Home मध्य प्रदेश इत्र गुलाब जल से धुलता था राजबाड़ा, चंदन की लकड़ी से बनाते...

इत्र गुलाब जल से धुलता था राजबाड़ा, चंदन की लकड़ी से बनाते थे होलिका…

11
0
SHARE

होलकर काल में राजघराने की होली जलने के बाद ही शहर में अन्य स्थानों पर होलिका दहन होता था। इसके बाद किला मैदान से तोपों की सलामी दी जाती थी, जिससे शहर को राजपरिवार की होलिका दहन का पता चलता था। फिर शहर के अन्य स्थानों पर होली जलाई जाती थी। उस वक्त होली को हुताशनी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता था। तब से चली आ रही परंपरा आज भी जिंदा है, इसलिए सबसे पहले राजबाड़ा पर होली जलती है।

होली के जश्न के लिए उस वक्त 50 सेर गुलाब जल, 200 ग्राम इत्र, 200 ग्राम सेंट और 50 सेर केवड़े के जल के उपयोग से राजबाड़ा धोया जाता था। 20 हजार पान के बीड़े, सौ मन मिठाई, 50 मन हार फूल से पूजन होती थी। एक मन में 20 किलो होते हैं।

जहां अहिल्या प्रतिमा स्थापित है, वहां 40X40 का अष्टकोणीय चबूतरा था। जिस पर शामियाना लगाकर नक्काशी वाले गलीचे बिछाते। होलिका को चंदन की लकड़ी से बनाते फिर तुवर की संटी, घास की पिंडी, पचरंगी नाड़ा, सफेद सूत से सजाते थे।राजपरिवार की महिलाएं साड़ी और चोली से होलिका की गोद भरती थीं। घरगुल्ले बनाए जाते थे (गोबर के छोटे कंडों की माला)। उसके बाद फौजी ध्वज, होलकरों का ध्वज और अहिल्या गादी का पूजन किया जाता था।

इतिहासकार डॉ. गणेश शंकर संग्रह से उनके बेटे सुनील मतकर ने बताया कि पुराना फायर नाका (नृसिंह बाजार से पीपली बाजार का सरकारी स्कूल है) पर यज्ञ कराया जाता था। वहीं से पंच भइया अग्नि लाता था। होलिका पूजन के लिए पवित्र अग्नि का स्पर्श कराया जाता।मल्हारगंज में तैनात घुड़सवार किला मैदान जाकर होली जलने की खबर देता था। फिर तोपों की सलामी दी जाती थी। बाद में इंपीरियल ब्रिटिश बैंड और होलकरी बैंड की तरफ से राजबाड़ा की परिक्रमा कर सलामी दी जाती थी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here