पुराणों में कई ऐसी कहानियां हैं जो एक अलग ही महत्व को समझाती है. ऐसे में आज हम आपको पुराणों की ही एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप धन्य हो जाएंगे. जी दरअसल यह कथा है जब लक्ष्मी जी ने विष्णु भगवान की परीक्षा ली थी. आइए जानते हैं इस कथा को.
कथा – एक बार लक्ष्मीजी विष्णुजी को भोजन करा रही थीं, भगवान विष्णु ने पहला ग्रास मुंह में लेने से पहले ही हाथ रोक लिया और उठकर चले गए. कुछ देर बाद लौटकर आए और भोजन किया. इस पर लक्ष्मी जी ने भगवान से भोजन के बीच में उठकर जाने का कारण पूछा. भगवान विष्णुजी ने बड़े प्रेम से कहा- मेरे चार भक्त भूखे थे, उन्हें खिलाकर आया हूं. लक्ष्मी जी को थोड़ा अजीब सा लगा, उन्होंने विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए दूसरे दिन एक छोटी डिबिया में पांच चींटियों को बंद कर दिया. उसके कुछ देर बाद उन्होंने भगवान के लिए भोजन परोसा. प्रभु ने खूब मन से भोजन ग्रहण किया.
आखिर में लक्ष्मी जी बोलीं- आज आपके पांच भक्त भूखे हैं और आपने भोजन ग्रहण कर लिया? प्रभु ने कहा- ऐसा हो ही नहीं सकता, जो लक्ष्मी जी मुस्करा पड़ीं और पूरे आत्मविश्वास से भगवान को चीटियों वाली डिब्बी खोलकर दिखाई. डिब्बी देखकर भगवान विष्णु मुस्करा उठे, यह देख देवी लक्ष्मी हतप्रभ रह गई कि डिब्बी में बंद चींटियों के मुंह में चावल के कण थे. लक्ष्मीजी ने पूछा, बंद डिबिया में चावल कैसे आए, प्रभु यह आपने कब डाले? विष्णु जी ने सुंदर जबाब दिया- देवी आपने चिटियों को डिब्बी में बंद करते समय जब उनसे क्षमा मांगने के लिए माथा टेका था तभी आपके तिलक से एक चावल डिब्बी में गिर गया था और चीटिंयों को उनका भोजन मिल गया.