नाहन के राजगढ़ में जनसभा को सम्बोधित करते हुए अमित शाह ने धूमल को सीएम का चेहरा बनाने की आधिकारिक घोषणा की। भाजपा के आला लोगों को इस बात का अंदाजा हो गया था कि अगर उन्होंने मुख्यमंत्री का चेहरा जाहिर नहीं किया तो चुनाव में उन्हें नुकसान हो सकता है। अब धूमल के कंधों पर पार्टी को जीताने की बड़ी जिम्मेदारी है।
मंच पर शाह ने सीएम उम्मीदवार की घोषणा की, धूमल ने मंच पर खड़े होकर समर्थकों का अभिवादन किया। साथ ही, शाह ने ये भी कहा कि अभी तो धूमल सीएम उम्मीदवार है लेकिन 18 दिसम्बर के बाद वे सीएम बन जाएंगे।
शाह ने धूमल को बधाई देते हुए अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा कि मुझे विश्वास हैं धूमल जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी हिमाचल प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाएगी।आगामी 9 नवंबर को हिमाचल की जनता कांग्रेस के सीएम उम्मीदवार वीरभद्र सिंह व भाजपा के प्रेम कुमार धूमल के किस्मत का फैसला करेगी।
दोनों पांचवीं बार सीएम के तौर पर आमने-सामने हैं। इससे पहले 1998, 2003, 2007 और 2012 में ये दोनों अपनी-अपनी पार्टी से मैदान में थे।
दो साल में यह दूसरा मौका है जब बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में सीएम कैंडिडेट का एलान किया। हिमाचल के पहले 2015 में दिल्ली विधानसभा के दौरान बीजेपी ने किरण बेदी को सीएम कैंडिडेट के तौर पर मैदान में उतारा था। हालांकि, इससे पार्टी को कोई फायदा नहीं मिला था। केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद अब तक 15 राज्य में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। 2014 में हरियाणा, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में चुनाव हुए। किसी भी राज्य में बीजेपी ने सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया। 2015 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव में किरण बेदी सीएम कैंडिडेट बनीं।
2016 में असम, वेस्ट बंगाल, केरल, तमिलनाडु में भी तय सीएम कैंडिडेट नहीं था। ऐसा ही 2017 में यूपी, उत्तराखंड में हुआ। वहीं, मणिपुर-गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार बीजेपी ने बना ली।
राहुल गांधी ने भी वीरभद्र सिंह को अपनी पार्टी का सीएम कैंडिडेट घोषित किया था।
83 साल के वीरभद्र सिंह आठ विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। जुब्बल-कोटखाई, रामपुर, रोहड़ू और शिमला ग्रामीण से विधानसभा चुनाव लड़ चुके वीरभद्र ने इस बार अपनी सीट फिर बदल ली है। इस बार वे अर्की से चुनाव लड़ेंगे। इस बार उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। हो सकता है कि ये उनका ये आखिरी चुनाव हो। 1990 में वे एक बार जुब्बल-कोटखाई से चुनाव हार चुके हैं। वीरभद्र सिंह 1983-1990, 1993-1998, 2003-2007 और 2012-2017 के बीच सीएम रहे हैं।