भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाने वाले श्रीकृष्ण की न केवल भारत में बल्कि पूरे जगत में अपार महिमा है. उन्हें मानने वालों की संख्या करोड़ों-अरबों के भी पार है. यही कारण है कि न केवल देश के भीतर, बल्कि विदेशों में भी यशोदा के कान्हा के कई मंदिर स्थापित हैं.
भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में धरती पर आठवां अवतार लिया था. भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे इसलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी और जन्माष्टमी के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झूलाने की परंपरा भी है.
व्रत की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें.
सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें.
व्रत के दिन सुबह स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं.
इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें:
अब शाम के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें.
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अगर ऐसा चित्र मिल जाए तो बेहतर रहता है.
इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें. पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः लेना चाहिए.
फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-
अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करते हुए रतजगा करें.