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प्रशांत किशोर बोले 2 वजहों से हुआ मतभेद नीतीश कुमार ने बेटे की तरह रखा…

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चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि नीतीश कुमार ने उन्हें बेटे की तरह रखा. उन्होंने कहा कि उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया, लेकिन मैं फिर भी उनका सम्मान करता हूं. उन्होंने उनके साथ मतभेद की वजह भी बताई. प्रशांत किशोर ने कहा, ‘मुझे पार्टी में शामिल करने और पार्टी से निकालने के फैसले को दिल से स्वीकार करता हूं. उन पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं और आगे भी नहीं करना चाहता. ये उनका एकाधिकार था. वो पार्टी में रखना चाहते थे और नहीं रखना चाहते थे ये भी उनका अधिकार है. उनके लिए हमेशा मेरे दिल में आदर रहेगा. हम लोगों में दो वजहों से मतभेद थे. लोकसभा चुनाव से ही हमारी इन वजहों को लेकर बातचीत चल रही थी.

पहला विचारधारा को लेकर है, नीतीश जी का कहना है कि गांधी, जेपी और लोहिया और उनकी बातों को नहीं छोड़ सकते. लेकिन मेरे मन में यह दुविधा रही कि कोई अगर ऐसा सोचता है तो वह उस समय गोडसे के साथ खड़े होने वाले और उनकी विचारधारा के लोगों के साथ कैसे खड़े हो सकते हैं. भाजपा के साथ उनके रहने पर कोई गुरैज नहीं, लेकिन दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकती. उनकी अपनी सोच है और मेरी अपनी सोच है. गांधी और गोडसे साथ नहीं चल सकते. पार्टी के नेता के तौर पर आपको यह बताना होगा कि हम लोग किस तरफ हैं.’

साथ ही उन्होंने कहा, ‘दूसरा जदयू और नीतीश कुमार की गठबंधन में पोजिशन को लेकर है. नीतीश कुमार पहले भी भाजपा के साथ थे और अब भी हैं. लेकिन दोनों में बहुत फर्क है. नीतीश कुमार पहले बिहार की शान थे, बिहार के लोगों के नेता थे. आज वो 16 सांसद लेकर गुजरात का कोई नेता बताता है कि आप ही नेता बने रहिए. बिहार का मुख्यमंत्री यहां के लोगों का नेता है, आन-शान है, कोई मैनेजर नहीं है. कोई दूसरी पार्टी का नेता नहीं बताएगा कि वह हमारे नेता हैं. हम लोग सशक्त नेता चाहते हैं, जो पूरे भारत और बिहार के लिए अपनी बात कहने के लिए किसी का पिछलग्गू ना बने.’

इसके अलावा उन्होंने कहा, ‘कुछ लोगों का मत है कि राजनीति में थोड़ा बहुत समझौता करना पड़ता है. बिहार के विकास के लिए समझौता करना पड़े तो कोई गुरैज नहीं. मूल बात बिहार के विकास की है. आपको देखना पड़ेगा कि क्या इस गठबंधन के साथ रहने से बिहार का विकास हो रहा है. तो आप चाहें तो किसी के सामने झुकने से बिहार का विकास हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है. बिहार में क्या इतनी तरक्की हो गई, जितना बिहार के लोग चाहते थे. क्या हमें विशेष राज्य का दर्जा मिल गया. पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने के लिए नीतीश कुमार ने हाथ जोड़कर रहा था, लेकिन उस पर गौर करने की बजाय केंद्र सरकार कोई जवाब तक नहीं दे रही

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