जैव-विविधता बढ़ी और जुड़े आदिवासी विकास की मुख्य धारा से
मध्यप्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों से ग्रामों के विस्थापन की कार्यवाही के लिए वर्ष 2011 से बहुत प्रभावशाली और कल्याणकारी कदम उठाए गए हैं। इससे वन्य-प्राणियों के वास स्थल में वृद्धि होने के साथ आदिवासी भी विकास की मुख्य-धारा से जुड़े हैं। प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व क्षेत्रों, विशेष तौर से क्रिटिकल टाइगर हेबीटेट (CTH) से सम्पूर्ण गाँवों को विस्थापित करने का प्रयास किया गया है।
इन सभी कार्यों, नीतियों को मैदानी स्तर पर सही रूप में लागू करने के लिये राज्य शासन द्वारा अलग से विस्थापन बजट बनाकर 118359.68 लाख रूपए व्यय किए जा चुके हैं। कैम्पा मद से विस्थापन के लिए माँग के अनुसार राशि उपलब्ध कराई जा रही है। लगभग 150 करोड़ रूपए की राशि विस्थापन और विस्थापन के बाद आवास स्थलों का विकास करने के लिए उपलब्ध कराई जा चुकी है।
वर्ष 2011 से लेकर जुलाई 2017 की अवधि में कान्हा टाइगर रिजर्व के (CTH) समस्त गाँवों का विस्थापन किया जा चुका है। अब इस रिजर्व के क्रिटिकल टाइगर हेबीटेट क्षेत्र में कोई भी गाँव नहीं है। रिजर्व के बालाघाट क्षेत्र के बड़े गाँव जैसे झोलर, अजानपुर, सुकड़ी, लिंगा, जामी विस्थापित हो चुके हैं। इस लाभ यह हुआ कि यहाँ इस क्षेत्र में अत्यंत ही महत्वपूर्ण वन्य-प्राणी बारासिंघा अपने आप आकर डेरा जमा चुके हैं। निकट भविष्य में इस रिजर्व में लगभग एक हजार से भी अधिक बारासिंघा हो जायेगें। कान्हा टाइगर रिजर्व के फेन अभयारण्य से एकमात्र गाँव साजालगान का भी सफल विस्थापन किया जा चुका है। विस्थापित ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार को देखते हुए रिजर्व के बफर जोन में स्थित अन्य ग्राम भी विस्थापन के लिए प्रयासरत हैं।
विस्थापन के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण सफलता सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में प्राप्त हुई है। यहाँ पर वर्ष 2004 में धांई वनग्राम के विस्थापन के बाद वर्ष 2011 से लगातार गाँवों का विस्थापन हो रहा है। जुलाई 2017 तक 42 गाँवों का सफल विस्थापन हो चुका है। यहाँ कुल 4100 यूनिट विस्थापित हुई हैं। इस रिजर्व में विस्थापित ग्रामीणों की संख्या दस हजार है। रिजर्व में अप्रैल 2011 से जुलाई 2017 तक 39 गाँवों को विस्थापित किया गया है। मुख्यमंत्री, वरिष्ठ मंत्रियों, वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा विस्थापन के कार्यों को देखा जा चुका है रिजर्व के अच्छे विस्थापन के लिए एन.टी.सी.ए. द्वारा वर्ष 2011 एवँ 2016 में सर्वश्रेष्ठ विस्थापन का पुरस्कार भी दिया गया है। इस वर्ष जून-जुलाई 2017 में भी माना मालिनी तथा साकई ग्रामों को बरसात के पहले नये स्थलों पर पुनस्थापित किया जा चुका है।
पर्यटन कैबिनेट के सितम्बर 2016 के निर्णय के अनुसार यह तय किया गया है कि ऐसे गाँव, जो घने जंगलों के बीच और मुख्य नगरों एवं मार्गों से दूर स्थित हैं और स्वेच्छा से विस्थापन के लिए तैयार हो, तो उन्हें विस्थापित किया जा सकता है। इस नीति से क्रिटिकल टाइगर हेबीटेट के बाहर कॉरीडोर, बफर तथा अन्य क्षेत्रों में बसे हुए, यहाँ तक कि क्षेत्रीय वन-मण्डलों से भी इच्छुक ग्रामीणों का विस्थापन संभव हो रहा है। इससे वनों को पुनर्जीवन देने और उन्हें जैविक दबाव से पूरी तरह मुक्त रखने में मदद मिलेगी साथ ही जैव विविधता में वृद्धि की प्रबल संभावना बनेगी। राज्य सरकार दृष्टिपत्र 2018 में सभी संरक्षित क्षेत्रों से भी विस्थापन के लिए संकल्प लिया गया है।
संजय टाइगर रिजर्व में भी 10 गाँवों का सफल विस्थापन पिछले 2 वर्षों में किया जा चुका है। अब वह दिन दूर नहीं है जब इस रिजर्व में विस्थापन से रिक्त स्थलों में जल-स्त्रोत, चारागाह इत्यादि उपलब्ध कराये जाने के कारण रहवास स्थल विकसित हो सकेगा और जंगली हाथी यहाँ आकर निवास भी करने लगेंगे। जहाँ एक ओर इस रिजर्व में बाघ कभी-कभार दिखते थे, आज यहाँ लगभग 10 से अधिक बाघों का विचरण है। कैमरा ट्रेप में हर क्षेत्र में बाघ एवँ वन्य-प्राणी दिख रहे हैं।
नौरादेही अभयारण्य में ग्रामीणों द्वारा सहमति दिए जाने पर विस्थापन का कार्य प्रगति पर है। दो वर्ष में 8 ग्रामों को सफलता से विस्थापित किया जा चुका है। भविष्य में भी विस्थापन की योजना हैं। ग्रामवासी विस्थापन के लिए बहुत लालायित हैं और स्वेच्छा से विस्थापन की माँग कर रहे हैं। केन-बेतवा लिंक परियोजना में बाँधों के बनने से जो जल-भराव पन्ना टाइगर रिजर्व में होगा, उसके फलस्वरूप बाघों के रहवास स्थल में आई कमी को इस अभयारण्य को पन्ना लैण्ड स्केप से जोड़कर पूरा किये जाने की योजना है।
ग्रामीणों की सहमति होने से देवास जिले में विन्ध्या लैण्ड स्केप में स्थित खिवनी अभयारण्य में स्थित एक मात्र गाँव खिवनी को भी मई 2017 में विस्थापित किया जा चुका है। इस विस्थापन से भोपाल शहर के दक्षिण में स्थित रातापानी और भोपाल शहर में पाए जा रहे बाघों को प्रस्तावित ओंकारेश्वर राष्ट्रीय उद्यान तक निर्बाध रूप से जाने-आने के लिए विस्तृत कॉरीडोर उपलब्ध होगा। इसके अलावा भोपाल के पास बढ़ती हुई बाघों की संख्या को जंगल में ही रहने और प्राकृतिक रूप से अपनी संख्या बढ़ाने का पूरा अवसर मिलेगा। इसी तारतम्य में रातापानी अभयारण्य के दातखोह ग्राम को भी सफलता से विस्थापित कर दिया गया है।
ओरछा अभयारण्य में स्थित दो गॉव में से एक गाँव लोटना को भी विस्थापित किया जा चुका है। दूसरे गाँव के विस्थापन का कार्य प्रगति पर है। इन विस्थापनों से कई दुर्लभ वन्य-प्राणी प्रजातियॉ और दुर्लभ पौधों की प्रजातियाँ भी सुरक्षित होकर फल-फूल रही हैं।
बालाघाट जिले में भी ग्रामीण विस्थापन के लिए उत्सुक हैं। उनका विस्थापन भी इस वर्ष कराए जाने की योजना है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व एवँ बालाघाट जिले में दुर्लभ एवँ लुप्त वन्य-प्राणी यूरेशियम ओटर तथा स्मूथ कोटेड ओटर जिसे हिन्दी में ऊदबिलाव के नाम से जाना जाता है, दिखाई पड़ रहे हैं।