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चंद्रबाबू नायडू

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चंद्रबाबू नायडू , तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू ने 8 जून, 2014 को विजयवाड़ा से क़रीब 18 किलोमीटर दूर नागार्जुन नगर में आयोजित एक समारोह में तेलांगाना के अलग होने के बाद बने नए आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। चंद्रबाबू नायडू ने संयुक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर (1 सितम्बर 1995 से 13 मई 2004 तक) आठ वर्ष, आठ महीने और 13 दिन मुख्यमंत्री रहे। यह आंध्र प्रदेश के किसी मुख्यमंत्री का सबसे लंबा कार्यकाल है।

जीवन परिचय
20 अप्रैल, 1950 को मंदिर नगर तिरुपति के पास नारावरियापल्ले में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्मे चंद्रबाबू नायडू ने राजनीति में अपना करियर की शुरुआत श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करते हुए एक छात्र संघ नेता के तौर पर की। 1975 में युवा कांग्रेस में शामिल हुए और 1978 में पहली बार अपने पैतृक चंद्रागिरि सीट से पहली बार विधायक चुने गए। चंद्रबाबू नायडू को मंत्री बनने के बाद अर्थशास्त्र में अपनी पी.एच.डी बीच में ही छोड़नी पड़ी।

राजनीतिक परिचय
चंद्रबाबू नायडू के नाम राज्य में सबसे कम आयु का विधायक और 28 वर्ष की आयु में सबसे कम आयु का मंत्री होने की विशिष्टता भी जुड़ी हुई है। चंद्रबाबू नायडू को 1978 में तत्कालीन टी. अंजैया के मंत्रिमंडल में सिनेमैटोग्राफी के लिए मंत्री के तौर पर शामिल किया गया था। सात बार के विधायक नायडू के नाम 2004 से 2014 के बीच सबसे लंबे समय तक विपक्ष का नेता होने का रिकॉर्ड भी है। मंत्री के तौर पर काम करने के दौरान तेलुगू सिनेमा के दिग्गज एन. टी. रामा राव की नजर चंद्रबाबू पर पड़ी और उन्होंने 1980 में अपनी दूसरी पुत्री भुवनेश्वरी का विवाह उनसे कर दिया। चंद्रबाबू नायडू 1983 में तेलुगू देशम की नई लहर में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव हार गए लेकिन कुछ ही महीने बाद वह अपने ससुर द्वारा शुरू की गई पार्टी में शामिल हो गए। चंद्रबाबू नायडू को एनटीआर सरकार द्वारा गठित किसान परिषद ‘कषर्क परिषद’ का प्रभारी बनाया गया और उसके बाद वह तेदेपा के महासचिव बनाए गए। इसके साथ ही वह पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार और व्यवस्थापक बन गए। 1989 में चदंबाबू तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा से लगे कुप्पम विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और दो बार वहां से चुने गए। 1994 में वह एनटीआर मंत्रिमंडल में वित्त ओर राजस्व मंत्री बने लेकिन अगस्त 1995 में अपने ससुर एन. टी. रामा राव को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने के लिए एक आंतरिक पार्टी तख्तापलट का नेतृत्व किया और बहुसंख्यक विधायकों के समर्थन से सत्ता संभाल ली।[1]

तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष
इसके साथ ही चंद्रबाबू नायडू तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष बन गए और जनवरी 1996 में एनटीआर के निधन के बाद पार्टी पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया लेकिन उन पर कई वर्षों तक पीठ में छुरा घोंपने वाले का ठप्पा लगा रहा। उन्होंने इसके साथ राष्ट्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गैर कांग्रेसी, गैर भाजपा दलों के संयुक्त मोर्चा बनाने में मदद की। उन्हें 1997 में प्रधानमंत्री के पद की पेशकश की गई थी लेकिन उन्होंने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह अपने को आंध्र प्रदेश के विकास के लिए समर्पित करना चाहते हैं।

मुख्यमंत्री पद
चंद्रबाबू नायडू ने मुख्यमंत्री के तौर पर अर्थव्यवस्था और शासन दोनों ही क्षेत्रों में सुधार किया। उन्होंने ई गवर्नेंस, ई सेवा और सिटीजंस चार्टर जैसे अग्रणी पहले किये। वह राज्य के समग्र विकास के लिए विजन-2020 नीति लेकर आये और उसे जोश के साथ क्रियान्वित किया। इसका यद्यपि मिश्रित परिणाम आया तथा ग्रामीण विकास को नजरंदाज करने के लिए उनकी आलोचना की गई। चंद्रबाबू नायडू ने मोतियों और बिरयानी के लिए मशहूर हैदराबाद को सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र के तौर पर परिवर्तित कर दिया जिससे माइक्रोसॉफ्ट, विप्रो, गूगल और कई अन्य कंपनियों को आकर्षित किया। उन्हें कई राजनीतिक तूफानों का भी सामना करना पड़ा जिसमें के चंद्रशेखर राव का तेदेपा से जाना और तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन शामिल है जिसका एकमात्र मांग राज्य का बंटवारा था। आंध्र प्रदेश में 2014 का विधानसभा चुनाव का परिणाम उनके पक्ष में आया और वे नये आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने।[1]

 

 

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