आधुनिकता की दौड़ में मिट्टी के घड़े का स्थान फ्रिज और दीये का स्थान मोमबत्ती ने ले लिया। बदलते परिवेश से कुम्हार का काम करने वाले कई लोग बेरोजगार हो गए हैं। लोग घड़े की जगह फ्रिज का इस्तेमाल करते हैं, जिस वजह से गरीब का फ्रिज कहलाने वाला घड़ा अब कम बिकता है। दीवाली पर रीति-रिवाज निभाने की मजबूरी न हो तो दीये व घड़े बिकने बंद ही हो जाएं। वैसे भी लोग अब मोमबत्ती या चीन की झालर लगाना ज्यादा उचित समझते हैं। कुम्हार का काम दिन प्रतिदिन समाप्त होता जा रहा है, लेकिन इस के साथ हम क्या खत्म कर रहे हैं शायद इसकी जानकारी भी हमें नहीं है।फ्रिज का पानी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, लेकिन बावजूद इसके हम फ्रिज के पानी के आदी होते जा रहे हैं। बाजार में मौजूद पानी को फिल्टर करने वाले अधिकतर उपकरण पानी को साफ तो करते हैं, लेकिन उसके साथ ही पानी में मौजूद मिनरल को भी खत्म कर देते हैं। वहीं घड़े के पानी को यदि जांचा जाए तो घड़े का पानी एल्कालाइन बन जाता है।
पानी को स्वच्छ करने वाले अधिकतर उपकरण पानी को साफ करते हैं और कुछ उपकरण पानी में मिनरल को बैलेंस करते हैं। जिस पानी में मिनरल बराबर मात्रा में हो और जो पानी स्वच्छ भी हो उसे एल्कलाइन पानी कहते हैं। इसे जांचने के लिए एक खास तरह का कैमिकल पानी में डाला जाता है जिससे पानी का रंग नीला हो जाता है। इसी कैमिकल से घड़े के पानी की जांच करें तो यह नीले रंग में तबदील हो जाता है। लेकिन घड़े में पानी कम से कम छह घंटे जरूर रहना चाहिए।दम तोड़ता मिट्टी के घड़े का कारोबार मिट्टी के घड़े का कारोबार अब अंतिम सांसें गिन रहा है। बाजार में मांग न होने के कारण कुम्हार भी अब इस कारोबार से मुंह मोड़ चुके हैं। गिने-चुने कुम्हार हैं जो अब घडे़ बना रहे हैं। लेकिन अब उनकी लागत भी वसूल नहीं हो पाती। लगातार घाटे में चल रहे कारोबार को मात्र दीवाली पर एक उम्मीद पैदा होती है, लेकिन आजकल दिखावे के कारण लोग बिजली के उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
बाजार में मौजूद अधिकतर वाटर प्यूरीफायर (पानी शोधन यंत्र) पानी तो साफ करते हैं, लेकिन पोषक तत्व नष्ट कर देते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है। मात्र एक-दो कंपनी के उत्पाद ऐसे हैं जो एल्कलाइन वाटर प्यूरीफायर तैयार करते हैं।