त्रियों तथा सरकारी अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से बचाने तथा मीडिया को ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग से रोकने वाले एक अध्यादेश पर चौतरफा आलोचनाओं का सामना कर रहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सोमवार रात को बैठक बुलाई, जिसमें अध्यादेश की एक पैनल द्वारा समीक्षा कराए जाने का निर्णय लिया गया. पिछले माह अध्यादेश के ज़रिये लागू किए गए कानून में अदालतों पर भी सरकार की अनुमति के बिना मंत्रियों, विधायकों तथा सरकारी अधिकारियों के खिलाफ किसी भी शिकायत पर सुनवाई से रोक लगाई गई है. कानून के मुताबिक मंज़ूरी लिए बिना किसी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कुछ भी प्रकाशित करने पर मीडिया को भी अपराधी माना जाएगा, और पत्रकारों को इस अपराध में दो साल तक की कैद की सज़ा सुनाई जा सकती है. सूत्रों ने बताया कि कानून का यही हिस्सा है, जिसकी समीक्षा की जा रही है. बहुतों ने इसे मीडिया के खिलाफ ‘गैग ऑर्डर’ की संज्ञा दी है.
चौतरफा विरोध तथा हाईकोर्ट में दाखिल की गईं दो याचिकाओं के बीच वसुंधरा राजे सरकार ने सोमवार को इस अध्यादेश को विधानसभा में पेश कर दिया. सदन में बहुमत रखने वाली BJP की योजना तीन दिन की चर्चा के बाद इस कानून को पारित कर देने की थी. अब संभव है कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया जाए. प्रस्तावित कानून की आलोचना करने वालों में न सिर्फ सामाजिक कार्यकर्ता तथा विपक्षी कांग्रेस शामिल रहे, बल्कि सत्तासीन BJP के भी कम से कम दो विधायकों ने सार्वजनिक रूप से बिल के प्रति नाखुशी जताई. उनमे से एक घनश्याम तिवारी ने तो इस बिल की तुलना वर्ष 1975 में लागू की गई एमरजेंसी से कर डाली, जब कांग्रेस की केंद्र सरकार ने विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया था और मीडिया पर तमाम पाबंदियां लागू कर दी गई थीं.
घनश्याम तिवाड़ी ने कहा, “यह हमारी पार्टी के सिद्धांतों के खिलाफ है… हमने एमरजेंसी का विरोध इसलिए न किया था, ताकि BJP की सरकार आकर इस तरह का कानून बनाए…अध्यादेश को हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई है, और याचिका में कहा गया है कि इस कानून से ‘समाज के एक बड़े हिस्से को अपराध करने का लाइसेंस मिल सकता है…’ , गौरतलब है कि डॉ मनमोहन सिह के नेतृत्व वाली कांग्रेस-नीत सरकार ने भी वर्ष 2013 में भ्रष्टाचार-विरोधी कानून में मिलते-जुलते बदलावों का प्रस्ताव किया था, ताकि ईमानदार अधिकारियों को बचाया जा सके. महाराष्ट्र की BJP सरकार ने भी इसी तरह का कानून पारित कर चुकी है, लेकिन अब तक किसी भी कानून में मीडिया पर इस तरह पाबंदियां नहीं लगाई गई थीं.