मध्यप्रदेश ने पिछले चौदह वर्ष में तेजी से विकसित प्रदेश बनने की ओर कदम बढ़ाये हैं। इस अरसे में प्रदेश न केवल बीमारू के टैग से मुक्त हुआ है बल्कि विकास और प्रगति के अनेक क्षेत्र में देश के कई राज्यों से आगे हुआ है। वर्ष 1956 में अपने निर्माण के समय कतरन प्रदेश कहलाने वाला मध्यप्रदेश न केवल आज अपने सांस्कृतिक वैशिष्टय, पुरा धरोहरों, प्राकृतिक संसाधनों, वन आवरण, पर्यटकों के आकर्षण के सभी रंगों, बहुवर्णी संस्कृति, सुदृढ़ कानून–व्यवस्था, वंचितों–गरीबों के हक में कल्याणकारी योजनाओं की मूक क्रांति, महिला सशक्तीकरण और अधोसंरचना विकास के क्षेत्र में एक उदाहरण है।
मध्यप्रदेश की आज की यह नयी पहचान पिछले चौदह वर्ष में राज्य के कुशल और कल्पनाशील नेतृत्व, सुविचारित नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं पर अमल के साथ ही विकास की दृढ़ इच्छा और प्राकृतिक साधनों के संतुलित दोहन का ही परिणाम है। इस अरसे में प्रदेश ने सामाजिक समरसता का भी एक ऐसा परिवेश रचा है, जिसमें वैमनस्यता और वर्गभेद कल की बातें हो गई हैं।
किसी भी प्रदेश के लिये ढाँचागत विकास के साथ यह जरूरी है कि वहाँ के नागरिक भी सुखी, संपन्न और खुशहाल रहे। सरकार में उनका विश्वास हो और सरकार उन्हें साथ लेकर विकास का सफर तय करें। मध्यप्रदेश इस कसौटी पर भी खरा उतरता है चाहे वह प्रदेश की जीवन–रेखा नर्मदा नदी के संरक्षण के लिये निकाली गयी ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ हो, आदि शंकराचार्य के अवदान के स्मरण के लिये निकाली जा रही ‘एकात्म यात्रा’ हो या वर्ष 2009 में मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा की गई ‘आओ बनाये अपना मध्यप्रदेश’ यात्रा और अभियान।
मध्यप्रदेश उन चुनिंदा प्रदेशों में से है जहाँ बेटी का जन्म अभिशाप नहीं है तो किसान को उसकी गाढ़ी मेहनत का वाजिब मूल्य दिलाने में सरकार की संवेदनशीलता भावांतर सहित अनेक किसान–कल्याण के फैसलों और नीतियों को दिखाती है। कुल मिलाकर जहाँ सरकार की चिंताओं से कोई भी वर्ग अछूता नहीं हो, ढूँढना हो तो मध्यप्रदेश का नाम ही सामने आता है।
यह केवल लिखने भर को नहीं है। पिछले 14 वर्ष में प्रदेश ने विकास के सभी संकेतकों की कसौटी पर अपने को खरा साबित किया है। कह सकते हैं कि आज मध्यप्रदेश विकास के हर पैरामीटर पर तेजी से प्रगति करता प्रदेश है।
अधोसंरचना विकास
प्रदेश में वर्ष 2003 से 2017 के बीच हुए अभूतपूर्व विकास को आँकड़ें भी प्रमाणित करते हैं। चौदह साल पहले अगर प्रदेश का सिंचित रकबा 7.5 लाख हेक्टेयर था, तो आज यह 40 लाख हेक्टेयर है। विद्युत उत्पादन भी 2900 मेगावाट से बढ़कर 17 हजार 700 मेगावाट हो गया है। सड़कें 45 हजार किलोमीटर से बढ़कर 95 हजार किलोमीटर हो गई है। पेयजल की सुविधा के लिये नर्मदा नदी को गंभीर, कालीसिंध, पार्वती, क्षिप्रा जैसी छोटी नदियों से जोड़ा जा रहा है। माइक्रो इरीगेशन मिशन संचालित कर पानी के उपयोग को किफायती बनाया गया है।
खेती–किसानी
प्रदेश की फसल उत्पादकता आज 1785 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जो 14 साल पहले 831 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। कुल कृषि उत्पादन भी 214 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 545 लाख मीट्रिक टन हो गया है। गेहूँ उत्पादन के क्षेत्र में तो क्रांति सी हो गई है। पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों की बराबरी ही नहीं उन्हें भी प्रदेश ने पीछे छोड़ दिया है। आज प्रदेश का गेहूँ उत्पादन 219 लाख मीट्रिक टन है, जो डेढ़ दशक पहले मात्र 49 लाख 23 हजार मीट्रिक टन था। धान उत्पादन भी 17 लाख से बढ़कर 54 लाख मीट्रिक टन हो गया है। दलहन–तिलहन उत्पादन में पूरा देश प्रदेश का लोहा मानता है। दलहन उत्पादन 33 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर आज 79 लाख 23 हजार मीट्रिक टन हो गया है। सोयाबीन उत्पादन भी 26 लाख 74 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 84 लाख 16 हजार मीट्रिक टन हो गया है।
गेहूँ–धान का उपार्जन बढ़ा
वर्ष 2003 में प्रदेश में 1.69 मिलियन लाख टन गेहूँ का उपार्जन होता था जो अब बढ़कर 71 लाख 88 हजार मीट्रिक टन हो गया है। धान उपार्जन भी 95 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 15 लाख 60 हजार मीट्रिक टन हो गया है। सुचारू व्यवस्था और बिचौलियों को बाहर करने के सरकार के प्रयासों से कृषि उपज मंडियों में कृषि जिन्सों की आवक 106 लाख 76 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 234 लाख मीट्रिक टन हो गई है।
पहले प्रदेश में करीब 15 प्रतिशत की ऊँची दर पर किसानों को खेती–किसानी के लिये सहकारी ऋण मिलते थे। आज शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर यह सुविधा किसान को प्राप्त है। यही नहीं किसान द्वारा लिये गये 100 रुपये के ऋण पर उसे 90 रुपये ही लौटाने होते हैं। शेष राशि राज्य सरकार सब्सिडी के रूप में सहकारी संस्थाओं को देती है। यही वजह है कि 13 हजार 588 करोड का ऋण किसानों ने लिया है जबकि चौदह साल पहले यह ऋण राशि महज 1300 करोड़ होती थी।
प्रदेश के उद्यानिकी क्षेत्र में भी इस अरसे में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। किसान खेती को लाभदायी बनाने के लिये परम्परागत फसलों के साथ उद्यानिकी और औषधीय फसलों की ओर आकर्षित हुए हैं। यही वजह है कि 4 लाख 69 लाख हेक्टेयर का उद्यानिकी क्षेत्र बढ़कर 14 लाख 66 हजार हेक्टेयर पर पहुँच गया है। दुग्ध उत्पादन में भी क्रांति हो रही है। दुग्ध उत्पादन भी 5.38 मिलियन टन से बढ़कर 9.59 मिलियन टन हो गया है।
शिक्षा सुविधाओं में वृद्धि
शिक्षा सुविधाओं में भी प्रदेश में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। स्कूली छात्र- छात्राओं को नि:शुल्क गणवेश, साइकिल, मेधावी छात्रों को लेपटाप और स्मार्ट फोन, प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग, विदेश अध्ययन छात्रवृत्ति, शोध छात्रवृत्ति, मूल्य सूचकांक के अनुसार शिष्यवृत्ति और छात्रवृत्ति का संयोजन, गरीब मेधावी छात्रों के लिये मेधावी विद्यार्थी प्रोत्साहन योजना, शिक्षा और खेल परिसरों का विकास जैसे कदम प्रदेश में नयी शैक्षणिक संस्कृति में मददगार साबित हुए हैं।
बेहतर आर्थिक परिदृश्य
· सकल राज्य घरेलू विकास दर |
-4 प्रतिशत |
10.2 प्रतिशत |
· बजट का आकार |
21647 करोड़ रूपये |
1,85,564 करोड़ रूपये |
· कुल कर राजस्व |
6805.10 करोड़ रूपये |
43447 करोड़ रूपये |
· राजस्व आधिक्य |
-4,475 करोड़ रूपये (ऋणात्मक) |
5,588 करोड़ रूपये (वृद्धि) |
· प्रति व्यक्ति आय |
14011 |
72599 |
· आदिवासी उपयोजना |
818.69 करोड़ |
25,862 करोड़ |
· पिछड़ा वर्ग कल्याण बजट |
70.84 करोड़ |
693.09 करोड़ |
· अल्पसंख्यक कल्याण |
2.35 लाख |
68.20 करोड़ |
आज प्रदेश में प्राथमिक शालाएँ 56 हजार 326 से बढ़कर 83 हजार 890 हो गई हैं। इसी तरह माध्यमिक शालाएँ 18 हजार 801 से बढ़कर 30 हजार 341, हाई स्कूल 1515 से 3863, हायर सेकेण्डरी स्कूल 1517 से 2885, आईटीआई 222 से 961, इंजीनियरिंग और पॉलीटेक्निक कॉलेज 104 से 301 और मेडिकल कॉलेज 5 से बढ़कर 18 हो गये हैं।
प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार, शासकीय अस्पतालों में नि:शुल्क जाँच सुविधाओं और नि:शुल्क दवा वितरण की योजनाओं से प्रदेश स्वस्थ प्रदेश बनने की ओर अग्रसर है। सरकार के प्रयासों से मातृ और शिशु मृत्यु दर में पिछले चौदह वर्षों में उल्लेखनीय कमी आई है। संस्थागत प्रसव 26.9 प्रतिशत से बढ़कर उल्लेखनीय 81 प्रतिशत तक पहुँच गया है। इस उपलब्धि में जननी सुरक्षा जैसी सेवा कारगर साबित हुई है। मातृ मृत्यु दर 379 प्रति लाख जीवित जन से घटकर 221 प्रति लाख जीवित जन रह गई है। शिशु मृत्यु दर भी 86 प्रति हजार से घटकर 50 प्रति हजार रह गई है।
प्रदेश में आँगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या आज 92 हजार 270 है, जो वर्ष 2003 में मात्र 47 हजार 433 थे। हैंडपंप भी 3 लाख 66 हजार से बढ़कर 5 लाख 21 हजार हो गये हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की सुगमता के लिये नल–जल योजनाओं की स्थापना में तेजी लायी गयी है। यह योजनाएँ भी इस अरसे में 7,749 से बढ़कर 21 हजार 518 हो गई है। सूक्ष्म एवं लघु उद्योग ग्रामीण अर्थ–व्यवस्था में सहभागी बनने के साथ ही लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के साधन भी बने हैं। इन उद्योगों की संख्या भी 1 लाख 22 हजार से बढ़कर 4 लाख 63 हजार हो गई है।
मध्यप्रदेश की प्रगति और विकास का यह सफर दिनोंदिन नये पड़ाव पाने की ओर अग्रसर है। यह अगर किसी के लिये अजूबा है, तो फिर इस अजूबे को साकार करने में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशवासी दोनों बधाई के पात्र हैं। यह सफर सरकार के साथ समाज के खड़ा होने का भी सफल उदाहरण है।