लंबे अरसे बाद हिमाचल में कांग्रेस के कद्दावर नेता 84 साल के वीरभद्र सिंह और राजनीति में चाणक्य कहे जाने वाले 92 वर्षीय पंडित सुखराम का एकसाथ कांग्रेस में होना भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है। दिलचस्प है कि इन दोनों दिग्गज कांग्रेस नेताओं के सामने मुख्यमंत्री जयराम को अपने गृह जिले की सीट बचाने के लिए चुनावी रण लड़वाना है। ऐसे में एक तरफ जहां वीरभद्र सिंह और सुखराम के सामने आपसी समन्वय स्थापित करने की चुनौती होगी तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री को गृह जिले की संसदीय सीट को बचाना है।
इस तरह से मंडी हॉट सीट भाजपा की प्रतिष्ठा का सवाल भी बन गई है। उधर, चुनावों से ऐन पहले सुखराम के पोते आश्रय के साथ कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद इस सीट पर कांग्रेस की स्थिति वीरभद्र सिंह के रुख पर भी निर्भर करेगी। देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस मंडी सीट के चुनावी समर में भितरघात कैसे पार पाती है। इसी कसौटी से भाजपा को भी गुजरना होगा, क्योंकि रामस्वरूप शर्मा को टिकट मिलने से पार्टी के बड़े चेहरों के समर्थक खासे नाराज हैं।रामपुर, किन्नौर और भरमौर क्षेत्र से वीरभद्र को भारी लीड मिलती रही है। यहां से 20 से 25 हजार तक की बढ़त कांग्रेस को आती रही है। ऐसे में मंडी सीट के इन ऊपरी इलाकों का रुझान भी हार जीत के लिए निर्णायक होगा
सीएम जयराम ठाकुर को लोकसभा उपचुनाव और विस चुनावों में हार का स्वाद चखाने के लिए वीरभद्र परिवार ने सराज पहुंचकर एड़ी चोटी का जोर लगाया था। मगर जयराम की कूटनीति के आगे कांग्रेस सराज में विस चुनावों में धराशायी होती रही। लोस उपचुनाव में जयराम जरूर हारे लेकिन सराज से पूरे मंडी संसदीय क्षेत्र में जयराम को लीड मिली थी। ऐसे में मंडी से सीएम का चेहरा रामस्वरूप के लिए वरदान साबित होता है या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा
अगर आश्रय शर्मा को टिकट मिला तो शर्मा बनाम शर्मा की जंग भी रोचक होगी। हालांकि जातीय समीकरण यहां बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं रहते हैं लेकिन रामस्वरूप शर्मा के सामने यदि आश्रय शर्मा को उतारा जाता है तो पंडित सुखराम का परंपरागत वोट जातीय समीकरण को प्रभावित कर सकता है।