दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट सीरीज के बाद खेली जाने वाली वनडे सीरीज के लिए फॉर्म के आधार पर टीम इंडिया में न चुने गए युवराज सिंह और सुरेश रैना को इस सत्र में राष्ट्रीय सेलेक्टरों को जवाब देने के साथ ही आगे के लिए अपना दावा मजबूत करने का मौका मिला था, लेकिन ये दोनों ही इस बडे़ मौके और बड़े चैलेंज पर नाकाम हो गए. खासकर सुरेश रैना का प्रदर्शन तो रणजी ट्रॉफी की तरह ही सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी (घरेलू टी-20) मुकाबलों मे और भी ज्यादा दयनीय बन गया. अब जल्द ही नॉकआउट मुकाबले शुरू होंगे, जहां पहले मैच के बाद टीम की जीत पर ही इनके आगे के मौके निर्भर करेंगे.बता दें कि मंगलवार को उत्तर प्रदेश और सोमवार को पंजाब ने टूर्नामेंट केअपने आखिरी लीग मुकाबले खेले. उत्तर प्रदेश ने छत्तीसगढ़ को छह विकेट से हराया, तो वहीं सोमवार को पंजाब ने हिमाचल प्रदेश को 19 रन से मात दी थी. युवराज ने आखिरी लीग मुकाबले में 21 रन की पारी खेली, तो सुरेश रैना मंगलवार को सिर्फ 13 ही रनों का योगदान दे सके. वास्तव में राष्ट्रीय सेलेक्टर्स और क्रिकेटप्रेमी इन दोनों से बहुत बेहतर की उम्मीद कर रहे थे. और इसके पीछे कारण बहुत ही साफ था.
याद दिला दें कि पहले से ही ये दोनों बीसीसीआई के ‘डबल चैलेंज’ का सामना कर रहे हैं. पहला चैलेंज तो इनके सामने यह है कि बीसीसीआई ने फिटनेस के बहुत मुश्किल ‘यो-यो टेस्ट’ के मानक को और मुश्किल बना दिया है. ऐसे में दोनों को पहली बार यो-यो टेस्ट में फेल होने के बाद दूसरी बार में इसे पास करने के बाद भी अब एक बार और फिटनेस टेस्ट देना होगा. वहीं, चीफ सेलेक्टर एमएसके प्रसाद ने दोनों को दक्षिण अफ्रीका में वनडे सेरीजी के लिए न चुनने के पीछे ही अलग-अलग दलीलें दी थीं.जहां युवराज ने रणजी ट्रॉफी मैचो में भाग नहीं लिया था, तो रैना को बहुत ही खराब घरेलू प्रदर्शन के कारण दक्षिण अफ्रीका दौरे में बाद में खेलने वाली वनडे टीम में नहीं चुना गया था. और अब सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के लीग मुकाबलों के खराब प्रदर्शन के बाद इन्होंने अपने लिए हालात और भी ज्यादा मुश्किल कर लिए हैं.