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डलहौजी हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल…

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डलहौजी, यहाँ देवलोक की कल्पनाएं साक्षात्‌ उभरती हुई प्रतीत होती हैं। डलहौजी आज भी अपने अंदर अपनी विरासत के साथ-साथ नैसर्गिक सौंदर्य को बचाये रखने में सफल रहा है। पांच पहाड़ों- ‘कठलौंग’, ‘पोट्रेन’, ‘तेहरा’, ‘बकरोटा’ और ‘बलुन’ पर स्थित यह पर्वतीय स्थल हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले का हिस्सा है। डलहौजी, खजियार और चंबा, इन तीनों जगहों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं। डलहौजी की गिनती अंग्रेज़ों के समय से ही एक शांत सैरगाह के रूप में होती है।

स्थापना
डलहौजी को सन 1854 ई. में एक ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौज़ी ने स्‍थापित किया था, ताकि वह गर्मियों में सुकून भरे पल किसी ठंडी और शांत जगह पर बिता सके। डलहौजी, पांच पहाडियों पर बसा नगर है, जो कुल 13 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैली हुई हैं। डलहौजी समुद्र स्‍तर से 2700 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है।[1]

शिक्षण संस्थान
यहाँ पंजाब विश्वविद्यालय एवं उससे संबद्ध महाविद्यालयों के अध्यापकों के लिए एक अवकाश केंद्र भी है।

पर्यटन स्थल
धौलाधर श्रेणी को ब्रिटिश और उनके संगी-साथियों ने चुना था कि यहां एक पर्यटन स्‍थल बनाया जा सकता है। उस समय ब्रिटिश साम्राज्‍य का जनरल लॉर्ड नेपियर हुआ करता था, जिसने इस पहाड़ी स्‍थल पर ऊंचाई पर एक अस्‍पताल खोलने का प्रस्‍ताव भी रखा था ताकि चंबा के लोगों की कई गंभीर बीमारियों का इलाज किया जा सके। डलहौजी क्षेत्र में कई ऐसे स्‍थल हैं, जहां पर्यटक घूमने जा सकते हैं। यहां पर्यटक सबसे ज्‍यादा चर्च जाना पसंद करते हैं। यहां का ‘सेंट एंड्रयू’, ‘सेंट पेटरिक’, ‘सेंट फ्रांसिस चर्च’, ‘सेंट जॉन चर्च’ आदि प्रसिद्ध स्‍थल हैं। यहां का जानद्ररीघाट महल जो चंबा शासकों ने बनवाया था, इसकी वास्तुकला पर्यटकों को खासा प्रभावित करती है। डलहौजी के पंचपुला और सुभाष बावली में भारत की आजादी के लिए सरदार अजीत सिंह और सुभाषचंद्र बोस ने कई प्रयास किए थे। पर्यटक यहां आकर केवल धार्मिक और प्राकृतिक स्‍थलों का आनंद ही नहीं, बल्कि साहसिक खेलों का मजा भी उठा सकते हैं। डलहौज़ी में 2,440 मीटर की ऊँचाई पर स्थित कालाटॉप वन्यजीव अभयारण्य काले हिमालयी रीछ, मुंतजाक हिरन एवं विभिन्न पक्षियों का निकास है। पंजपुल तक आने वाली सत धारा, सुभाष बावली और पेड़ों के बीच से गुज़रती हवा की आवाज़ के कारण सिंगिंग हिल कहलाने वाली पहाड़ी अन्य लोकप्रिय पर्यटक स्थल हैं। डलहौज़ी के ठीक उत्तर में बालून छावनी स्थित है। यहाँ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं-

पंचपुला
अजीत सिंह की समाधि
कालाटोप
बकरोता पहाड़ियाँ
भूरी सिंह संग्रहालय
सुभाष बावली
गाँधी चौक
रंग महल
भूरी सिंह संग्रहालय

यहाँ में ‘भूरी सिंह संग्रहालय’ भी स्थित है, जिसे 1908 ई. में राजा भूरी ने दान किया था। कला प्रेमी यहां आकर सुंदर चित्रों को देख सकते हैं। इस संग्रहालय में मूल्‍यवान शारदा लिपि भी रखी हुई है। इसके अलावा डलहौजी में ‘रंग महल’ काफ़ी विख्‍यात है, जिसे राजा उमेद सिंह ने मुग़ल और ब्रिटिश वास्‍तुकला में बनवाया था। इस महल की दीवारों पर पंजाबी शैली के चित्र लगे हुए हैं, जो भगवान कृष्‍ण के जीवन के पहलुओं को दर्शाते हैं। इसके बाद पर्यटक यहां के ‘म्‍यूजियम काम्‍पलेक्‍स’ में स्थित ‘हिमाचल एम्‍पोरियम’ से हस्‍तनिर्मित रूमाल, लकड़ी करघा की शॉल और चप्‍पल आदि ख़रीद सकते हैं।

मौसम :
डलहौजी की जलवायु साल भर सुखद रहती है। यहाँ ग्रीष्म ऋतु में तापमान 15.5 से 25.5 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। मार्च से जून के महीने में पर्यटक यहां घूमने आ सकते है। जून के बाद यहां वर्षा होने लगती है, जो सितम्बर तक चलती है। शीत ऋतु में यहां का तापमान 01 से 10 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। अधिकतर लोग सर्दियों में ही डलहौजी आना पसंद करते हैं। सर्दियों के दौरान यहां भयंकर बर्फबारी होती है।

कैसे पहुँचें: 

हवाईमार्ग – डलहौजी भारतीय राजधानी दिल्ली से 563 कि.मी., अमृतसर से 191 कि.मी., चंबा से 56 कि.मी. और चंडीगढ़ से 300 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां के लिए निकटतम हवाईअड्डा पठानकोट है, जो डलहौजी से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह हवाईअड्डा दिल्‍ली के हवाईअड्डे से जुड़ा हुआ है। यहाँ आने के लिए जम्मू हवाईअड्डा भी दूसरा विकल्प है, जो शहर से 180 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह हवाईअड्डा देश के कई शहरों से भली-भांति जुड़ा हुआ है।

रेलमार्ग – रल से आने वाले यात्री पठानकोट के रेलवे स्‍टेशन तक आ सकते है। यहां से देश के कई शहरों, जैसे- दिल्‍ली, मुम्बई और अमृतसर आदि के लिए रेलें चलती हैं।

सड़कमार्ग – पर्यटक अगर डलहौजी तक बस से जाना चाहते हैं तो उन्‍हें दिल्‍ली और चंडीगढ़ जैसे शहरों से बस मिल जाएगी और यह सस्‍ती और सुविधाजनक होगी। दिल्‍ली से डलहौली तक की बस यात्रा में पर्यटकों को 560 कि.मी. का सफर तय करना होगा।

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