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जहरीले केमिकल से पकी फल-सब्जियां खा रहे हैं आप…

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देश में कैंसर की बीमारी तेजी से बढ़ रही है. जो लोग सिगरेट नहीं पीते, जिन्होंने कभी पान मसाला, तंबाकू, गुटखा नहीं खाया, उन्हें अचानक पता चलता है कि कैंसर हो गया है? ये सब फल और सब्जियों में जहरीले केमिकल मिलाने की वजह से हो रहा है. फल और सब्जियों के विक्रेता मुनाफे की लालच में आम से लेकर अदरक तक में कैंसर कारक तत्व मिला रहे हैं.

ने दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में अपनी पड़ताल शुरू की. पड़ताल में सामने आया कि यहां केलों में केमिकल मिलाकर उन्हें पकाया जाता है. दरअसल प्राकृतिक रूप से फल को पकने में लंबा वक्त लगता है और प्राकृतिक रूप से फल पकता है तो वजन में भी कमी आती है. इसलिए जल्द और बड़े मुनाफे के लालच में व्यापारी जहरीले रसायन से फलों को पकाने लगते हैं.

एबीपी न्यूज़ ने केमिकल मिलाने को लेकर केले के एक खुदरा विक्रेता से बात की तो उसने कहा कि अगर इससे लोगों की सेहत खराब हो रही है तो सरकार को इस पर कुछ करना चाहिए. हम तो मजबूर हैं. लगभग सारी मंडियों में इसी तरह से फलों को पकाया जा रहा है आजादपुर मंडी के ठीक बाहर आम, पपीता और केला बेचने वाले दुकानदारों से जब एबीपी न्यूज़ ने पूछा कि क्या उन्हें इस बात की जानकारी है कि मंडी में किस तरह से फलों को पकाया जाता है? इस सवाल पर कुछ दुकानदारों का कहना है कि उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता वो बस मंडी से फलों को खरीद कर बेचते हैं.

इतना ही नहीं दावा है कि देश में आम और पपीता पकाने के लिए धड़ल्ले से कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल होता है. दरअसल कैल्शियम कार्बाइड नमी के साथ मिलते ही एसिटिलीन गैस छोड़ता है, जिससे गर्मी पाकर कोई भी फल पकने लगता है. और ऐसिटिलीन गैस का इस्तेमाल लोहा काटने या लोहे में जोड़ लगाने के दौरान वेल्डिंग में किया जाता है. यानी जो गैस लोहा काटने में प्रयोग होती है, वही गैस फल पकाने का भी काम करती है.

आजादपुर मंडी में अदरक की होल सेल बिक्री होती है. होल सेल विक्रेता अश्विनी कुमार बताते हैं कि मंडी में अदरक धुलने का काम नहीं होता है. ये अदरक कर्नाटक से बड़ी मात्रा में आती हैं और वहीं से मशीनों द्वारा धुलकर मंडी में आता है. अदरक को केमिकल से धुला जाता है. ये काम कुछ छोटे दुकान वाले खराब क्वालिटी की अदरक को चमकाकर उनसे मुनाफा कमाने के लिए करते हैं भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ एक सर्वे बताता है कि 2012 से 2018 में फेफड़े के कैंसर वाले 50 फीसदी मरीज कभी भी सिगरेट ना पीने वाले लोग थे

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के के अग्रवाल का ने भी केमिकल से पके फलों को खाने पर कैंसर होने की बात कही है. आंकड़े कहते हैं कि भारत में हर साल लगातार कैंसर के मरीज बढ़ रहे हैं. साल 2016 में 14 लाख 51 हजार कैंसर के मरीज देश में पता चले. 2017 में कैंसर के मरीज बढ़कर 15 लाख 17 हजार हो गए. वहीं, 2018 में भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या 15 लाख 86 हजार हो गई. कैंसर के हजारों मरीज ऐसे आए जिन्होंने कभी तंबाकू, सिगरेट, गुटखा खाया भी नहीं दरअसल हमारे देश में एथिलीन गैस से कृत्रिम रूप से फल पकाने की मंजूरी दी गई है. लेकिन एथिलीन गैस से फलों को एक नियंत्रित प्रक्रिया में पकाना महंगा पड़ता है. जबकि कैल्शियम कार्बाइड 60 रुपए किलो मिल जाता है. 25 किलो फल गैरकानूनी केमिकल से पकाने में 5 रुपए खर्च होता है

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