उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही तीन दिवसीय छठ पर्व शुक्रवार की सुबह संपन्न हो गया. इससे पहले छठ पूजा के दूसरे दिन उगते सूरज को अर्घ्य देने के लिए घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए शुक्रवार की शाम से ही घाटों पर श्रद्धालु जमे रहे.
दिल्ली-एनसीआर के घाट पर छठ पूजा के तीसरे दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे, मान्यता के अनुसार कोई भी व्यक्ति पूरे श्रद्धा भाव से व्रत कर के सूर्य देव की उपासना करता है और उन्हें अर्घ्य देता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और उसके कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं. ऐसी ही भावनाओं के साथ दिल्ली एनसीआर के व्रती घाट पर अपने परिवार के साथ पहुंचे और पूजा अर्चना की.
हर साल दिल्ली-एनसीआर में छठ पूजा करने वाले व्रतियों की संख्या में इजाफा हो रहा है. यही कारण है कि घाट के बढ़ने के बाद भी भीड़ कम नहीं हुई है. पहले छठ के महापर्व पर पूर्वांचल से दिल्ली-एनसीआर कमाने आए लोगों को अपने गांव जाना पड़ता था पर अब वो यहीं पर छठी मइया की पूजा करना पसंद करते हैं क्योंकि यहां पर सुविधाओं में वृद्धि के साथ-साथ दूसरे समुदायों के लोगों का रुझान भी बढ़ता जा रहा है. जिससे घाटों की रौनक दोगुनी हो गई है.
18 साल से अपने परिवार के साथ दिल्ली के दिलशाद गार्डन में रह रहे उपेंद्र शर्मा कहते हैं, “पहले छत पर हम सब गांव जाते थे पर पिछले 4 सालों में मैं इतना परिवर्तन देख रहा हूं की मुझे अब यही अच्छा लगता है घाट पर जाइए तो ऐसा लगता है कि आप बनारस के गंगा घाट पर हैं.”
घाटों पर दोपहर से ही वर्तियों का आने का सिलसिला शुरू हो गया था और इस बार के छठ पूजा की सबसे खास बात ये रही कि दिल्ली-एनसीआर के लोगों में भी इस महापर्व का उत्साह देखने को मिला. पूजा करने आये श्रद्धालुओं के साथ-साथ घाट पर कई पंजाबी और बंगाली परिवार भी दिखे जिन्होंने बढ़-चढ़ कर पूजा में हिस्सा लिया और वर्तियों की मदद की.द्वारका का रहने वाला आहूजा परिवार अपने पड़ोसी के साथ घाट पर आया था. उनका मानना है, “बहुत अच्छा लगता है यहां आ कर, मुझे तीन साल हो गए यहां आते हुए. मैं व्रत नहीं करती पर पूजा की सभी विधि जानती हूं और मैंने तो ठेकुआ बनाने में भी मदद की.”
बदलते समय के साथ-साथ दिल्ली एनसीआर में छठ महापर्व की रौनक बढ़ती ही जा रही है और पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है. इसी के साथ व्रती घाट पर ही पूजा के बाद प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलते हैं. 24 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ ये पर्व सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त हो जाएगा.