राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने आज राम मंदिर पर बड़ा बयान दिया है. सुप्रीम कोर्ट में मामला जनवरी तक टलने को लेकर संघ ने कहा कि कोर्ट को हिंदू समाज की भावनाओं को समझना चाहिए. आरएसएस की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की 3 दिवसीय बैठक खत्म होने के बाद संघ के सरकार्यवाहक भैय्याजी जोशी ने कहा, ”कोर्ट के फैसले में देरी हो रही है कोर्ट ने अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया. वह उनका अधिकार क्षेत्र है. लेकिन जब पूछा गया कि इस मामले पर आगे सुनवाई कब होगी? तो कोर्ट ने कहा कि उसके पास और भी प्राथमिकताएं हैं.उन्होंने आगे कहा, ”कोर्ट की इस टिप्पणी से हिंदू समाज अपमानित महसूस कर रहा है. हम अदालत से विनती करते हैं कि वह इसपर फिर से विचार करे. हिंदू भावना और आस्था का ख्याल रखे.”आरएसएस ने कहा कि आवश्यकता पड़ी तो फिर से आंदोलन करेंगे. पिछले 30 सालों से आंदोलन चल रहा है. मंदिर बनाने में बहुत देरी हो चुकी है. अगर कोई रास्ता नहीं बचता है तो कानून ही आखिरी रास्ता है.
मुंबई में हुई आरएसएस कार्यकारिणी की बैठक में अमित शाह ने भी आज शिरकत की. शाह संघ प्रमुख मोहन भागवत से भी मिले. जोशी ने कहा कि अमित शाह से सुबह मुलाकात हुई. इस दौरान राम मंदिर समेत कई विषयो पर गंभीर चर्चा हुई. उन्होंने कहा कि जब तक न्यायालय फैसला नहीं देता है, सरकार के सामने भी चुनौती रहेगी. जोशी ने राम मंदिर पर अध्यादेश की उठ रही मांगों पर कहा कि अध्यादेश जिनको मांगना है वो मांगें, ला सकते हैं कि नहीं वो निर्णय सरकार को करना है. उन्होंने कहा कि सरकार या बीजेपी पर दबाव की बात नहीं है, यहां आपसी सहमति जरूरी है.
ध्यान रहे कि 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर कहा था कि हम इसपर अब जनवरी में सुनवाई करेंगे. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था, “हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं. मामला जनवरी, फरवरी या मार्च में कब आएगा, यह फैसला उचित पीठ को करना होगा.” साफ है कि अयोध्या मामले का निर्णय 2019 लोकसभा चुनाव से पहले नहीं हो पाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद आरएसएस, वीएचपी, शिवसेना और बीजेपी के कुछ नेताओं ने सरकार से कानून लाए जाने की मांग की है. वहीं अन्य पार्टियों का कहना है कि सरकार और आंदोलनकारियों को कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए. आपको बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में विवादित स्थल को तीन भागों -रामलला, निर्मोही अखाड़ा व मुस्लिम पक्षकारों- में बांटा था. इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.