तर में राजा मधुकर शाह ने निर्माण को पूरा करवाया। मंदिर का निर्माण इण्‍डो-इस्‍लामिक शैली में किया गया था। राम राजा मंदिर प्रांगण में सावन-भादो पिलर (टॉवरनुमा) बने हुए हैं। इनमें बहुत सारे झरोखे बने हैं। समीप ही हरदौल बैठिका है। हरदौल, बुंदेलखंड अंचल के देवता माने जाते हैं। आज भी विवाह-शादी जैसे मांगलिक आयोजन में सबसे पहले लाला हरदौल के नाम न्‍यौता देने की परम्‍परा कायम है।

हालांकि ओरछा में राम राजा की महिमा और ख्‍याति के आगे बाकी सब गौण हैं। लेकिन यहाँ चतुर्भुज मंदिर, राजा महल, जहाँगीर महल, राय प्रवीण महल और आनंद गार्डन, शीश महल, लक्ष्‍मी मंदिर, सुंदर महल, बेतवा के किनारे स्थित बुंदेलाओं की छत्रियाँ सहित अन्‍य स्‍थल देखने लायक हैं। सैलानियों के लिए आकर्षण के रूप में राजा महल में प्रतिदिन शाम को एक घंटे का साउण्‍ड एण्‍ड लाइट शो (हिन्‍दी-अंग्रेजी) भी बड़ा ही रुचिकर और ओरछा के इतिहास को रोचकता से दर्शाने वाला होता है। मध्‍यप्रदेश पर्यटन द्वारा एडवेंचर के रूप में बेतवा नदी में राफ्टिंग की सहूलियत मुहैया कराई गई है। यह अक्‍टूबर से मार्च माह तक पर्यटन निगम की बेतवा रिट्रीट के समीप से शुरू होती है, जो एक घंटे की रहती है। राफ्टिंग के दौरान हेरिटेज साइट की खूबसूरती दिखाई देती है। इसके अतिरिक्‍त फॉरेस्‍ट ट्रेकिंग भी कराया जाता है।

ओरछा के प्रसिद्ध राजा महल के निर्माण की शुरुआत 16 वीं शताब्‍दी में रूद्रप्रताप बुंदेला ने की थी। उन्‍होंने गढ़ कुल्‍हार से लाकर ओरछा को राजधानी बनाया था। महल में निवास कक्ष, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास मुख्‍य आकर्षण हैं। राजा महल में बुंदेली-कांगड़ा शैली की पेंटिंग मशहूर है। ये पेंटिंग्‍स प्राकृतिक कलर से इस तरह उकेरी गई थी कि आज भी उनकी सुंदरता और आकर्षण में कोई कमी नहीं आई है। महल में रोशनी और हवा के प्रवाह का भी समुचित ध्‍यान रखा गया था,जो तत्‍कालीन समय की वास्‍तु-कला का अनूठा उदाहरण है। राजा महल के प्रांगण में हमारी भेंट कनाडा, थाईलैण्‍ड, इंग्‍लैण्‍ड,जर्मनी, स्‍पेन आदि देशों से आए हुए सैलानियों से हुई जो गाइड द्वारा दी जा रही जानकारी को बड़े चाव से सुन रहे थे। सैलानियों की यह टीम फोटोग्राफी भी कर रही थी।

जहाँगीर महल को मध्‍यप्रदेश पर्यटन द्वारा वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में तैयार किया गया है। यहाँ पिछले सीजन में दो भव्‍य वैवाहिक आयोजन हुए। इनमें तत्‍कालीन समय की स्‍मृ‍तियाँ सजीव हो उठी थी। माना जाता है कि जहाँगीर महल वीरसिंह देव बुंदेला ने 1605 से 1627 के बीच जहाँगीर के सम्‍मान में बनवाया था। महल का आर्किटेक्‍चर हिन्‍दू-मुस्लिम शैली का मिश्रण कहा जा सकता है। पाँच मंजिला भव्‍य महल में लगभग 236 कक्ष हैं, इनमें 100 अण्‍डर ग्राउण्‍ड हैं। महल का विशाल मुख्‍य द्वार आज भी दर्शनीय है। मुख्‍य द्वार पर पत्‍थरों में उत्‍कीर्ण हाथी और यहाँ से पूर्वी ओरछा का सुंदर नजारा देखने लायक होता है। इन हाथियों की संख्‍या भी 27 नक्षत्रों के साथ जुड़ी हैं जो चारों दिशाओं में है। महल के बीचों-बीच प्रांगण में चारों दिशाओं में दरवाजे हैं। बीच में पानी के कुण्‍ड हैं जो उस समय के स्‍वीमिंग पुल का आभास करवाते हैं। यहाँ दुर्लभ-गिद्ध (वल्‍चर) भी पाये जाते हैं।

जहाँगीर महल के मुख्‍य द्वार के नजदीक राय प्रवीण महल है जिसे इन्‍द्रमणी ने बनवाकर नृत्‍यांगना एवं कवियत्री को दिया था। दो मंजिला महल में आनंद गार्डन भी है। उनकी यह उक्ति ‘विनती राय प्रवीण की सुनिये शाही सुजान, झूठी पाथर भजत है, बारी, बेस और श्‍वान’ आज भी लोकप्रिय है। ओरछा के शीशमहल में मध्‍यप्रदेश पर्यटन का होटल है। इसमें 5 कक्ष और 2 सुइट हैं। देशी-विदेशी सैलानी यहाँ रुकना पसंद करते हैं। ओरछा में अन्‍य टूरिस्‍ट गाइड भी हैं लेकिन दिनेश दुबे एवं महिला गाइड प्रेमलता राय टूरिस्‍ट को ओरछा के बारे में विस्‍तार से रुचिकर जानकारी देते हैं।

दरअसल ओरछा में राम राजा के दर्शन के साथ इतिहास, पुरातात्विक प्राचीन महल और छत्रियों के अतिरिक्‍त एडवेंचर के रूप में राफ्टिंग और फारेस्‍ट का लुत्‍फ भी उठाया जा सकता है। छत्रियाँ पंचरतन शैली में बनी हैं। यहाँ के प्राकृतिक दृश्‍य – शांति और सुकून देते हैं। यह जगह प्रदूषण से मुक्‍त है।

आल्‍हा – ऊदल की वीर गाथा आज भी यहाँ सुनाई पड़ती है। मशहूर शास्‍त्रीय संगीत गायिका असगरी बाई टीकमगढ़ की रहवासी थी। उत्‍तरप्रदेश का झाँसी यहाँ से महज 16 किलोमीटर दूर स्थित है जो रेल्‍वे का बड़ा जंक्‍शन है। टूरिस्‍ट को रेल मार्ग से आने की भी समुचित सहूलियत है। ग्‍वालियर और खजुराहो एयरपोर्ट की दूरी भी ज्‍यादा नहीं है। नई दिल्‍ली – हबीबगंज शताब्‍दी एक्‍सप्रेस यहाँ के लिए सबसे अच्‍छा साधन है। हाल ही में शुरू हुई भोपाल – खजुराहो ट्रेन से टीकमगढ़ पहुँचकर वहाँ से सड़क मार्ग से भी ओरछा पहुँचा जा सकता है। वर्ल्‍ड हेरिटेज खजुराहो के साथ ग्‍वालियर, चंदेरी, शिवपुरी,धुबेला म्‍यूजियम और ओरछा भ्रमण को आसानी से शामिल किया जा सकता है। तो आइये….इस बार…. ओरछा।

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