मृदुला गर्ग हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। कोलकाता में 25 अक्तूबर, 1938 को पैदा हुई मृदुला जी ने एम.ए. तो किया था अर्थशास्त्र में, पर उनका मन रमा हिंदी साहित्य में। कथानक की विविधता और विषयों के नएपन ने उन्हें अलग पहचान दी। शायद यही वजह थी कि उनके उपन्यासों को समालोचकों की सराहना तो मिली ही, वे खूब पसंद भी किए गए।
कार्यक्षेत्र: अध्यापन से अपने कार्यजीवन का प्रारंभ करने वाली मृदुली गर्ग ने उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने 20 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। इसके अतिरिक्त वे स्तंभकार रही हैं, पर्यावरण के प्रति सजगता प्रकट करती रही हैं तथा महिलाओं तथा बच्चों के हित में समाज सेवा के काम करती रही हैं। उन्होंने इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में लगभग तीन साल तक कटाक्ष नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में 1990 में आयोजित एक सम्मेलन में हिंदी साहित्य में महिलाओं के प्रति भेदभाव विषय पर व्याख्यान भी दे चुकी हैं। उनकी रचनाओं के अनुवाद जर्मन, चेक, जापानी और अँग्रेज़ी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में हो चुके हैं।
सम्मान और पुरस्कार: मृदुला गर्ग को हिंदी अकादमी द्वारा 1988 में साहित्यकार सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, 2003 में सूरीनाम में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में आजीवन साहित्य सेवा सम्मान, 2004 में ‘कठगुलाब’ के लिए व्यास सम्मान तथा 2003 में ‘कठगुलाब’ के लिए ही ज्ञानपीठ का वाग्देवी पुरस्कार, वर्ष 2013 का साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी उनकी कृति ‘मिलजुल मन’ उपन्यास के लिए प्रदान किया गया है। ‘उसके हिस्से की धूप’ उपन्यास को 1975 में तथा ‘जादू का कालीन’ को 1993 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है।