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सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक अधिकारों के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की समीक्षा के लिए तैयार हो गया…

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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने कहा है कि धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर पुनर्विचार किया जाएगा. बता दें कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंध को अपराध बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत केंद्र को भी नोटिस जारी किया है. LGBT (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय के पांच सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी कि वे अपने प्राकृतिक यौन प्राथमिकताओं की वजह से डर में जीते हैं.

कोर्ट ने इस मामले में केंद्र से भी जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सामाजिक नैतिकता में समय के साथ बदलाव होता है. समाज का कोई वर्ग अपने व्यक्तिगत पसंद के कारण डर में नहीं जी सकता सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया है. ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कहा कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है. वहीं एक LGBT एक्टिविस्ट अक्काइ कहना है, ‘हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसला स्वागत करने की जरूरत है. हम 21वीं सदी में रह रहे हैं. सभी राजनीतिक दलों और राजनेताओं को इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़नी होगी.’

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