साल 2015 में बिहार में जिस नारे के दम पर नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव जीता था इस बार उसमें थोड़ा सा बदलाव किया गया है. पिछली बार नारा था, ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’ इस नारे को गढ़ने में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का दिमाग़ था. लेकिन जो नया बदलाव किया गया है इसमें प्रशांत किशोर का कोई हाथ नहीं है. लेकिन साल 2020 में होने वाले चुनाव को लेकर जो नारा गढ़ा गया है वह है, ‘क्यूं करें विचार, ठीके तो है
नीतीश कुमार’. अब देखने वाली बात यह होगी कि बदली परिस्थितियों में नारे कितना काम करते हैं. लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके नीतीश कुमार ने पिछला चुनाव आरजेडी+जेडीयू+कांग्रेस को मिलाकर महागठबंधन के बैनर तले लड़ा था. जिसमें इन तीन पार्टियों का वोटबैंक बीजेपी पर भारी पड़ गया था. नीतीश कुमार इससे पहले एनडीए में थे लेकिन नरेंद्र मोदी को पीएम पद का चेहरा बनाए जाने पर वह नाराज हो गए और बीजेपी से नाता तोड़ लिया.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर आरजेडी का सूपड़ा साफ कर दिया और लालू की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. लेकिन अब बीजेपी के साथ रिश्तों में वह गर्माहट नहीं है. बीजेपी केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ आई है और उसके पास 300 से ज्यादा सीटे हैं और उसे सरकार में बने रहने के लिए किसी सहयोगी की जरूरत नहीं है यही वजह है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू का एक भी मंत्री नहीं है. उधर तीन तलाक और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के मुद्दे पर जेडीयू भी मोदी सरकार के साथ नहीं थी. लेकिन अगर बिहार में बीजेपी-जेडीयू और एलजीपी साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो तीनों का वोटबैंक मिलकर बाकियों पर भारी पड़ेगा. लेकिन राजनीति में हवा बदलने में एक हफ्ता काफी होता है और अभी चुनाव में लगभग एक साल बाकी है.