इंदौर: सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले में निचली अदालतों के लिए महत्वपूर्ण आदेश दिया है। इसमें कहा कि तलाक के लिए कोर्ट छह महीने की पाबंदी के नियम को शिथिल कर सकते हैं। आमतौर पर फैमिली कोर्ट में हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13बी के तहत जो प्रकरण तलाक के लिए आते हैं उन पर विचार छह महीने का समय बीतने के बाद ही होता है।
शीर्ष अदालत ने इस मामले में कहा है कि छह महीने का जो पीरियड है वह एक्ट में निर्देशात्मक है, आदेशात्मक नहीं। सहमति के आधार पर तलाक प्रकरण लगते हैं तो न्यायालय चाहें तो छह माह से पहले भी विचार कर निर्णय ले सकते हैं। जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस उदेश उमेश ललित की खंडपीठ ने यह फैसला सहमति के आधार पर सुप्रीम कोर्ट गए एक दंपती की याचिका पर दिया है।
दरअसल, पति-पत्नी ने फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी लगाई थी। दोनों ने सहमति के आधार पर यह फैसला लिया था, लेकिन फैमिली कोर्ट ने छह महीने बाद ही इस पर विचार करना तय किया था। इसके बाद हाई कोर्ट में पहुंचे, लेकिन वहां पर भी छह महीने बाद ही विचार करने के निर्णय को सही बताया गया। शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों की सहमति और सुलह की कोई गुंजाइश नहीं होने को देखते हुए ऐसे मामलों में उसी समय निर्णय लेने की बात कही।दंपती आवेदन लगाने के बाद किसी कारण से नहीं आ सकते हैं तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं। कोर्ट ने इस फैसले को जारी करने से पूर्व दिए गए 45 फैसलों पर भी विचार किया था। अधिवक्ता आनंद अग्रवाल के मुताबिक सभी फैमिली कोर्ट में ऐसे मामले बड़ी संख्या में लंबित हैं, जिनमें सहमति के बाद भी निर्णय नहीं हो रहा है। इस फैसले से प्रकरण जल्दी खत्म हो सकेंगे।