नारायण भास्कर खरे प्रमुख सार्वजनिक कार्यकर्ता, चिकित्सक एवं मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री रह चुके थे। वह हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे थे।
प्रारम्भिक जीवन: डॉ. नारायण भास्कर खरे का जन्म 16 मार्च, 1882 को महाराष्ट्र के पनवेल में हुआ था। उनके पिता नारायण बल्ला खरे वकील थे। लाहौर मेडिकल कॉलेज से एम. डी. की डिग्री पाने वाले वह पहले व्यक्ति थे। परीक्षा पास करने के बाद कुछ वर्षों तक वे मध्य प्रदेश और बरार की स्वास्थ्य सेवाओं में काम करते रहे, परंतु अंग्रेज़ अधिकारियों के अपमानजनक व्यवहार के कारण उन्होंने 1916 में इस्तीफ़ा दे दिया और नागपुर में निजी प्रैक्टिस करने लगे।
राजनीतिक कॅरियर: नारायण भास्कर खरे नागपुर में अपने निजी प्रैक्टिस के दौरान ही काँग्रेस में सम्मिलित हो गये और 1923 से 1929 तक मध्य प्रदेश कौंसिल के सदस्य रहे। उन्होंने 1935 से 1937 तक केंद्रीय असेम्बली में काँग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। 1937 में उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। किंतु 1938 में अनुशासनात्मक कारणों से डॉ. खरे को काँग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद ही वह गाँधी जी और काँग्रेस के कट्टर विरोधी बन गये और वाइसरायने 1943 से 1946 तक उन्हें अपनी एक्जिक्यूटिव का सदस्य नियुक्त कर लिया। 1949 में वह हिंदू महासभा में सम्मिलित होकर उसके अध्यक्ष बन गए। सभा की ओर से ही संविधान परिषद और 1952 से 1957 तक लोकसभा के सदस्य रहे। देश विभाजन के प्रबल विरोधी डॉ. खरे देश का नाम ‘हिन्दूराष्ट्र’ और राष्ट्रभाषा संस्कृत को बनाने के पक्षपाती थे। विभिन्न देशों में भारतवासियों के प्रति रंग-भेद के कारण जो असमानता का व्यवहार होता था, डॉ. खरे उसका सदा विरोध करते रहे।
निधन: नारायण भास्कर खरे का वर्ष 1969 में देहांत हो गया।