हर व्यक्ति इस बात को जानने की कोशिश में रहता है कि जीवन में सफलता कैसे मिले. कई बार मनुष्य काफी मेहनत करने के बाद भी सफल नहीं हो पाता और कई बार थोड़ा प्रयास ही उसे सफल बना देता है. चाणक्य ने अपने नीति ग्रंथ में सफलता के मूल मंत्रों का विश्लेषण किया है.
भारत के इतिहास को बदलने में चाणक्य की नीतियों ने अहम भूमिका निभाई है और आज भी उनकी बातें उतना ही मायने रखती हैं. इन नीतियों को जीवन में उतारकर सफलता हासिल की जा सकती है. आचार्य चाणक्य ने अपने नीति ग्रंथ के छठे अध्याय में एक श्लोक के माध्यम से सफलता के मूलमंत्र को बताया है. आइए जानते हैं इस मूलमंत्र के बारे में…
प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति।
सर्वारंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शेर एकाग्रता के साथ अपने शिकार पर पूरी ताकत के साथ झपट्टा मारता है, जिससे वो अपने मकसद में सफल हो जाता है. इसी प्रकार मनुष्य का भी अपने लक्ष्य के प्रति ध्यान केंद्रित होना चाहिए और लक्ष्य प्राप्ति के लिए पूरी मेहनत के साथ प्रयास करना चाहिए. काम कैसा भी हो, छोटा या फिर बड़ा, उसे पूरे लगन से करना चाहिए.काम की शुरुआत ऊर्जा के साथ करना चाहिए, ऐसा न हो कि शुरू में ही आप निराश हो जाएं कि नहीं हो सकता. आरम्भ में ही निराश हो जाने से सफलता कोसो दूर चली जाती है.