कोलेस्ट्रॉल वसा या नरम मोम जैसा पदार्थ होता है, जो शरीर की हर कोशिका में मौजूद होता है। यह तैलीय होता है, पानी में घुलता नहीं और लिपोप्रोटीन कणों के रूप में रक्तप्रवाह के जरिये दूसरे अंगों तक पहुंचता है। कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए जरूरी तत्व है। यह कई हार्मोनों को नियंत्रित करता है, कोशिकाओं की दीवारों और विटामिन-डी के निर्माण में मदद करता है। कुछ तरह के विटामिनों के मेटाबोलिज्म में भी कोलेस्ट्रॉल की भूमिका होती है। अस्सी फीसदी कोलेस्ट्रॉल लिवर के जरिए शरीर खुद बनाता है और बीस फीसदी भोजन के जरिए शरीर में पहुंचता है। दो तरह के कोलेस्ट्रॉल में से कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) को खराब तथा उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल) को अच्छा कोलेस्ट्रॉल माना जाता है।
क्या हैं खतरे
कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का सामान्य अर्थ है एलडीएल का बढ़ना, जबकि एचडीएल का बढ़ना सेहत के लिए अच्छा माना
जाता है। कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से ये समस्याएं हो सकती हैं…
‘ बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल धमनियों में जमा होकर उन्हें संकरा कर देता है। इससे रक्तसंचार ठीक से नहीं हो पाता, जो हार्ट अटैक का कारण बनता है। इससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर असर पड़ सकता है और ब्रेन स्ट्रोक, तनाव आदि की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।
‘ कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हुए शोध के अनुसार युवावस्था में कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहे तो बुढ़ापे में अल्जाइमर की आशंका कम रहती है।
‘ कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से आंखों तक रक्त ढंग से नहीं पहुंच पाता, जो आंखों पर बुरा असर डालता है।
‘ कोलेस्ट्रॉल बढ़ना किडनी पर भी बुरा असर डालता है। सीने में दर्द रहने या एंजाइना की समस्या हो सकती है।
‘ कोलेस्ट्रॉल बढ़ने पर पेरिफेरल नसों में ऑक्सीजन व पोषक तत्वों से युक्त रक्त नहीं पहुंच पाता। इससे हाथ-पैर में सिहरन व अकारण दर्द महसूस होता है।
‘ गर्दन और कंधे में सूजन और दर्द रहता है।
‘ थोड़ा भी चलने-फिरने पर थकान, सांस फूलना या दिल की धड़कन तेज होने की समस्या होने लगती है। वजन तेजी से बढ़ने लगता है। ज्यादा पसीना आता है।
‘ आंखों के सफेद भाग या कॉर्निया पर ग्रे रंग का छल्ला दिखाई देने लगता है। इससे खास दिक्कत नहीं होती, पर यह कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का संकेत समझना चाहिए।
खून में एलडीएल, एचडीएल और ट्राइग्लिसराइड को मापने के लिए लिपिड प्रोफाइल या कोलेस्ट्रॉल टेस्ट किया जाता है। इससे रक्त के एक डेसीलीटर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर का पता चलता है। कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य से ज्यादा आने पर हृदय रोग, स्ट्रोक, एस्थेरोस्लेरोसिस की आशंका बढ़ी हुई मानी जाती है। ऐसे में थाइरॉएड व डायबिटीज के टेस्ट की जरूरत पड़ सकती है। एक वयस्क व्यक्ति में कोलेस्ट्रॉल का सामान्य स्तर 200 मिलीग्राम/डीएल से कम हो तो इसे बेहतर स्थिति माना जाता है। 200 से 239 मिलीग्राम/डीएल के बीच होना खतरे की निशानी है। 240 मिलीग्राम/डीएल या इससे ऊपर की स्थिति कोलेस्ट्रॉल के स्पष्ट रूप से ज्यादा बढ़ जाने का संकेत है। एलडीएल 100 मिलीग्राम/डीएल से कम हो तो आदर्श है। 129 मिलीग्राम/डीएल तक भी आमतौर पर परेशानी का कारण नहीं बनता, पर इससे ज्यादा बढ़ना सही नहीं है। एलडीएल को 190 मिलीग्राम/डीएल से ज्यादा नहीं होने देना चाहिए। एचडीएल का स्तर 40-60 मिलीग्राम/डीएल तक या इससे अधिक हो तो बेहतर माना जाता है। यह 40 मिलीग्राम/डीएल से नीचे हो जाए तो हृदय रोगों की आशंका बढ़ जाती है। ट्राइग्लिसराइड का स्तर 150 मिलीग्राम/डीएल से कम ही बेहतर माना *जाता है।
30 या इससे अधिक बॉडीमास इंडेक्स होने पर कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का खतरा हो सकता है, इसलिए वजन पर नियंत्रण रखें। .
‘ संतृप्त वसा का सेवन कम-से-कम करें। इस तरह की वसा से मिलने वाली कैलरी 7 फीसदी और कोलेस्ट्रॉल 200 मिलीग्राम से कम होने चाहिए। वनस्पति तेलों जैसे सूरजमुखी, जैतून, सोयाबीन वगैरह के तेल बेहतर हैं।.
‘ धूम्रपान से बचें। यह धमनियों की दीवारों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे कोलेस्ट्रॉल जमा होने की आशंका बढ़ती है। .
‘ फाइबर युक्त आहार खाएं। एक शोध के अनुसार आहार में फाइबर की मात्रा कम हो तो सिर्फ छह दिन में ही ट्राइग्लिसराइड 45 फीसदी तक बढ़ जाता है। .
‘ सूखे मेवों का सेवन करें। कई शोधों के अनुसार मेथीदाना, लहसुन और हल्दी का नियमित सेवन कोलेस्ट्रॉल को काबू में रखने में मदद करता है।.
‘ ताजे फल और सब्जियों को आहार में भरपूर रखें। ये जीरो कोलेस्ट्रॉल वाले खाद्य पदार्थ हैं। बैंगन, भिंडी, शलजम और शकरकंद विशेष फायदेमंद हैं।.
‘ संतरे का रस और नाशपाती कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं। आंवले में मौजूद विटामिन-सी कोलेस्ट्रॉल को खून की नलियों में तरल बनाए रखता है और जमा नहीं होने देता।.
‘ शोध के अनुसार तीन महीने तक नाश्ते में ओट्स खाने से कोलेस्ट्रॉल का स्तर 5.3 फीसदी कम हो जाता है। .
‘ विटामिन-बी और विटामिन-ई शरीर में एचडीएल यानी अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाते हैं।