एक शहर जहां की जमीन ढेर सारा पानी अपने अंदर समेटे हुई है. एक शहर जहां की खूबसूरती ऐसी की कभी बड़े तालाब के किनारे तो कभी मनीषा झील के पानी में न जाने कितनी हसीन शामें बीतती है. एक शहर ऐसा जहां कॉफी हाउस में मुहब्बतें भी पलती है. एक शहर ऐसा जहां रिश्ते और जुबान आज भी वहां की खासियत को बंया करते हैं. उस एक शहर का नाम है भोपाल, वही भोपाल शहर जहां की तासीर में एक अजीब सी खुशबू है. एक गंगा-जमुनी तहजीब यहां बिखरी दिखती है.
विकास की इस दौर में भोपाल भी भाग रहा है, लेकिन महानगर बनने की यात्रा में उगते मल्टीप्लेक्स, माल और मेगा शो-रूम के बीच आज भी पुराने भोपाल के बाजार आबाद हैं. खास पहचान वाले इस शहर की अपनी एक राजनीतिक विरासत भी रखती है. इस बार लोकसभा चुनाव में भी यह सीट चर्चा के केंद्र में है. ऐसे में आइए जानते हैं तालाबों के इस शहर का राजनीतिक इतिहास क्या है और इस बार किन प्रत्याशियों के बीच टक्कर है.
इस सीट पर पहली बार साल 1957 में चुनाव हुआ. इस चुनाव में कांग्रेस की मैमुना सुल्तान ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद लगातार कांग्रेस इस सीट पर जीतती रही लेकिन साल 1989 में बीजेपी का खाता इस सीट पर खुला और तब से 2014 तक इस सीट पर बीजेपी का कब्ज़ा है. 1989 में सुशील चंद्र शर्मा ने यहां पर बीजेपी का खाता खोला था इसके बाद वो 1991, 1996 और 1998 में वो लगातार जीते. इसके बाद 1999 में यहां से उमा भारती, 2004 और 2009 में कैलाश जोशी और 2014 में आलोक संजर चुनाव जीते थे.
भोपाल लोकसभा क्षेत्र की जनसंख्या 26,79,574 है. यहां की 23.71 फीसदी आबादी ग्रमीण क्षेत्र में रहती है, जबकि 76.29 फीसदी शहरी इलाके में रहती है.भोपाल की 15.38 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति की है और 2.79 फीसदी अनुसूचित जनजाति की है.2014 में वोटर्स की संख्या यहां 19,56,936 थी. जिसमें 9,17,932 महिला मतदाता और 10,39,004 पुरूष मतदाता थे.
पिछले 8 चुनावों से भोपाल लोकसभा सीट बीजेपी जीत रही है. इस सीट पर फिलहाल बीजेपी के मौजूदा सांसद आलोक संजर हैं. भोपाल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. बेरसिया, भोपाल दक्षिण-पश्चिम, हुजूर, भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य, सिहौर, नरेला और गोविंदपुरा वह सीटें हैं.
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह को भोपाल सीट से कांग्रेस ने टिकट दिया है. वहीं बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा पर दांव खेला है. इस मुकाबले को 72 की उम्र के दिग्विजय के लिए आर-पार की लड़ाई माना जा रहा है तो वहीं साध्वी प्रज्ञा के लिए यह एक तरह से सियासत की शुरुआत है. लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि दिग्विजय के लिए यह मुकाबला भारी ना पड़ जाए. क्योंकि भोपाल लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ है.
भोपाल लोकसभा सीट के जातीय समीकरण को देखा जाए तो यहां 20 से 25 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं. वहीं, अनुसूचित जाति के वोटर्स यहां 14.83 प्रतिशत हैं और अनुसूचित जनजाति के वोटर्स 2.56 प्रतिशत है. यहां इस सीट पर हिन्दू वोटर्स की संख्या भी काफी है.