सुजानपुर में जोरदार जीत हासिल करने वाले राजेंद्र राणा की जीत का सवाल अभी भी सवाल ही बना हुआ है। राजनीतिक जानकार जहां इस सवाल के कारण ढूंढने में लगे हैं, वहीं भाजपा संगठन को पार्टी के गढ़ में इस नुकसान का पता क्यों नहीं चल पाया यह भी एक बड़ा सवाल बना है। सेवा-साधना को सीढ़ी बनाकर अपने और परायों के लगातार निशाने पर रहने के बावजूद राजेंद्र राणा ने राजनीति में जिस जीत से यकायक राजनीतिक पासा बदला है, उसकी कल्पना भाजपा ने नहीं की थी। हिमाचल दस्तक ने उनसे ऐसे कई सवालों को लेकर बातचीत की। जन विश्वास के प्रति राजनीति में ईमानदारी इस ऐतिहासिक जीत का सबब बना है। पिछले 15 साल से मैंने जनता व कार्यकर्ताओं के प्रति ईमानदारी का भाव रखा है।
राजनीति में सियासी लहरें आंशिक असर तो करती हैं, लेकिन जन विश्वास हासिल करने के लिए लहरों से ज्यादा भरोसा जीत के लिए कारगर किरदार होता है। मतदाताओं ने अगर बड़ी बेरहमी के साथ बड़े-बड़ों की हेकड़ी तोड़ी है तो निश्चित तौर पर जन भावनाओं के साथ भी बेरहम व्यवहार निश्चित तौर पर हुआ होगा। सरकार के बदले नूर में एक तरोताजा मुख्यमंंत्री प्रदेश को मिला है। जिसकी ताजपोशी में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सुजानपुर की जनता का जनादेश शुमार है। मुख्यमंत्री इस मर्म की गरिमा को न केवल समझेंगे बल्कि सुजानपुर के जनादेश का सम्मान भी करेंगे।
मैं दोनों का आदर करता हूं, लेकिन जब बेहतरीन के चुनाव की बात आती है तो राजनीति में वीरभद्र सिंह का कोई सानी नहीं है। अगर ऐसा नहीं होता तो उम्र के इस पड़ाव पर वह नए विधानसभा क्षेत्र में जीत हासिल करने के साथ-साथ अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह की जीत को सुनिश्चित न करवा पाते। वीरभद्र सिंह की आम आदमी के प्रति जवाबदेही के कारण जन विश्वास का हासिल होना कांग्रेस के शिखर पुरुष की कार्यशैली को प्रतिलक्षित करता है। सुजानपुर में बीजेपी सुजानपुर से पूर्व में किए गए राजनीतिक उपेेक्षा व व्यवहार को भूल गई। यही सबसे बड़ी चूक थी। जो लोग जीत के बड़े-बड़े दावे कर पार्टी को हकीकत से दूर रखना चाहते थे, वही लोग चुनाव में हमारे पास आकर सबक सिखाने की बातें करते थे। जो सत्ता के शीर्ष पर बिठाने चले थे उनके ही मन में खोट था और विरोधी दल इसको नहीं समझ पाया जो चूक का कारण बना।