दो महीने पहले अररिया लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान जब विधानसभा उपचुनाव को लेकर गणित के समीकरण का विश्लेषण किया जा रहा था तभी यह साफ हो गया था कि जोकीहाट में विधानसभा उपचुनाव में जीत राजद उम्मीदवार की ही होगी और जनता दल यू उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ेगा. हालांकि, आज के परिणाम ने उस वक्त के संभावनाओं को सही साबित कर दिया और बाजी राजद मार ले गई. जोकीकाट में राजद ने 41224 वोटों से जीत दर्ज की. जैसे जीत के कई कारण होते हैं वैसे ही हार के भी कई कारण होते हैं. यहां अगर तेजस्वी की जीत के कारण हैं, तो नीतीश के हार के भी हैं. यह जीत राजद के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि यह चुनाव तेजस्वी और पार्टी ने बिना लालू यादव के लड़ा. हालांकि, पिछले उपचुनाव में भी पार्टी को लालू यादव का साथ नहीं मिला था. एक के बाद एक जीत के साथ तेजस्वी यह साबित कर रहे हैं कि वह अब राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हो गये हैं. मगर नीतीश के लिए इस हार से सबक लेना इसलिए भी अहम है क्योंकि इस चुनाव में जनता दल यू के साथ पूरा प्रशासनिक कुनबा भी था. तो चलिए नजर डालते हैं उन 10 खास बातों पर जो इस चुनाव से साफ हो गईं…तेजस्वी ने जिस तरह से इस उपचुनाव में भी नीतीश कुमार को पटखनी दी है, उससे साफ हो गया है कि राजद और लालू यादव अब तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर भरोसा कर सकते हैं. तेजस्वी ने इस चुनाव में जीत के साथ ही नीतीश को एक बार फिर बता दिया कि वह अब बड़े नेता हो गये हैं. इस उपचुनाव में नीतीश की हार की यह भी वजह हो सकती है कि नीतीश कुमार का भाजपा के साथ जाना शायद मुस्लिम वर्ग को रास नहीं आया और यही वजह है कि उनके समर्थक वोटर कटते जा रहे हैं. जिसका ख़ामियाज़ा उन्हें एक के बाद दूसरे उपचुनावों में उठाना पड़ रहा है. इस नतीजे से यह स्पष्ट हो गया है कि नीतीश कुमार को रामनवमी के दौरान भाजपा के समर्थक और नेताओं द्वारा तलवार के साथ प्रदर्शन का कुछ ज़्यादा ग़ुस्सा झेलना पर रहा है. हर वर्ग के लोग जोकीहाट में नीतीश के काम की तारीफ़ करते रहे, मगर लेकिन बीजेपी के साथ जाने पर अक्सर लोग नीतीश कुमार के बारे में यह कहने लगे कि सता के लिए उन्होंने भाजपा के लोगों के सामने घुटना टेक दिया है.
- नीतीश ने एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया, जिसके ऊपर बलात्कार से लेकर मूर्ति चोरी के आरोप लगे हैं. नतीजों से पहले लोगों के बीच यह चर्चा का विषय था कि आखिर नीतीश कुमार ऐसे लोगों का चयन कैसे कर सकते हैं.
- नीतीश कुमार को अब अपनी हार से सबक़ लेकर पार्टी को एक बार फिर नये सिरे से गढ़ने की जरूरत है. साथ ही नीतीश कुमार को उन बिंदुओं पर ध्यान देने की जरूरत है, जिसकी वजह से वह लगातार उपचुनाव हार रहे हैं.नीतीश कुमार जोकीहाट में सभा करने के दौरान जब मंच पर बैठे थे, तो वहां इंतजाम काफी बुरा था. उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सभा के दौरान इतनी गर्मी होने के बाद भी सीएम नीतीश के लिए एक पंखे का भी इंतजाम नहीं किया. अगर इस तरह से देखा जाए तो यह नीतीश के लिए हार के संकेत थे.
- भले ही नीतीश कुमार के समर्थक इस बात पर पीठ थपथपा रहे हो कि उन्होंने अस्सी हज़ार की लोकसभा उपचुनाव में बढ़त को कम कर दिया लेकिन सचाई है कि जिस सीट पर नीतीश स्थानीय क़द्दावर नेता तसलिमुद्दीन और लालू यादव के विरोध के बाद जीतते थे वो सीट हार गये. क्योंकि मतदाताओं का कहना था कि उनके ऊपर जो भरोसा था कि वो नरेंद्र मोदी से मुक़ाबला कर सकते हैं, वो ख़त्म हो गया. इस सीट पर मोदी से जब तक टक्कर लेते रहे तब तक वोट और जीत मिलती रही और अब जब नीतीश ने घुटने टेक दिये, तब से उनके ऊपर से विश्वास ख़त्म हो गया है.
- तेजस्वी यादव को समझना होगा कि बिहार में बहुत कम सीट जोकीहाट जैसी है. यहां के वोटरों का बनावट भी कुछ अलग है. यहां मुस्लिम मतदाताओं को संख्या अधिक है. ये कुछ सीटों में से एक है, जहां एम-वाई समीकरण जीत दिला सकती है, लेकिन पूरे बिहार में ये बनावट और समीकरण नहीं है.
- तेजस्वी जब तक एम-वाई के साथ अन्य दलित समुदाय और ग़ैर यादव, पिछड़ा को जोड़ने में कामयाब नहीं होते बिहार में सता का ताज दूर रहेगा. वहीं, नीतीश कुमार को यह समझने की जरूरत है कि सुशासन ही उनकी जमापूंजी है. जहां भी वह सुशासन से समझौता करेंगे, उन्हें ऐसे ही हार देखने पड़ेंगे और उनके वोटर भी कटते चले जाएंगे. जोकीहाट में हार के बावजूद नीतीश कुमार के लिए संतोष का एक कारण हो सकता है कि उनकी कुर्सी पर फ़िलहाल कोई ख़तरा नहीं है. लेकिन जब तक वो अपनी पार्टी में जान नहीं डालेंगे, और अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को नज़रंदाज कर धन बल के आधार पर लोगों को राज्य सभा और विधान परिषद भेजते रहेंगे, तब तक ऐन चुनाव के समय कार्यकर्ताओं से मेहनत मेहनत की अपेक्षा नहीं कर सकते.