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अजीत पाल सिंह

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अजीत पाल सिंह भारत के पूर्व हॉकी खिलाड़ी हैं। सेंटर हाफ पर हॉकी खेलने वाले अजीत पाल सिंह को अति कुशल खिलाड़ी के रूप में जाना जाता है। उन्होंने तीन बार ओलंपिक खेलों में भाग लिया। 1975 का विश्वकप जीतने वाली भारतीय टीम के वे कप्तान थे। उनकी खेल उत्कृष्टता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें 1970 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ और 1992 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। राष्ट्रीय पुरस्कारो के अतिरिक्त उन्हें एक पैट्रोल पम्प पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया गया, जिसका नाम उन्होंने ‘सेन्टर हाफ’ रखा है।

परिचय
अजीत पाल सिंह का जन्म 15 मार्च, सन 1947 को पंजाब राज्य के जालंधर में संसारपुर नामक स्थान पर हुआ था। अजीत पाल सिंह को अति श्रेष्ठ हाफ-बैक हॉकी खिलाड़ियों में माना जाता है। उनका नाम 1928 तथा 1932 की ओलंपिक टीम के ई.पेनीगर के बाद ‘हाफ बैक’ के रूप में जाना जाता है। वह गेंद को कुशलतापूर्वक हिट कर जाते थे। अजीत पाल ने हॉकी खेलना तभी आरम्भ कर दिया था, जब वह कैंटोनमेंट बोर्ड हायर सेकेन्ड्री स्कूल, जालंधर में पढ़ते थे। 1963 में पंजाब स्कूल टीम के लिए उन्होंने ‘फुल बैक’ खिलाड़ी के रूप में खेला था। इसके पश्चात् अजीत पाल ने लायलपुर खालसा कॉलेज, जालंधर की ओर से खेलना आरम्भ कर दिया। 1966 में अन्तर विश्वविद्यालय हॉकी टूर्नामेंट में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय की कप्तानी की। 1968 में उन्होंने विश्वविद्यालयों की मिली-जुली टीम में सेंटर हाफ के रूप में खेला

प्रथम अन्तरराष्ट्रीय मैच
अजीत पाल सिंह ने बार्डर सिक्योरिटी फोर्स में शामिल होने के पश्चात् फोर्स की हॉकी टीम में शामिल होकर फोर्स की ओर से सभी राष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट में भाग लिया। 1966 में अजीत पाल ने पहली बार अन्तरराष्ट्रीय मैच में हिस्सा लिया, जब उन्हें जापान जाने वाली भारतीय टीम में शामिल किया गया। 1967 में उनको लंदन में प्री-ओलंपिक टूर्नामेंट में खेलने का अवसर मिला। इससे उनका चुनाव 1968 में मैक्सिको में होने वाले ओलंपिक में खेलने के लिए भारतीय टीम में हो गया। इस ओलंपिक में भारतीय टीम का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और टीम तीसरे स्थान पर रही।

ओलम्पिक में पदार्पण
1972 में म्यूनिख ओलंपिक में अजीत पाल ने भारतीय हॉकी टीम का सदस्य बन कर भाग लिया और टीम ने कांस्य पदक जीता। 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में अजीत सिंह ने भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी की। ओलंपिक खेलों के अतिरिक्त अजीत पाल ने 1970 के बैंकाक एशियाई खेलों में भारतीय टीम का सदस्य बन कर भाग लिया और टीम ने रजत पदक जीता। 1974 के तेहरान एशियाई खेलों में अजीत भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे। भारतीय टीम ने उनकी कप्तानी में रजत पदक जीता। 1974 में अजीत पाल को ‘एशियाई ऑल स्टारर’ टीम का सदस्य चुना गया।

1971 में सिंगापुर में हुए पोस्ट शुआन टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने अजीत पाल की कप्तानी में विजय प्राप्त की। 1971 में ही उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने बार्सिलोना में ‘फर्स्ट वर्ल्ड कप’ में कांस्य पदक जीता। 1972 में पुन: अजीत पाल ने टीम का हिस्सा बन कर एम्सटरडम वर्ल्ड कप में भाग लिया, लेकिन भारतीय टीम फाइनल में हालैंड की टीम से हार गई और टीम को रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा।

सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
अजीत पाल का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1975 में देखने को मिला। जब भारतीय टीम ने कुआलालंपुर में अजीत पाल की कप्तानी में पाकिस्तान को हरा कर ‘विश्व कप’ जीत लिया। विश्व कप जीतने पर भारतीय टीम का भारत आगमन पर भव्य स्वागत किया गया। अजीत पाल सिंह ने जीतने पर वापसी में अपनी खुशी का इजहार इन शब्दों में किया- विश्व कप की खुशी से ज्यादा मीठा कुछ भी नहीं है। हमारी सफलता का राज हमारी मेहनत है।

निराशापूर्ण क्षण
विश्व कप जीतने वाली टीम के कप्तान रहने के बाद अजीत पाल के लिए वह निराशापूर्ण क्षण रहा, जब 1986 में उनकी कोचिंग में तैयार भारतीय टीम लंदन में बुरी तरह हार गई। भारत का प्रदर्शन इतना निराशाजनक रहा कि भाग लेने वाली 12 टीमों में भारत का स्थान 12वां यानी अन्तिम था।

उपलब्धियां
अजीत पाल सिंह ने तीन बार (1968, 1972 तथा 1976) ओलंपिक खेलों में भाग लिया। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में भारत ने कांस्य पदक जीता।
1970 में वह भारतीय टीम में शामिल थे, जिसने बैंकाक के एशियाई खेलों में रजत पदक प्राप्त किया था।
1971 में अजीत पाल की कप्तानी में टीम ने सिंगापुर का पोस्ट शुआन टूर्नामेंट जीता और बार्सिलोना में ‘फर्स्ट वर्ल्ड कप’ मुकाबले में कांस्य पदक जीता।
1972 में अजीत सिंह ने टीम के साथ एम्सटरडम वर्ल्ड कप में रजत पदक जीता।
1974 में तेहरान एशियाई खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने अजीत पाल सिंह की कप्तानी में रजत पदक जीता।
1975 में कुआलालंपुर में हुए वर्ल्ड कप में अजीत पाल सिंह की कप्तानी में भारतीय टीम ने पाकिस्तान को हरा कर वर्ल्ड कप जीत लिया।
उन्हें 1970 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया।
1992 में अजीत पाल को ‘पद्मश्री’ की उपाधि प्रदान की गई।

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