भले ही अनिल शर्मा की पद छोड़ने की वजह बेटे आश्रय को भाजपा से टिकट न मिलना था लेकिन सरकार में मंत्री होने के बावजूद उनकी अनदेखी हो रही थी। जयराम सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे अनिल शर्मा साल भर से ‘पावर’ ही मांगते रह गए। ऊर्जा मंत्री होने के बावजूद बिजली बोर्ड की सरदारी नहीं मिलने की टीस अनिल शर्मा निकालते रहे हैं।
वह बिजली बोर्ड, पावर कॉरपोरेशन और ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन पर पूरी पकड़ चाहते थे। मुख्यमंत्री के समक्ष भी अनिल शर्मा ने यह मामला कई बार उठाया, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। कांग्रेस छोड़ भाजपा सरकार में मंत्री बनने के सवा साल बाद भी वह भाजपा कल्चर में ढलने में असहज दिखते रहे। जनमंच कार्यक्रमों में भी सरकार पर अनदेखी होने की भड़ास अनिल शर्मा सार्वजनिक तौर पर निकालते रहे हैं।
इसी साल जनवरी महीने में विधानसभा क्षेत्र मंडी सदर के साईगलू में जनमंच के दौरान लोगों ने जोनल अस्पताल मंडी और कोटली स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर और सुविधाएं न होने का मुद्दा उठाया। कार्यक्रम में लोगों ने कहा कि कोटली स्वास्थ्य केंद्र में तो टेटनेस का टीका तक उपलब्ध नहीं है। इस पर ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा ने कहा था कि मैं हालात से वाकिफ हूं। जनता से माफी मांगता हूं। बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं न दे पाने पर मैं शर्मिंदा हूं।
उधर, अनिल शर्मा चाहते थे कि ऊर्जा मंत्री के नाते वित्तीय मामलों और कामकाज में उनका पूरा नियंत्रण रहे लेकिन जयराम सरकार ने उनकी नहीं सुनी। बिजली बोर्ड के अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. श्रीकांत बाल्दी को चेयरमैन बना दिया। ऐसे में मंत्री अनिल शर्मा विभाग के मुखिया सिर्फ नाम के लिए थे। ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा सचिवालय में ऐसे केवल एक मंत्री थे, जिनके पास भाजपाइयों का जमावड़ा नहीं रहता था।
पिता पंडित सुखराम को भी बेटे अनिल शर्मा को कैबिनेट में बड़ा महकमा नहीं मिलने की टीस थी। बीते साल पंडित सुखराम ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मुलाकात कर अनिल को लोक निर्माण विभाग देने की भी मांग की थी। प्रदेश में सड़कों की खस्ता हालत सुधारने के लिए पंडित सुखराम ने अनिल शर्मा की स्वच्छ छवि का हवाला देते हुए महकमे बढ़ाने को कहा था।