Home फिल्म जगत ‘किंग ऑफ मिर्जापुर’ बनने के घात-प्रतिघात की कहानी है ‘मिर्जापुर 2’….

‘किंग ऑफ मिर्जापुर’ बनने के घात-प्रतिघात की कहानी है ‘मिर्जापुर 2’….

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वेब सीरीज: मिर्जापुर 2 समीक्षा

स्टारकास्ट: पंकज त्रिपाठी, अली फजल, दिव्येंदु शर्मा, श्वेता त्रिपाठी, रसिका दुग्गल, विजय वर्मा

डायरेक्टर: गुरमीत सिंह और मिहिर देसाई

मिर्जापुर 2 (Mirzapur 2) का बेसब्री से इंतजार कर रहे लोगों का इंतजार कल नियत समय से कुछ घंटे पहले ही खत्म हो गया। प्राइम वीडियो ने गुरुवार रात नौ बजे के करीब रिलीज करके लोगों को सरप्राइज कर दिया। ‘मिर्जापुर 2’ कहानी में पहले सीजन की तरह घात-प्रतिघात खूब है और दिवाली से पहले ही इसमें गोली, बारूद और तमंचों की आतिशबाजी भी जमकर है। हालांकि, कहीं-कहीं खासकर पहले दो एपिसोड में कहानी थोड़ी स्लो लग सकती है पर ओवरऑल पहले सीजन के मुकाबले ज्यादा इन्टेन्स है। एक बात और, पहले सीजन के उलट ‘मिर्जापुर 2’ में महिलाएं सिर्फ सेक्स ऑब्जेक्ट नहीं हैं। इस पार्ट में महिलाओं का कैरेक्टर स्ट्रॉन्ग है। कालीन भैया यानी पंकज त्रिपाठी एक बार फिर अपने किरदार में कमाल कर रहे हैं। कालीन भैया के बेटे मुन्ना त्रिपाठी का किरदार निभा रहे दिव्येंदु शर्मा ने अक्खड़ और बिगड़ैल युवक के रूप में पहली सीरीज में जो उम्मीद जगाई थी, उसे मिर्जापुर 2 में भी बरकरार रखा है।

अब बात करते हैं कथानक की। इस बार कहानी पिछली बार से ज्यादा ट्विस्ट के साथ हमारे सामने आती है। ‘मिर्जापुर 2’ की कहानी केवल राजा के बारे में नहीं है बल्कि उनके सिपाहियों, रानियों और उनकी लॉयल्टी की भी है। कहानी पिछली बार की ही तरह काफी ग्रिपिंग भी हैं और समझने में आसान भी। हां, बीच में कुछ ऐसे सीन भी हैं, जिन्हें देखते हुए धैर्य की जरूरत होती है तो कुछ ऐसे सीन भी होंगे जिन्हें देखते हुए आपका मुंह खुला का खुला रह जाएगा। गुड्डू पंडित और गोलू गुप्ता, मुन्ना त्रिपाठी, कालीन भैया की बीवी बीना त्रिपाठी और शरद शुक्ला सभी मिर्जापुर की गद्दी पाने के लिए किसी पर भी घात करते दिखते हैं।

 

अली फजल उर्फ गुड्डू पंडित  ‘मिर्जापुर की गद्दी’ के साथ भाई (विक्रांत मेसी) और पत्नी की मौत का बदला लेने आए हैं और इसमें उनका साथ देती है श्वेता त्रिपाठी यानी गोलू। गुड्डू पूरी सीरीज में घायल हैं और कदम-कदम पर गोलू उनका साथ दे रही हैं। जहां ये दोनों अपने बदले की तैयारी में लगे हैं, वहीं पिछली बार की ही तरह दिव्येंदु शर्मा यानी मुन्ना त्रिपाठी खुद को ‘योग्य’ साबित करने में जुटे हुए हैं। सीरीज में जान डालने वाले कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) एक मजबूर पिता-पति के रूप में ही नजर आ रहे हैं। जहां ‘बदले’ और खुद को ‘योग्य’ साबित करने की होड़ में ये पुराने खिलाड़ी एक-दूसरे से टक्कर ले रहे हैं, वहीं नई एंट्री रतिशंकर शुक्ला के बेटे शरद शुक्ला की हुई है, जो मिर्जापुर को अपना बनाकर अपने पिता का सपना पूरा करना चाहते हैं। शरद का किरदार अंजुम शर्मा निभा रहे हैं। ‘मिर्जापुर 1’ की कहानी मिर्जापुर और जौनपुर तक सीमित थी, लेकिन इस बार उसका विस्तार लखनऊ और बिहार के सिवान तक हुआ है। पॉलिटिक्स के तड़के के साथ कहानी में कुछ ऐसे नए ट्विस्ट और टर्न्स आएंगे, जिन्हें देखकर आप कहानी को रीयल लाइफ से जोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे।

मिर्जापुर 2′ की एक चीज, जो इसे पिछली बार से अलग बनाती है, वह है ‘स्त्री शक्ति’। पिछली बार जहां दर्शकों को स्ट्रॉन्ग फीमेल कैरेक्टर्स की कमी खली थी, वहीं इस बार शो के मेकर्स ने इस बात का पूरी तरह से ख्याल रखा है। फीमेल कैरेक्टर्स के साथ खूब स्क्रीनटाइम शेयर किया गया है। कहानी में सभी महिलाएं फिर चाहे वह गोलू गुप्ता का किरदार निभा रहीं श्वेता त्रिपाठी हों, बीना के किरदार में रसिका दुग्गल हों, डिंपी के किरदार में हर्षिता गौर हों या माधुरी के किरदार में ईशा तलवार, सभी पिछली बार से ज्यादा सशक्त हैं। गोलू ‘रिवॉल्वर रानी’ के अवतार में नजर आएंगी, तो त्रिपाठी खानदान की बहू बीना भी बेबस और लाचार नहीं बल्कि आंखों में आंखें डालकर बाबूजी को जवाब देती हैं।

कहानी
गुड्डू पंडित और गोलू अपने कनेक्शन से बिहार के सिवान के दद्दा त्यागी के बेटे भरत त्यागी से अफीम के बिजनेस के लिए बात करते हैं और उसे मना लेते हैं। दूसरी तरफ, रतिशंकर शुक्ला का बेटा शरद शुक्ला अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए कालीन भैया और मुन्ना त्रिपाठी के साथ आ जाता है। शरद को गुड्डू से अपनी पिता की मौत का बदला तो लेना ही है, लेकिन त्रिपाठियों से मिर्जापुर भी छीनना है। कालीन भैया व्यापारी और बाहुबली से आगे बढ़ते हुए राजनेता बनने की चाह में अपने बेटे मुन्ना त्रिपाठी की शादी मुख्यमंत्री की विधवा बेटी माधुरी से शादी करा देते हैं। कालीन भैया की पत्नी बीना त्रिपाठी एक लड़के को जन्म देती है। उस बच्चे का पिता कौन है, यह सस्पेंस है।

गुड्डू के पिता अपराध की आंच में सुलगते और बर्बाद होते मिर्जापुर को बचाने तथा अपने बेटे बाबलू और बहू स्वीटी को न्याय दिलवाने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। इसमें उनका साथ देते हैं आईपीएस अधिकारी मौर्या। अंत आते-आते एक बार फिर मिर्जापुर की गद्दी की लड़ाई कालीन भैया और गुड्डू पंडित के बीच में सिमट जाती है। बीना अपने पति और सौतेले बेटे मुन्ना के खिलाफ गुड्डू और गोलू का चुपके-चुपके साथ देती हैं। इसमें उनका क्या स्वार्थ है और मुन्ना त्रिपाठी और शरद शुक्ला का क्या होता है, इन सवालों का जवाब जानने के लिए आपको मिर्जापुर 2 देखना पड़ेगा। कहानी का क्लाइमेक्स बताकर हम आपका मजा किरकिरा नहीं करना चाहते हैं।

सीरीज के अमेजिंग फैक्टर्स

सीरीज का सबसे अमेजिंग और सिक्रेटिव कैरेक्टर रॉबिन उर्फ राधेश्याम अग्रवाल हैं। राधेश्याम यूं तो ऑलराउंडर हैं, लेकिन पेशे से इन्वेस्टमेंट का बिजनेस देखते हैं जो गुड्डू पंडित की बहन डिंपी से प्यार करते हैं और उनसे शादी करना चाहते हैं। यह अकेला ऐसा करैक्टर है, जो इस पूरी ब्लैक ऐंड वाइट सीरीज को कलरफुल बनाए हुए है। रॉबिन का किरदार निभा रहे प्रियांशु पैन्यूली अपने किरदार के साथ जस्टिस करते हुए नजर आते हैं और पूरे सीजन में इनकी ये सिक्रेटिव पर्सनेलिटी दर्शकों को बांधकर रखती है। सीरीज के आखिर में मुन्ना त्रिपाठी का पत्नी के लिए प्यार और सपोर्ट दिल जीत लेता है। मुन्ना का, ‘आदमी को ज़िन्दगी में क्या चाहिए? एक साथी और इज्जत’ जैसे डॉयल\ग उसके केरैक्टर में जान डाल देता है।

कौन और क्यों न देखें मिर्जापुर?
अगर आप लाइट सीरीज देखना पसंद करते हैं तो हो सकता है यह आपको पसंद न आए। शुरुआती दो एपिसोड में स्क्रीन पर दिखाए गए खून-खराबे से हो सकता है कि आपका मन बैठ जाए।
भाषा के लिहाज से देखा जाए तो मिर्जापुर-1 की तरह ही इसमें भी भरपूर गालियां हैं। अगर आप उत्तर प्रदेश या बिहार से बाहर के हैं या किसी नॉन-हिंदी बेल्ट क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं तो कहीं-कही भाषा समझने में आपको थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। अगर आप सिनेमा में सस्पेंस पसंद नहीं करते हैं तो भी यह सीरीज आपके लिए नहीं है।

कहां कमजोर है मिर्जापुर-2

शुरुआती दो एपिसोड की कहानी इतनी स्लो चलती है कि एक पल को यह आपको बोर कर सकती है। आपको खुद को कम-से-कम दो एपिसोड तक बांधकर रखना पड़ता है। हां, इसके बाद स्टोरी में जैसे-जैसे नए कैरेक्टर आते जाते हैं, स्टोरी उतनी ही पावरफुल नजर आने लगती है। दद्दा त्यागी की स्टोरीलाइन शुरुआत में जरूर आपको अमेज करती है, लेकिन अंत तक उनका पार्ट खत्म हो जाता है। दद्दा का किरदार नाममात्र ही नजर आता है। हो सकता है यह कोशिश बिहार फैक्टर को जोड़ने के लिए की गई हो।

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