हिमाचल में किसी अधिकारी ने अगर हर काम के लिए लोगों से शपथपत्र मांगा तो उसके खिलाफ सरकारी आदेश की अवमानना के तहत कार्रवाई होगी। लोगों का समय और पैसा बचाने के लिए प्रशासनिक सुधार विभाग ने इस बारे में नए आदेश जारी किए हैं। प्रदेश सरकार ने सरकारी कामकाज में शपथपत्र की प्रथा खत्म करने का निर्णय लिया था, लेकिन यह नई व्यवस्था कई कार्यालयों में धरातल पर लागू नहीं हो पाई।
ऐसे में सरकार के प्रशासनिक सुधार विभाग ने नए कार्यालय आदेश निकालकर सभी विभागों, अर्द्ध सरकारी और स्वायत्त संस्थानों को अवगत करवाया है कि वे अनावश्यक रूप से शपथपत्र न मांगें। शपथपत्र तभी लिए जाएं, जहां एक्ट या रूल्स में इन्हें लेने का जरूरी प्रावधान है। कोर्ट, अर्द्ध न्यायिक संस्थानों आदि में सरकार के यह आदेश लागू नहीं होंगे।
सचिव प्रशासनिक सुधार पूर्णिमा चौहान की ओर से जारी कार्यालय आदेशानुसार में स्पष्ट है कि इस बारे में 31 जनवरी, 2015 को भी ऐसे आदेश निकाले जा चुके हैं कि स्टांप पेपर पर मजिस्ट्रेट या नोटरी से प्रमाणित हलफनामे का कई कार्यों में कोई मतलब नहीं है। इससे लोगों की ऊर्जा और पैसा दोनों का नुकसान हो रहा है।
हर हलफनामे के लिए 20 से 200 रुपये तक खर्च होते हैं। इसका कोई मतलब भी नहीं होता है। विभिन्न कार्यालयों में निचले स्तर तक के अधिकारियों या कर्मचारियों को या तो इस बात का ज्ञान नहीं है कि अब हलफनामे की जरूरत नहीं है या फिर वे पुरानी परंपरा छोड़ने को तैयार नहीं हैं, क्याेंकि इसके स्थान पर अब हस्ताक्षर से स्व घोषणा की जा सकती है। कोई व्यक्ति गलत या झूठी स्व घोषणा करता है तो उस पर कार्रवाई भी होगी। सचिव प्रशासनिक सुधार पूर्णिमा चौहान ने स्पष्ट किया है कि इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 199 और 200 में कार्रवाई का प्रावधान है।