भोपाल। ठुमरी गायिका गिरिजा देवी का 88 वर्ष की उम्र में 24 अक्टूबर को कोलकाता में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। ठुमरी क्वीन के नाम से पहचानी जाने वाली गिरिजा देवी पिछले कई दिनों से बीमार थी और बीएम बिड़ला नर्सिंग होम में उनका इलाज चल रहा था।
फरवरी में गिरिजा देवी एक संगीत कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजधानी भाेपाल आई थीं। उस दौरान उन्होंने बताया था कि, ठंडी हो या गर्मी मैं रोजाना सुबह 6.30 बजे सोकर उठ जाती हूं। इसके बाद सबसे पहला काम करती हूं अपने लंबे सफेद बालों की करीने से चोटी गूंथने का।
उन्होंने कहा था कि, ‘इस साल से मैंने गाना लगभग बंद ही कर देने का फैसला लिया था कि अब बहुत गा चुके, लेकिन मप्र के बुलावे को ठुकरा नहीं पाती। यहां की सरकार इतना अवॉर्ड और इतना सम्मान देती है कि, 90 के हो जाएं या 100 के आना तो पड़ेगा ही।’
आपको जानकर हैरानी होगी कि, 88 की उम्र में भी गिरिजा देवी खाने की बेहद शौकीन थीं। घी, मलाई, बनारसी रबड़ी, पूरियां और चूड़ा मटर उनको बेहद पसंद थे। रोजमर्रा के कामों में उनका पान का बीड़ा तैयार करना भी प्रमुख कामों में शामिल था।
बनारस में रहती जरूर थीं, लेकिन अपना बनारसी पान का बीड़ा वे रोज कत्था और चूना लगाकर खुद ही बनाती थीं। एक टाइम में ही दिनभर के पान एक साथ बनाकर रख लेती थीं, जो दिनभर चलते थे। इस उम्र में न उन्हें चीनी से परहेज थी न ही हाई कोलेस्ट्रॉल की चिंता। चाय की डबल शक्कर की पीती थीं।
मीठे पर उनका तर्क था कि, बनारस के लोग खाते भी मीठा हैं और बोलते भी। उन्होंने कहा था कि रोजाना शिष्यों को करीब ढाई घंटे संगीत की शिक्षा देती हूं, इसी दौरान रियाज भी हो जाता है। किसी पक्की गृहिणी की तरह आज घर में क्या बनेगा, उसके मसाले और सामान है या नहीं.. इसका ख्याल भी खुद ही रखती हूं।
गिरिजा देवी ने गायन की शुरुआत के पहले लोगों खूब बातें की थीं। शुरुआत की,‘यहां हॉल में बैठे सारे लोगों को मेरा आशीर्वाद। अरे, अब मेरी समझ से यहां सब मुझसे कम उम्र के ही हैं। हां कोई अगर 90 साल का हो तो प्रणाम नहीं तो सबको आशीर्वाद।
भोपाल में ध्रुपद गायकी की जड़े मजबूत की जा रही हैं, यह बहुत जरूरी है नहीं तो इमारत ढह जाएगी। सुरों के गठाह के लिए बेहद जरूरी है कि ध्रुपद सीखें। अंत में गिरिजा देवी ने कहा था कि, 12 बजे के बाद वैलेंटाइन डे आ जाएगा ना। तो मेरा प्यार अभी से सबके ऊपर है। बूढ़ी दादी का भी प्यार ले लो..।