हिमाचल में हर चुनाव में सत्तारूढ़ दल मिशन रिपीट का दावा करता आया है। इस चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी सरकार के रिपीट होने का दावा कर रही है। हिमाचल प्रदेश में अमूमन चार से पांच प्रतिशत वोट ही सत्ता का फैसला करते हैं। इस ट्रेंड का अपवाद एकमात्र 1993 का चुनाव है, जहां ये गणित नहीं चला था। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 42.8 फीसदी वोट लेकर सरकार बनाई थी। इस चुनाव में भाजपा मिशन फिफ्टी प्लस यानी 68 में से पचास सीटें या इससे अधिक जीतने के लिए जोर लगा रही है तो कांग्रेस की नजर पिछले चुनाव के मत प्रतिशत को दोहराने पर है।
विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा को 39 फीसदी मत मिले थे। यानी करीब चार फीसदी मतों के अंतर यानी स्विंग ने ही सत्ता का फैसला किया। वहीं, इससे पूर्व यानी वर्ष 2007 के चुनाव में भाजपा को 43.78 फीसदी मत पड़े और कांग्रेस ने 38.90 फीसदी मत हासिल किए। इस तरह वर्ष 2007 के चुनाव में भी जीत-हार का अंतर पांच फीसदी से जरा सा अधिक था।
प्रदेश में 1998 के चुनाव में भी स्थिति कुछ-कुछ ऐसी ही थी, जब सत्ता का परिवर्तन इसी तरह के ट्रेंड से हुआ था। वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बेशक भाजपा से अधिक था, लेकिन उसे सत्ता नहीं मिली। कारण ये था कि उस समय हिमाचल में कांग्रेस तथा भाजपा के अलावा हिमाचल विकास कांग्रेस के तौर पर एक अन्य सशक्त क्षेत्रीय दल था। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया था। उनके दल ने पांच सीटों पर जीत हासिल की और बीजेपी हिमाचल विकास कांग्रेस के सहयोग से सत्ता में आई।
वोटिंग के इस ट्रेंड को लेकर एकमात्र अपवाद वर्ष 1993 का विधानसभा चुनाव था। इस चुनाव में कांग्रेस को 48 और भाजपा को महज 36 फीसदी मत मिले। ये परंपरागत चार से पांच फीसदी स्विंग से कहीं अधिक 12 फीसदी था। हिमाचल में इससे पूर्व वर्ष 1990 के चुनाव में भाजपा को 41.7 फीसदी और कांग्रेस को 36.54 फीसदी मत मिले थे। इस चुनाव में भी मतों के स्विंग का ट्रेंड परंपरागत ही था।
यदि चुनाव के समय हाईलाइट होने वाले राजनीतिक दलों की बात की जाए तो हिमाचल में लोग उन्हें अधिक तवज्जो नहीं देते। अलबत्ता निर्दलीय उम्मीदवार जरूर चुनाव जीतते रहे हैं। छोटे दलों व निर्दलीय चुनाव लडऩे वालों को हिमाचल में 4 फीसदी से लेकर 12 फीसदी तक मत मिलते आए हैं। वर्ष 2012 के चुनाव में तो चार उम्मीदवार निर्दलीय ही जीत गए थे। भाजपा से अलग हुए महेश्वर सिंह ने हिमाचल लोकहित पार्टी बनाई थी और वे अपनी पार्टी के अकेले विधायक थे। ये बात अलग है कि बाद में वे फिर से भाजपा में शामिल हो गए थे।
हिमाचल छोटा पहाड़ी राज्य है। कुल 70 लाख की आबादी वाले प्रदेश में 68 विधानसभा क्षेत्र हैं। चुनाव में महिला वोटर्स भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। प्रदेश में इस बार महिला मतदाताओं की संख्या 24,07,503 है। यह कुल मतदाताओं का 49.07 फीसदी है। इस तरह महिला मतदाता जीत-हार में अहम भूमिका में होंगी। वहीं, हिमाचल प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 49,05,677 में से पुरुष मतदाताओं की संख्या 24,98,174 है। इसके अलावा किशोर वोटर्स यानी 19 साल से कम आयु के वोटर्स की संख्या एक लाख दस हजार है।