मध्यप्रदेश में पिछले 12 वर्ष के दौरान 154 नए राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किए गये। इनके समुचित संरक्षण एवं संवर्धन पर भी खास ध्यान दिया गया। प्रदेश में अब तक 497 स्मारक/स्थल संरक्षित किए जा चुके हैं। सर्वाधिक 47 संरक्षित स्मारक वर्ष 2015 में घोषित हुए। गत 2002-03 तक कुल 343 राज्य संरक्षित स्मारक थे। बारह साल में व्यापक तौर पर 320 स्मारकों का अनुरक्षण,उन्नयन एवं विकास कार्य पूरे कर स्मारकों को नया स्वरूप प्रदान किया गया है। इन राज्य संरक्षित स्मारकों की सुरक्षा और देखरेख के लिए 44 सुरक्षा गार्ड की तैनाती की गई है।
प्रदेश में फैली अटूट पुरा-सम्पदा के संरक्षण और संवर्धन के साथ ऐतिहासिक विरासत और प्राचीन दुर्लभ प्रतिमाओं को प्रकाश में लाकर पुरातत्व एवं अभिलेखागार एवं संग्रहालय तथा उनके अधीनस्थ कार्यालय के सीमित अमले द्वारा पिछले बारह साल में अर्जित उपलब्धियाँ काबिले तारीफ हैं। प्रदेश में पुरातत्व के महत्व को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। इसके फलस्वरूप पुरातत्व विभाग के वार्षिक बजट में तीन गुना से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2002-03 में पुरातत्व का वार्षिक वजट 1054.64 लाख रूपये था जो वर्ष 2017-18 तक आते-आते 3561.76 लाख रुपये हो गया है। प्रदेश में 32 संग्रहालय संचालित हैं। इनमें से 6 राज्य स्तरीय, 14 जिला स्तरीय, 7 स्थानीय एवं 5 स्थल संग्रहालय हैं। वर्ष 2017-18 में 8 संग्रहालयों में उन्नयन एवं विकास कार्य कराए जा रहे हैं। इसके लिए 1 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान रखा गया है।
उच्च स्तरीय राज्य संग्रहालय बना आकर्षण का केन्द्र
राजधानी भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित जनजातीय संग्रहालय परिसर में वर्ष 2005 में बनाया गया उच्च स्तरीय 17 दीर्घाओं वाला राज्य संग्रहालय आज प्रबुद्ध वर्ग एवं आमजन के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया है। राज्य संग्रहालय में प्राचीन दुर्लभ प्रतिमाएँ सहेजी गई हैं। प्रदर्शनी सभागार में आए दिनों पुराने सिक्कों की कहानी, डेढ़ हजार साल पहले की प्राचीन गणेश-कार्तिकेय की प्रतिमाओं और मुद्रा शास्त्र जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर छायाचित्र प्रदर्शनी लगाई जाकर कलाप्रेमियों और आमजनों को दुर्लभ इतिहास से रू-ब-रू कराया जाता है। राज्य संग्रहालय में विभागीय व्याख्यान और कार्यशाला सतत रूप से होते हैं। राजधानी आने वाले पर्यटक एवं विद्यालयों के छात्र-छात्रा तथा युवा वर्ग इस संग्रहालय में प्रदर्शित सामग्री का अवलोकन करने के साथ ही पुरातन इतिहास की जानकारी प्राप्त कर अपने ज्ञान को बढ़ा रहे हैं।
पुरातत्वीय सर्वेक्षण एवं उत्खनन
पुरातत्वीय धरोहर की सुरक्षा के लिए उसका चिन्हांकन, छायांकन एवं सर्वेक्षण करवाया जाता है। सर्वेक्षण कार्य के बाद उत्खनन कार्य कराया जाता है। पिछले बारह साल में 323 तहसीलों और 18 नेशनल पार्क/टाईगर रिजर्व का सर्वेक्षण कार्य करवाया गया। वर्ष 2005-06 से सतत रूप से उत्खनन का कार्य कराया जा रहा है। इनमें मुख्य रूप से सीहोर जिले में छिपानेर भोपाल में गोदडमऊ, सतना में मनौरा और मैहर, हरदा में विरजाखेड़ी एवं भिण्ड जिले के कोषण सुरपुर में उत्खनन कार्य शामिल हैं।
प्राचीन मंदिर एवं महत्वपूर्ण अभिलेख
पुरातत्वीय तकनीक से मलबा-सफाई कार्य कराने से सीहोर जिले के देवबड़ला में 2 परमार कालीन मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए जो परमार कला के अनुपम उदाहरण हैं। इसी वर्ष रायसेन जिले के ग्राम ढ़ावला में प्राचीन मंदिर के परमारकालीन 3 मंदिरों के अवशेष एवं प्रतिमाएँ भी प्रकाश में आई हैं।
डाँ.वाकणकर पुरातत्व शोध संस्थान
डाँ.वाकणकर पुरातत्व शोध संस्थान की स्थापना वर्ष 2012 में की गई। संस्थान को वर्ष 2016 में भोपाल में कोलार स्थित ‘भोजनगर’ में मलबा-सफाई के दौरान परमार कालीन शिव मंदिर, 15 शैव एवं वैष्णव प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं। इसके पहले जिला सतना में मनोरा, अनूपपुर के ग्राम गंभीर वाटोला-दारा सागर में करवाए गए उत्खनन से मनोरा में गुप्तकालीन मंदिरों की संरचना, प्रतिमाएँ, मृद, भांड, औजार एवं अन्य उपकरण मिले। डाँ.वाकणकर शोध संस्थान द्वारा संगोष्ठी, विषय विशेषज्ञों के व्याख्यान, शोध-संगोष्ठी, अभिलेखिकीकरण कार्य एवं कार्यशाला आयोजित की जाती है। रायसेन जिले का पुरातत्व, युग-युगीन मध्यप्रदेश, बुन्देलखंड के पुरातत्व में नवीन शोध संगोष्ठी, विश्व विरासत सप्ताह में शैल-चित्रों पर कार्यशाला, मंदिर वास्तु कार्यशाला, प्रागैतिहासिक उत्खनन संबंधी कार्यशाला अभी तक आयोजित की जा चुकी हैं। इसके अलावा, पुरातत्व, संस्कृति एवं इतिहास के विषय विशेषज्ञों के व्याख्यान भी करवाए गये हैं।
प्रतिकृतियों का निर्माण
पुरातत्वीय धरोहर में जनसामान्य की अभिरूचि तथा विरासत को सहेजने के लिए महत्वपूर्ण प्रतिमाओं का चयन कर उनकी प्रतिकृतियों का निर्माण और नवीन मोल्ड निर्मित किए जाते हैं। पिछले 12 साल में 26 हजार 200 प्रतिकृतियों का निर्माण कराया जाकर 21 प्रतिमाओं का मोल्ड तैयार किया गया। इसी वर्ष अभी तक 2 हजार प्रतिकृतियों का निर्माण करवाया जा चुका है।
महिदपुर किले को मिला ‘एशिया पेसिफिक हैरिटेज अवार्ड–2016′
भिण्ड जिले के महिदपुर किले के अनुरक्षण कार्य को यूनिस्को एशिया पैसिफक हैरिटेज अवार्ड-2016 के अंतर्गत ‘अवार्ड ऑफ मैरिट’ प्राप्त हुआ है। इस अवार्ड ने प्रदेश के गौरव को बढ़ाया है। उल्लेखनीय है कि वर्ल्ड मॉन्यूमेंट फंड से स्मारकों के अनुरक्षण कार्य के लिए संस्कृति विभाग ने करारनाम किया है। वर्ल्ड मॉन्यूमेंट फण्ड की सहभागिता से 54 अनुरक्षण कार्य हो रहे हैं। इनमें से 32 कार्य पूरे हो चुके हैं। इन कार्यों पर 5 मिलियन डालर व्यय किए जा रहे हैं।
1798 से 1956 की अवधि के अभिलेखों का अध्ययन
मध्यप्रदेश की भूतपूर्व रियासतों ग्वालियर, इंदौर, भोपाल, मध्यभारत एवं मध्यप्रांत के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अभिलेखों को संरक्षित किया जा रहा है। संचालनालय के मुख्यालय परिसर में नवीन अभिलेख कक्षों का निर्माण कर वहां भोपाल राज्य, होलकर राज्य एवं मध्यभारत के अभिलेख स्थानांतरित किये गये हैं। मध्यप्रांत के वर्ष 1798 से 1919 की अवधि के विभिन्न विभाग, छत्तीसगढ़ डिविजनल रिकार्ड, डिस्ट्रिक आफिस, रिकार्ड प्रिम्यूटिनी/पोस्ट म्यूटिनी, जबलपुर डिवीजनल रिकार्ड, फॉरेल एण्ड पॉलिटिकल रिकार्ड, जनरल एडमिनिसट्रेशन, जेल,पुलिस, नागपुर रेसिडेन्सी रिकार्ड, फॉरेस्ट विभाग, जुडिशियन विभाग, रेवेन्यू एण्ड एग्रीकल्चर तथा रेवन्यू एण्ड स्कारसिटी आदि ऐतिहासिक अभिलेखों की माईक्रोफिल्मिंग/डिजिटाईजेशन कार्य कराया गया है। इन ऐतिहासिक अभिलेखों को देश-विदेश के शोधकर्ता तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्र-छात्राएं अपने अध्ययन का विषय बना रहे हैं।
प्रथम स्वाधीनता आंदोलन के ऐतिहासिक महत्व की पुस्तकों का प्रकाशन
प्रदेश में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 से सम्बन्धित ऐतिहासिक महत्व के अभिलेखों पर आधारित पुस्तकों का प्रकाशन करवाया गया है। इनमें Documents of jablpur & mandla, बुन्देली अभिलेख, उर्दू एवं फारसी के अभिलेख Documents of indore, sagar & jablpur स्लीमेन करसेस्टपान्डस्पर आधारित 5 खंडों में प्रकाशन हो रहा है। इनमें से खंड 1 का प्रकाशन किया जा चुका है। भोपाल के इतिहास से सम्बन्धित ‘विन्टेज भोपाल’ पुस्तक का प्रकाशन हो चुका है। देश-विदेश के 313 शोध छात्रों को उनके शोध विषय से सम्बन्धित शोध सामग्री उपलब्ध कराई गई है। अभिलेखीय विरासत के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से समय-समय पर अभिलेख प्रदर्शनी, ‘स्वतंत्रता आंदोलन 1857 से 1947 ‘विषय पर दुर्लभ अभिलेखों एवं छायाचित्रों की प्रदर्शनी राज्य संग्रहालय में लगाए जाने के साथ ही अभिलेखों एवं छायाचित्रों पर आधारित ‘उत्तर खोजो’ प्रतियोगिता भी आयोजित की गई। इस प्रतियोगिता में विद्यालय एवं महाविद्यालय के छात्र- छात्राओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। विजेताओं को पुरस्कार भी दिये गये।
पुरातत्व विभाग के तकनीकी दल द्वारा प्रदेश के ऐसे कई स्थानों को चिन्हांकित किया है जिनमें विभाग को ऐतिहासिक एवं दुर्लभ देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ मिलने की संभावना है। इस कार्य को बहुत आगे ले जाने के लिए पुरातत्व विभाग प्रतिबद्ध है।