मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में जल संकट गहराया हुआ है, लोगों को कई किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद ही पानी मिल रहा है. राज्य के बड़े हिस्से में नल-जल योजना असफल साबित हो रही है. कुंए और नलकूप सूखने के कगार पर हैं, तालाबों में पानी बहुत कम बचा है. वहीं राज्य के आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिले के दो गांवों में तीन सौ से ज्यादा गधे पीने के लिए पानी ढोने का काम कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के नर्मदा किनारे सरदार सरोवर परियोजना के इलाके में बसे सुगट और चमेली गांव के करीब 300 गधे अपने मालिकों के लिए रात-दिन पानी ढोने के काम में जुटे हैं. वो ऐसी जगह से पानी ढो रहे हैं, जहां एक छोटे से गड्ढे से किसी छोटे बर्तन की मदद से बाल्टी में पानी भरना पड़ता है.
नर्मदा से सटे यह चमेली और सुगट गांव सरदार सरोवर परियोजना के सूखा प्रभावित गांव हैं, ग्रामीण बताते हैं कि उनके बाप-दादा इसी तरह से पेयजल के लिए दिक्कतों से जूझते आए हैं. घंटों इंतजार के बाद बमुश्किल दो छोटी कैन पानी मिल पाता है. आदिवासियों का आरोप है कि सरकार का उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं है.
इस भीषण जलसंकट में दोनों गांव के आदिवासी गधों के सहारे पेयजल जुटाने के लिए दिन रात संघर्ष करते हैं. गांव के सरकारी ग्राम विकास अधिकारी का कहना है कि रात 2 बजे से पानी जुटाने की कवायद में ग्रामीण अपने गधों के साथ निकलते हैं और दो से तीन किलोमीटर का सफर तय करते हैं. आलम यह है कि दोनों गांवों में शादियां सिर्फ औपचारिक होती हैं क्योंकि बड़े आयोजनों के लिए पानी की व्यवस्था ही नहीं होती. दोनों गांव के करीब 180 परिवार रात तीन बजे से दोपहर तक गधे से पानी ढोने के लिए मजबूर होते हैं. पहाड़ी इलाका होने के चलते गधों के सहारे ही पेयजल का इंतजाम करना मजबूरी है.