कैराना लोकसभा उपचुनाव में जीत के साथ ही एक तरह से अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का एक बार फिर से पुर्नजन्म हुआ है. इसके साथ ही आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन इस लोकसभा के लिये यूपी से पहली मुस्लिम सांसद बन गई हैं. सपा, बीएसपी, कांग्रेस और आरएलडी की संयुक्त ताकत के आगे बीजेपी की सारी रणनीति फेल होती नजर आई और कैराना, नूरपुर में की सीटें बीजेपी के हाथ से निकल गई. इस सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत हुई थी. सांसद हुकुम सिंह को यहां पर दो लाख से ज्यादा वोटों से जीत मिली थी. लेकिन उस चुनाव में मोदी लहर के साथ ही मुजफ्फरनगर में जाट-मुस्लिमों के बीच हुये दंगा भी मुद्दा था. जिससे बीजेपी को बहुत फायदा हुआ. इस चुनाव में अखिलेश यादव की एक चाल और बीजेपी की कमियों ने उसे हार के मुंह में धकेल दिया.
इस चुनाव में जहां सपा के स्थानीय नेता और आरएलडी के बड़े नेता मोदी-योगी सरकार को स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों पर घेर रहे थे तो वहीं बीजेपी मुद्दों के लिये जूझती नजर आई. इसी बीच अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर का मामला सामने आया लेकिन जयंत चौधरी ने भी सवाल किया कि इस चुनाव का एजेंडा क्या है, गन्ना या जिन्ना? ये सवाल उस समय उठा जब इलाके के गन्ना किसान बकाया पाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं.
एक बात यह भी तय है कि संयुक्त विपक्ष की उभरती ताकत आगे बीजेपी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. अंकगणित उसके पक्ष में जाता नहीं दिखाई दे रहा है. कैराना में कुल 16 लाख वोटर हैं. जिसमें 5 लाख 50 हजार मुस्लिम, 2,80,000 दलित, 1,90,000 जाट हैं. इस चुनाव में बीजेपी के सामने एक ही प्रत्याशी था जिसकी वजह से वोट बंटने नहीं पाया. अगर 2019 के चुनाव में विपक्ष यही रणनीति अपनाता है तो निश्चित तौर पर बीजेपी के सामने बड़ी मुश्किल आ सकती है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीजेपी नेता इस समय पार्टी की कार्यशैली से नाराज हैं. उनका कहना है कि बाहर से नेता लाये जा रहे हैं लेकिन उनको कोई तवज्जो नहीं मिल रही है. कैराना लोकसभा चुनाव में भी स्थानीय नेताओं को प्रचार में नहीं भेजा गया. कमबेश यही हालत हर विधानसभा क्षेत्र में बनती जा रही है. जो नेता विधायक बन गये हैं वो अब कार्यकर्ताओं के प्रति उदासीन हैं और कुछ विधायक स्थानीय अधिकारियों पर दोष मढ़ रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तक अजित सिंह का जाटों पर पूरा दबदबा था लेकिन 2014 में बीजेपी का जादू पूरी तरह से जाटों पर चला. यही हालत उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में थी. लेकिन अब बीजेपी की सरकारों को लेकर गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ रहा है और इस बीच आरएलडी नेताओं ने जाटों के बीच खूब संपर्क साधा है.