हिमाचल में भीषण गर्मी के बीच जल संकट विकराल होता जा रहा है। राजधानी शिमला समेत सूबे के करीब तीस शहरी क्षेत्रों में हालात बेकाबू हो रहे हैं। शहरों ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में भी पेयजल के लिए त्राहिमाम की स्थिति है। राजधानी शिमला में पानी नहीं होने के कारण रविवार को रेलगाड़ियों की आवाजाही प्रभावित हो गई।
इंजन के लिए भी पानी न मिलने से शिमला से ट्रेनें डेढ़ से दो घंटे देरी से चलीं। उधर, कई दिनों से पेयजल सप्लाई न होने के कारण रात को भी पानी के लिए मारामारी हो रही है। पानी का टैंकर दिखते ही लोग खाली बर्तन लेकर पानी के लिए दौड़ रहे हैं।
ऐसे हालात के बीच सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। जल संकट प्रभावित क्षेत्रों में टैंकरों से पानी सप्लाई करने के दावे भी हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। पानी के अभाव में राजधानी शिमला समेत प्रदेश के कई क्षेत्रों में पब्लिक टॉयलेट पर ताले लग गए हैं। स्कूलों, दफ्तरों और अस्पतालों तक में पानी नहीं है।हर सरकार की तरह ही इस सरकार ने भी सत्ता में आने से पहले ही हिमाचल के हर व्यक्ति को शुद्ध पेयजल मुहैया करने का वायदा किया। इसके लिए कारगर योजना बनाने की बातें कीं। राजधानी शिमला समेत कई शहरों में तो चौबीसों घंटे पीने का पानी उपलब्ध करवाने के आश्वासन दिए, मगर गर्मियां आते ही इस सरकार की चुस्ती की भी पोल खुल गई है।
शिमला शहर के कई इलाकों में चौथे दिन भी पानी नहीं मिल रहा है। प्रदेश भर में सरकार की 1022 पेयजल स्कीमें आंशिक, आधी या पूरी तरह से सूख चुकी हैं। एक सप्ताह पहले ही ये आंकड़ा 964 योजनाओं का था। यानी एक हफ्ते में ही 58 और स्कीमों पर सूखे का असर पड़ा है। आने वाले दिनों में ये संख्या बढ़ सकती है।
वक्त रहते पेयजल स्रोतों को रिचार्च न करने से अब लोग त्राहिमाम कर रहे हैं। नदी-नालों में चैकडैम बनाकर इन्हें रिचार्च किया जा सकता था। राजधानी छोड़िए, राज्य के दूरदराज गांवों में भी लोग पीने के पानी के लिए तरस गए हैं। कई क्षेत्रों में तो लोग किलोमीटरों दूर से पेयजल का प्रबंध करने को मजबूर हैं। गांवों में लोगों के मवेशी भी प्यासे मर रहे हैं।