देश की सियासत में इन दिनों नया रंग देखने को मिल रहा है. बीजेपी से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने को मजबूर हैं. वहीं, मुसलमानों से दूरी बनाकर चलने वाली बीजेपी अब उन्हें ही गले लगाने की कवायद में जुटी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मस्जिद जा रहे हैं और इमाम हुसैन की शहादत के मातम में शामिल होते हैं. वहीं मोदी ही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भीमुस्लिम प्रेम में गोते लगाने लगा है.
RSS द्वारा दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन मंगलवार को भागवत ने स्पष्ट किया कि इस देश में अगर मुसलमान नहीं रहेंगे, तो ये हिंदुत्व नहीं होगा उन्होंने कहा, ‘हम कहते हैं कि हमारा हिंदू राष्ट्र है. हिंदू राष्ट्र है इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं चाहिए, ऐसा बिल्कुल नहीं होता. जिस दिन ये बात कही जाएगी कि यहां मुस्लिम नहीं चाहिए, उस दिन वो हिंदुत्व नहीं रहेगा बता दें कि आरएएस हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना के साथ मुस्लिम तुष्टीकरण, धर्मांतरण, गौहत्या, राम मंदिर, कॉमन सिविल कोड जैसे ठोस धार्मिक मुद्दों को उठाता रहा है. उसी आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवतअब मुस्लिम प्रेम की बातें करने लगे हैं.
आरएसएस क्या गोलवलकर के दौर से बाहर निकलकर 21वीं सदी के मोहन भागवत के आधुनिक एजेंडे को अपनाने जा रहा है या फिर अपने आधार को बढ़ाने की कोशिश में है. इसके अलावा संघ भविष्य की सियासत में अपने आपको सेफ रखने के लिए जान बूझकर बदलाव की बात कर रहा है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद कहते हैं कि संघ प्रमुख का बयान राजनीतिक स्टैंड के तौर पर है. उन्होंने कहा कि उदारवादी हिंदू जो विकास के नाम पर बीजेपी से जुड़ा था, लिंचिंग और हिंसक घटनाओं के कारण दूर हो रहा है. उन्हें फिर से करीब लाने के मद्देनजर ऐसी बातें कही जा रही हैं.
सज्जाद कहते हैं कि संघ अगर वाकई बदलाव की दिशा में बढ़ रहा है तो उसे वैचारिक परिवर्तन अपने अंदर करना होगा. इसके लिए पहले सावरकर द्वारा दिए गए हिंदुत्व के सिद्धांत, जिसमें वो गैर हिंदू भारतीयों को राष्ट्रवाद से अलग रखते हैं, को पूर्णरूप से नकारे. उन्होंने कहा कि लव जेहाद, घर वापसी और गोहत्या के नाम पर होने वाली लिंचिंग के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन छेड़े और आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा के लिए कोशिश करें.
प्रोफेसर सज्जाद कहते हैं कि संघ को लेकर लगातार सवाल खड़े किए जा रहे हैं. ऐसे में संघ को अपने आपको सेफ करने के मकसद से भी इस तरह का बयान देना पड़ रहा है. जबकि संघ प्रमुख मोहन भागवत मुस्लिम विरोधी कई बयान दे चुके हैं. इससे उनके स्टैंड को समझा जा सकता है.
दादरी में गोहत्या के नाम पर अखलाक की हत्या के मामले पर मोहन भागवत ने कहा था, ‘अफ्रीका के एक देश में लोग गाय का खून पीते हैं, लेकिन इस बात का ख्याल रखा जाता है कि गाय मरे नहीं संघ प्रमुख बनने से पहले मोहन भागवत ने मुसलमानों की बढ़ती आबादी के मद्देनजर कहा था कि हिन्दू औरतों को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए राष्ट्रीय मुस्लिम मंच पर हुई भारत माता की आरती की प्रशंसा करते हुए भागवत ने कहा था कि मुस्लिम इबादत से मुस्लिम हैं, लेकिन राष्ट्रीयता के नाते वे हिंदू ही हैं.
कर्नाटक के उडुपि के धर्मसंसद में मोहन भागवत ने कहा था कि राम जन्मभूमि पर राम मंदिर ही बनेगा और कुछ नहीं बनेगा. मंदिर उन्हीं पत्थरों से बनेगा. ये मंदिर उन्हीं की अगुवाई में बनेगा जो इसका झंडा उठाकर पिछले 20 से 25 वर्षों से चल रहे हैं.’ जबकि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है. इसके बावजूद उन्होंने राम मंदिर बनाने की बात कही थी संघ और बीजेपी के मुस्लिम प्रेम को 2019 के लोकसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है. बीजेपी के साथ हिंदू वोट का बड़ा तबका जुड़ा हुआ है. ऐसे में अब उन्हें मुसलमानों के एक खास तबके की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने की कवायद शुरू की है.
बता दें कि सीएसडीएस के रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनावों में 10 फीसदी मुस्लिमों ने बीजेपी को वोट दिया था. 2017 के यूपी चुनाव में ये आंकड़ा करीब 12 फीसदी पहुंच गया है. ऐसे में 2019 में मुस्लिम मतों के बड़े तबके को जोड़ने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन तलाक पर जहां मुस्लिम महिलाओं को मुहर्रम के मौके पर मुस्लिम बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में पहुंचकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. इसके बाद अब संघ प्रमुख मोहन भागवत मुस्लिम के बिना हिंदुत्व अधूरा मान रहे हैं.