बाबूलाल गौर की पहचान बन चुकी भोपाल की गोविंदपुरा सीट ‘गौरमय’ नजर आती है. इस सीट पर गौर पिछले 9 विधानसभा चुनावों से जीत हासिल करते आ रहे हैं. जीत भी छोटी नहीं बल्कि इतनी बड़ी कि तीन चुनावों में तो इस जीत की चर्चा सूबे में चारों तरफ हुई है. एक ऐसी सीट जिस पर विरोधियों का कोई दांव आज तक नहीं चला है क्योंकि इस सीट पर बीजेपी के अंगद कहे जाने वाले बाबूलाल गौर का पांव जमा हुआ है. लेकिन, समीकरण तब बदल गये जब शिवराज सरकार ने बाबूलाल गौर को पार्टी के 75 प्लस फॉर्मूले के तहत मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया है. इसके बाद कयासों का दौर शुरु हुआ कि अब पार्टी गौर साहब को चुनावी मैदान में नहीं उतारेगी. इसके बाद राजधानी के अन्य नेताओं में गौर का वारिस बनने की होड़ लग गई,
अगर पार्टी इस चुनाव में बाबूलाल गौर को टिकट नहीं देती तो इस स्थिति में उनकी बहू और भोपाल की पूर्व महापौर कृष्णा गौर की सबसे बड़ी दावेदारी नजर आती है. गोविंदपुरा सीट पर बीजेपी से ज्यादा गौर के नाम का बोलबाला है. गौर ने इस सीट पर जीत की शुरूआत निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर की थी. यही वजह है कि इस सीट से गौर के सर्मथक उनके चुनाव न लड़ने की स्थिति में उनकी बहू को ही टिकट की मांग पर अडे़ हैं. कृष्णा गौर ने भी पार्टी के समक्ष अपनी दावेदारी जता दी है, जिससे यह भी तय है कि अगर पार्टी उनको टिकट देगी तो गौर भी प्रचार के लिये जायेंगे.
बीजेपी भी इस बात को अच्छी तरह जानती है कि गोविंदपुरा सीट से किसी को भी प्रत्याशी बनाया जाये, लेकिन जब तक उसका सर्मथन बाबूलाल गौर नहीं करेंगे तब तक प्रत्याशी के लिये जीत आसान नहीं होगी. ऐसे में पार्टी अगर गौर की अनुमति के बिना किसी को प्रत्याशी बनाती है तो इसका खामियाजा उसे उठाना पड़ सकता है. अगर यह कहा जाये की गोविंदपुरा सीट पर गौर की कृपा दृष्टि के बगैर जीत नहीं मिलेगी तो गलत नहीं होगा.
गोविंदपुरा सीट पर बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर के अलावा और नेता भी दावेदारी जता रहे हैं, जिनमें वर्तमान महापौर आलोक शर्मा, बीजेपी के प्रदेश महामंत्री बीडी शर्मा, पर्यटन विकास विभाग के अध्यक्ष तपन भौमिक शामिल हैं. लेकिन, पार्टी इस सीट पर पशोपेश की स्थिति में नजर आ रही है. ऐसे में पार्टी यहां से कोई जोखिम लेने के मूड में दिखाई नहीं दे रही है क्योंकि एक गलत कदम उसे अपने सबसे बड़े गढ़ में नुकसान पहुंचा सकता है.