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म.प्र. में बेहतर सिंचाई सुविधा ने बदल दी किसानों की जिंदगी….

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मध्यप्रदेश में पिछले 15 वर्षों से निरंतर बढ़ रहे सिंचाई संसाधनों ने लाखों किसानों की जिन्दगी बदल दी हैं। साढ़े सात लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता वाले इस प्रदेश में आज 40 लाख हेक्टेयर सिंचाई हो रही है। अगले छ: वर्ष में 80 लाख हेक्टेयर तक सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लक्ष्य की तरफ प्रदेश बढ़ चुका है। प्रदेश में बीता दशक जल क्रांति का रहा।

मोहनपुरा वृहद सिंचाई परियोजना वर्ष 2014 में प्रारंभ हुई और 2018 में पूरी हो गई। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अभी 23 जून को इस परियोजना का लोकार्पण किया है। राजगढ़ जिले में लगभग 4000 करोड़ रुपये लागत से बनी मोहनपुरा सिंचाई परियोजना से 727 गाँवों को लाभ होगा। इस परियोजना में नेवज नदी पर निर्मित बाँध से नागरिकों को 8 मिलियन घन मीटर पीने का पानी और 5 मिलियन घन मीटर औद्योगिक क्षेत्रों के लिये पानी मिलेगा। इसकी जल-भराव क्षमता 616.27 मिलियन घन मीटर है। एक लाख चौंतीस हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई उपलब्ध कराने वाली इस परियोजना से पथरीले और कृषि में पिछड़े माने गये राजगढ़ क्षेत्र का कायाकल्प होगा। राज्य शासन ने इस परियोजना से किसानों के खेतों में सीधे पानी पहुँचाने की व्यवस्था सुनिश्चित की है। इसी इलाके में कुण्डालिया बांध का निर्माण भी पूरा किया गया है। इससे करीब सवा लाख हेक्टेयर में रूपांकित सिंचाई होगी। इसी तरह सिर्फ चार वर्ष में बिलगांव बांध का निर्माण भी पूर्ण हुआ है। इससे करीब दस हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी।

मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री श्री मोदी के ‘पर ड्राप मोर क्रॉप’ के सिद्धांत को अपनाते हुए नई परियोजनाओं में नहर प्रणाली की जगह भूमिगत पाइप लाईन के माध्यम से सूक्ष्‍म सिंचाई पद्धति पर जोर दिया गया है। इस पद्धति से वर्ष 2024 तक करीब 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी। सिंचाई परियोजनाओं से जल उपयोग क्षमता लगभग दोगुनी हो जाएगी। पहले यह क्षमता 43 प्रतिशत थी। इसे सूक्ष्म सिंचाई के सहारे 80-85 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य है। समग्र रूप से सिंचाई जल उपयोग दक्षता में बीस प्रतिशत वृद्धि लाई जाएगी।

प्रदेश की सिंचाई परियोजनाओं का उद्देश्य किसानों की समृद्धि और सम्पूर्ण आबादी की खुशहाली है। किसी भी परियोजना के क्रियान्वयन से कुछ लोगों को विस्थापित होना पड़ता है, लेकिन उनकी समुचित पुनर्वास व्यवस्था से विस्थापितों की तकलीफें दूरी की जाती हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने विस्थापितों को आवश्यकतानुसार जरूरी सुविधाएँ देकर भली-भाँति नई जगह पर बसने में पूरी मदद की है। सिंचाई परियोजनाओं से इन कस्बों और ग्रामों में आगे चलकर घर-घर नल की टोंटी से पानी पहुँचाने की तैयारी भी की जा रही है।

प्रदेश में कुछ जिले सिंचाई के कम प्रतिशत के कारण अपेक्षित प्रगति से पीछे रह गये हैं। ऐसा ही एक जिला शिवपुरी भी है। यहाँ सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने अभी 30 जुलाई को सिंचाई परियोजना का शिलान्यास किया है। लोअर ओर वृहद परियोजना से पौने तीन लाख एकड़ क्षेत्र में सिंचाई होगी। करीब 2208 करोड़ रूपये लागत की इस परियोजना से शिवपुरी जिले के 306 और दतिया जिले के 37 अर्थात कुल 343 ग्रामों में बेहतर सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाई जा सकेगी। परियोजना का बांध स्थल बामौरकलां है, जो चंदेरी से मात्र बीस किलोमीटर दूरी पर है। अशोकनगर जिले की सीमा से बहने वाली बेतवा नदी की सहायक नदी पर इस बांध का निर्माण किया जाएगा। परियोजना से कुल एक लाख 10 हजार 400 हेक्टेयर क्षेत्र अर्थात् करीब पौने तीन लाख एकड़ में सिंचाई होगी।

यह स्थापित सत्य है कि मध्यप्रदेश को निरंतर कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त होने की एक प्रमुख वजह राज्य में अच्छी सिंचाई सुविधाओं का उपलब्ध होना भी है। जल संसाधन विभाग दिन-प्रति-दिन सिंचाई क्षमता में वृद्धि के लिए कार्य कर रहा है। प्रदेश में 20 वृहद परियोजनाओं का काम पूरा हो गया है। सिंचाई प्रबंधन में किसानों की भागीदारी में प्रदेश, आंध्रप्रदेश के बाद दूसरा राज्य है। यहाँ करीब दो हजार जल उपभोक्ता संस्थाएँ कार्य कर रही हैं। ये संस्थाएँ करीब 25 लाख हेक्टेयर कमांड क्षेत्र के सिंचाई प्रबंधन का कार्य सहभागिता से कर रही हैं। नहर के आखिरी छोर के किसानों से मोबाइल फोन द्वारा अधिकारियों का सम्पर्क रहता है। इससे शत-प्रतिशत सिंचाई के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग मिल रहा हैं।

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