महाशिवरात्रि और होली के बीच में आती है रंगभरी एकादशी. इस बार यह एकादशी 26 फरवरी को है. इस दिन बाबा विश्वनाथ को दूल्हे की तरह सजाया जाता है. क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती शादी के बाद पहली बार काशी आए थे. इसी खुशी में काशी में होली से पहले ही रंगों के साथ जश्न शुरू हो जाता है.
रंगभरी एकादशी के दिन काशी विश्वनाथ को अच्छे से तैयार करके घुमाया जाता है. मान्यता है आशीर्वाद देने के लिए बाबा अपने भक्तों और श्रद्धालुओं के बीच जाते हैं. साथ में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है. और, इसी दिन से काशी में होली की शुरुआत होती है. आपको बता दें काशी में हर साल बाबा विश्वनाथ का भव्य श्रृंगार रंगभरी एकादशी, दीवाली के बाद आने वाली अन्नकूट और महाशिवरात्रि के दौरान किया जाता है.
कहा जाता है कि रंगभरी एकादशी से ही घरों में शुभ और मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाती है. इसके अलावा जिन लोगों के घरों मृत्यु के कारण त्योहार रुके होते हैं, इस एकादशी से उन घरों में त्योहारों को उठाया जाता है.
बाबा विश्वनाथ की प्रमिता को अच्छे से सजाने और घुमाने के बाद इस दिन एक-दूसरे को गुलाल लगाया जाता है. शिव और पार्वती से जुड़े कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. खुशियों और रंगों के साथ यहां भक्त हर हर महादेव के जयकारे लगाते हैं.
काशी में ना होकर भी आप इस रंगभरी एकादशी को अपने घर पर मना सकते हैं. इसके लिए नीचे दिए गए कार्य करें.
सुबह उठकर नहाएं और शिव-पार्वती की पूजा करें शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर पर गुलाल लगाएं. भगवान शिव को प्रिय चीज़ें जैसे बेलपत्र दूध इत्र और भांग चढ़ाएं. रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसी वजह से इस दिन भगवान विष्णु को प्रिय आवंले के पेड़ की पूजा भी होती है.