अचानक कैश की बढ़ी मांग और देश के कई हिस्सों में एटीएम में कैश उपलब्ध न होने से रिजर्व बैंक को बैकफुट पर आना पड़ा. सरकार और रिजर्व बैंक ने हालात सुधारने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं, लेकिन कुछ नहीं कहा जा सकता कि स्थिति कब सामान्य होगी. इन सबके बीच नकदी संकट की दो ऐसी वजहें हैं जिन पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा.
कैश की तंगी के लिए तरह-तरह की वजहें बताई जा रही हैं. सरकार और रिजर्व बैंक ने जिन वजहों को अब तक बताया है उनमें बड़े नोटों का बंद होना, कर्नाटक के चुनाव के पहले नोटों की मांग बढ़ जाना, देश के कई हिस्सों में त्योहार, फसल सीजन आदि की वजह से नकदी की भारी निकासी आदि शामिल हैं. लेकिन गौर करने की बात तो यह है कि त्योहार तो हर साल आते हैं और चुनाव भी एक ही राज्य में है. इसके पहले त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय, गुजरात, हिमाचल में चुनाव हो चुके हैं. लेकिन पहले ऐसे हालात तो कभी नहीं देखे गए. दो ऐसी वजहें हैं जिन पर गौर करना होगा.
इन सबके बीच अगर रिजर्व बैंक की हाल की एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो देश के बैंकों में 30 मार्च, 2018 तक कुल जमा 114.75 लाख करोड़ रुपये था, जबकि एक साल पहले यह 107.58 लाख करोड़ रुपये था. इस तरह इसमें बढ़त तो हुई है लेकिन एक वित्त वर्ष में महज 6.7 फीसदी. यह पिछले 54 वर्ष में बैंकों के जमा में हुई सबसे कम बढ़त है. जानकार इसके लिए नोटबंदी के दौरान भारी जमा की वजह से बेस ज्यादा होने और बैंकों के ब्याज दर घटने को वजह बता रहे हैं. बैंको के ब्याज दर कम होने से लोग एफडी की जगह इक्विटी म्यूचुअल फंड में पैसा ज्यादा लगा रहे हैं.