छठ का पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है. यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है. इस समय जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है.
माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है और ये अर्घ्य उन्हीं को दिया जाता है. संध्या समय अर्घ्य देने से कुछ विशेष तरह के लाभ होते हैं. इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है, लम्बी आयु मिलती है और आर्थिक सम्पन्नता आती है. इस समय का अर्घ्य विद्यार्थी भी दे सकते हैं. इससे उनको शिक्षा में भी लाभ होगा. इस बार छठ का पहला अर्घ्य 13 नवंबर को दिया जाएगा.
अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने के नियम क्या हैं?
अर्घ्य देने के लिए जल में जरा सा दूध मिलाया जाता है, बहुत सारा दूध व्यर्थ न करें.
टोकरी में फल और ठेकुवा आदि सजाकर सूर्य देव की उपासना करें.
उपासना और अर्घ्य के बाद आपकी जो भी मनोकामना है, उसे पूरी करने की प्रार्थना करें.
प्रयास करें कि सूर्य को जब अर्घ्य दे रहे हों, सूर्य का रंग लाल हो.
इस समय अगर अर्घ्य न दे सके तो दर्शन करके प्रार्थना करने से भी लाभ होगा.
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य क्यों?
सूर्य मुख्य रूप से तीन समय विशेष प्रभावशाली होता है – प्रातः , मध्यान्ह और सायंकाल.
प्रातःकाल सूर्य की आराधना स्वास्थ्य को बेहतर करती है.
मध्यान्ह की आराधना नाम-यश देती है.
सायंकाल की आराधना सम्पन्नता प्रदान करती है.
अस्ताचलगामी सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं, जिनको अर्घ्य देना तुरंत प्रभावशाली होता है.
जो लोग अस्ताचलगामी सूर्य की उपासना करते हैं, उन्हें प्रातःकाल की उपासना भी जरूर करनी चाहिए.
किन किन लोगों को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य जरूर देना चाहिए?
जो लोग बिना कारण मुकदमे में फंस गए हों.
जिन लोगों का कोई काम सरकारी विभाग में अटका हो.
जिन लोगों की आंखों की रौशनी घट रही हो.
जिन लोगो को पेट की लगातार समस्या रहती हो.
जो विद्यार्थी बार -बार परीक्षा में असफल हो रहे हों.