12 नवंबर सोमवार कार्तिक शुक्ल पंचमी है. इसी दिन छठ का खरना मनाया जाता है. खरना के दिन खीर पूड़ी बनाई जाती है. सोमवार को ज्ञान पंचमी और जया पंचमी भी है. माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी को खीर पूड़ी का भोग लगाएं. कार्तिक छठ को सूर्य बच्चों का मित्र बन जाता है. संतानहीन को संतान मिलेगा. छठ बहुत कठिन और सावधानी का पर्व होता है. छठी मैया बहुत से लोगों की हर मनोकामना पहले ही पूरी कर देती है. लोग फिर अपनी मन्नत पूरी होने पर छठ की व्रत पूजा करते हैं.
सोमवार को छठ का खरना है-
साफ़ सुथरे चूल्हे में खीर पूड़ी बनेगी
महिलाएं और छठ व्रती सुबह स्नान करके साफ़ सुथरे वस्त्र धारण करेंगे
नाक से माथे के मांग तक सिंदूर लगेगा
अरवा बासमती चावल, गाय का दूध
और गुड़ का इंतज़ाम करेंगे
चीनी इस्तेमाल नहीं होगी
खीर बनेगी और आटे की पूड़ी तेल या घी में बनेगी
गुन्दा आटा होगा, अरवा चावल पीसकर मिलाएंगे
सूर्य को चढ़ाने के प्रसाद के ठेकुआ में गुड़ डलेगा
प्रसाद बांटने के लिए चीनी भी डाल सकते है
घी में ठेकुआ की पीठी छान लेंगे
आटे, गुड़ से बना ठेकुआ या आटे का हलवा
गन्ना, केले, अदरक, मूली, मीठा निम्बू, कच्ची हल्दी, नयी फसल
लाल फूल, लाल चन्दन, धूप, दीपक, बांस की डालिया
ताम्बे का पात्र सूप, शुद्ध जल, दूध, चावल, अक्षत
इस दिन व्रती शुद्ध मन से सूर्य देव और छठ मां की पूजा करके गुड़ की खीर का भोग लगाते हैं. खीर पकाने के लिए साठी के चावल का प्रयोग किया जाता है. भोजन काफी शुद्ध तरीके से बनाया जाता है. खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है. व्रती खीर अपने हाथों से पकाते हैं. शाम को प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.
13 नवंबर को दें डूबते सूर्य को अर्घ्य-
सुबह को सूर्य पूजा और छठी मैया की पूजा करेंगे
छठ के सामान की धुलाई और साफ़ सफाई करेंगे
साफ़ करके डलिया में से सूप में ठेकुआ, हलवा, फल फूल
चन्दन रखना है. सबसे पहले सूप लेकर पानी में उतरा जाता है.
13 नवंबर मंगलवार शाम को नदी तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देंगे
इसे संझिया अर्घ्य बोलते हैं.
फिर सूर्य पूजा के बाद फल प्रसाद डालिया टोकरी में रख लेंगे
दूसरे दिन सुबह सूर्योदय पर सूर्य को अर्घ्य देने
के लिए फिर धो लें.