तीर्थराज प्रयाग में चल रहे माघ स्नान का सबसे पहला महत्वपूर्ण पर्व सकट चौथ 5 जनवरी को है। वक्रतुण्डी चतुर्थी, माघी चौथ अथवा तिलकुटा चौथ भी इसी को कहते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में माताएं इसे बड़े जोर-शोर से मनाती हैं। शुभता के प्रतीक, विवेकमय बनाने वाले गणेश जी का पूजन किए बिना कोई भी देवी-देवता, त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदिशक्ति, परमपिता परमेश्वर की भक्ति-शक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। इनकी पूजा मात्र से ही परमपिता परमेश्वर प्रसन्न हो उठते हैं। यह अपनी भक्ति उन्हीं को प्रदान करते हैं, जो माता-पिता और सास-ससुर की निश्छल सेवा करते हैं।
सूर्योदय से पूर्व स्नान के पश्चात गणोश जी को उत्तर दिशा की तरफ मुंह कर नदी में 21 बार, तो घर में एक बार जल देना चाहिए। सकट चौथ व्रत संतान की लंबी आयु हेतु किया जाता है। कृष्ण की सलाह पर धर्मराज युधिष्ठिर ने इस व्रत को किया था। व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पूर्व करें। पूजा में गुड़, तिल, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए।
चतुर्थी के दिन मूली नहीं खानी चाहिए, धन हानि की आशंका होती है। देर शाम चंद्रोदय के समय व्रत करने वाले को तिल, गुड़ आदि का अघ्र्य चंद्रमा, गणेश जी और चतुर्थी माता को अवश्य देना चाहिए। अघ्र्य देकर ही व्रत खोला जाता है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं। सूर्यास्त से पहले गणोश संकष्ट चतुर्थी व्रत कथा-पूजा होती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। दूर्वा, शमी, बेलपत्र और गुड़ में बने तिल के लड्डू चढ़ाने चाहिए।
कथा के अनुसार, सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आंवा पका ही नहीं, बर्तन कच्चे रह गए। बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा तो उसने कहा कि बच्चे की बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर सकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया। लेकिन बालक की माता ने उस दिन गणोश जी की पूजा की थी। बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला तो गणोश जी से प्रार्थना की। सबेरे कुम्हार ने देखा कि आंवा पक गया, लेकिन बालक जीवित और सुरक्षित था। डर कर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने बालक की माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणोश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा स्वीकार की तथा पूरे नगर में गणोश पूजा करने का आदेश दिया। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।