मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा वर्ष 2012 से ग्रामीण गरीब परिवारों की महिलाओं के सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण के लिये स्व-सहायता समूह बनाकर उनके संस्थागत विकास तथा आजीविका के संवहनीय अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। मिशन द्वारा प्रदेश में अब-तक समस्त जिलों के 43 हजार 781 ग्रामों में 3,08,676 स्व-सहायता समूहों का गठन किया गया है। इन समूहों से 34 लाख 78 हजार परिवारों को जोड़ा जा चुका है।
मिशन का उद्देश्य ग्रामीण निर्धन परिवारों की महिलाओं को स्व-सहायता समूह के रूप में संगठित कर उन्हें सशक्त बनाने हेतु प्रशिक्षित कर सहयोगात्मक मार्गदर्शन करना एवं समूह सदस्यों के परिवारों को रूचि अनुसार उपयोगी स्व-रोजगार एवं कौशल आधारित आजीविका के अवसर उपलब्ध कराना है, ताकि मजबूत बुनियादी संस्थाओं के माध्यम से गरीवों की आजीविका को स्थायी आधार पर बेहतर बनाया जा सके।
ग्रामीण क्षेत्र में निवासरत निर्धन श्रेणी के परिवारों के इन समूहों को मिशन द्वारा चक्रीय निधि, सामुदायिक निवेश निधि आपदा कोष तथा बैंक लिंकेज के रूप में वित्तीय सहयोग किया जा रहा है। इस राशि से उनकी छोटी बड़ी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है, जिससे वह साहुकारों के कर्जजाल से बच जाते हैं।
मिशन द्वारा दिये जा रहे लगातार प्रशिक्षण, वित्तीय साक्षरता, वित्तीय सहयोग एवं सहयोगात्मक मार्गदर्शन से लाखों परिवारों की निर्धनता दूर हो गई है। प्रशिक्षणों का ही परिणाम है कि समूह सदस्यों के अन्दर गरीबी से उबरने की दृढ़ इच्छा शक्ति उत्पन्न हुई। परिणाम स्वरूप वह आगे बढ़कर पात्रता आनुसार अपने हक, अधिकार न केवल समझने लगे हैं बल्कि प्राप्त करने लगे हैं।
मिशन के प्रयासों से ग्रामीण निर्धन परिवारों के जीवन में अनेकों सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं। इनमें सामाजिक, आर्थिक सशक्तिकरण प्रमुख रूप से देखा जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्र में निर्धन परिवारों में महिलाओं की आय मूलक गतिविधियाँ करने के अवसर नहीं मिलते थे, उनका जीवन केवल चूल्हे-चौके व घर की चार दीवारी तक ही सीमित रह जाता था। घर के संचालन, आय-व्यय, क्रय-विक्रय आदि सहित अन्य मुद्दों पर निर्णय में पुरूषों का एकाधिकार था, यहाँ तक कि महिलाओं के आने-जाने, उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, खाने-पीने आदि जैसे व्यक्तिगत मुद्दों पर भी उनकी राय लेना मुनासिव नहीं समझा जाता था, बल्कि सब कुछ एकतरफा उनपर थोप दिया जाता था। कभी परंपरा तो कभी संस्कार मर्यादा के नाम पर महिलाओं के पास इन्हें ढोने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता था। उनकी अपनी कोई पहचान इच्छा-अनिच्छा, सहमति-असहमति नहीं होती थी। घर के संचालन एवं खेती वाड़ी तथा व्यवसायिक कार्यो में महिलाएँ तो जैसे सपनों की बातें हों।
मिशन के समूहों से जुड़कर महिलाओं को जो अवसर मिला उससे उन्होंने अपनी कावलियत को सिद्ध कर अपनी अलग पहचान बनाई। आज प्रदेश में समूहों से जुड़े 12 लाख 31 हजार से अधिक परिवार कृषि एवं पषुपालन आधारित आजीविका गतिविधियों से जुड़े हैं जबकि 3 लाख 85 हजार से अधिक परिवार गैर कृषि आधारित लघु उद्यम आजीविका गतिविधियों से जुड़कर काम कर रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका गतिविधियों को और सुदृढ़ करने के लिये एक वर्ष में रू.1400 करोड़ बैंक ऋण समूहों को उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है। साथ ही मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ विक्रेता योजना के अंतर्गत भी 10 हजार रूपये तक का ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। यह राशि मिलने से समूहों की गतिविधियों में गति बढ़ गई है।
गैर आय मूलक नगण्य घरेलू कामों के अलावा अब समूह सदस्य महिलाएँ अपने परिवार के साथ-साथ गांव एवं सामुदायिक विकास के महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय देती हैं। उनके अन्दर आई जागरूकता के कारण न केवल घर में बल्कि गांव व क्षेत्र में भी उनके सम्मान में बढ़ोतरी है। समूहों, ग्राम संगठनों, संकुल स्तरीय संघो की नियमित बैठकों में भागीदारी करने से उनकी समझ व सक्रियता बढ़ गई है उनकी कार्यशैली में निखार एवं आत्म विष्वास में बढ़ोतरी हुई है। समूहों में सिखाये गये 13 सूत्रों ने उन्हें मूल मंत्र दे दिया जिससे वे निरंतर आगे बढती जा रही हैं। समूहों की बैठक में नियमित बचत लेन-देन, ऋण वापसी तथा दस्तावेजी करण, बैंकों में आने-जाने से उनके अंदर वित्तीय साक्षरता, व्यवसायिक प्रबंधन की क्षमता विकसित हो गई। इसी का परिणाम है कि घूंघट में रहने वाली शर्मीले स्वभाव की ग्रामीण महिला आज अपनी यह पहचान बदलकर बड़ी-बड़ी सभाओं में मंच से लाखों की भीड के सामने निर्भीक होकर अपने विचार व्यक्त करती है।
इस पूरे काम में एक खास बात यह है कि महिलाओं का अनपढ होना बाधक नहीं बना और वे सदियों पुरानी रूढियों को तोड़कर अपने गुमनाम जीवन से उठकर समुदाय में महत्वपूर्ण भूमिका में पहुंचने में कामयाब हो गई। आज उनकी पहचान केवल किसी की पत्नी, बहू या मां के रूप में ही नहीं है बल्कि अब वे समूहों संगठनों के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों के रूप में जानी जाती हैं। घरों में अब नजारे उल्टे हैं, सास, ससुर पति सहित सभी एक स्वर में इनका नेतृत्व सहज स्वीकार करते देखे जा सकते हैं। इन्होंने इस सत्ता परिवर्तन के लिये कोई हिंसक लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि अपनी काबलियत के दम पर सत्ता स्वीकार करने के लिये अपने परिजनों को तथा समुदाय को मजबूर कर दिया।
आज पत्नी से पूछकर पति बाहर जाता है घर में फसल, पढाई लिखाई, खरीद बिक्री, आदि निर्णय महिलाओं की राय पर ही लिये जाते हैं।
सामुदायिक विकास के क्षेत्र में भी महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पहले की तुलना में ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ना, पात्रता अनुसार स्वास्थ्य, पोषण, षिक्षा आदि के व्यक्तिगत एवं सामुदायिक मुद्दों पर भी जबरदस्त सकारात्मक परिवर्तन देखा जा सकता है। घर-घर में पोषण वाटिका लगाकर अपना, अपने परिवार का तथा अपने गांव में कुपोषण दूर करने के प्रयास देखे जा सकते हैं।
समूह सदस्यों के अन्य व्यवहार परिवर्तनों में एक अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन है नगद रहित व्यवहार, समूहों का समस्त लैन-दैन चैक के माध्यम से ही होता है या फिर बैंक सखियों द्वारा ई-ट्रांजिक्शन भी कराया जाता है। इस कारण आर्थिक धोखाधड़ी की संभावनाएँ कम हो गई हैं।
परंपरागत आय के साधन कृषि-पशुपालन के साथ-साथ अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिये सिलाई, दुकान, साबुन, अगरबत्ती निर्माण, आदि सहित 103 प्रकार की लघु उद्यम गतिविधियां रूचि अनुसार की जा रही हैं जिस कारण संवहनीय आजीविका के अवसर मिलने से इनकी आय में उत्तरोत्तर वृद्धि निरंतर हो रही है। प्रदेश में 2 लाख से अधिक महिलाएँ ऐसी हैं जो न्यूनतम 10 हजार रू. मासिक आय अर्जित कर रही हैं।
समूहों के माध्यम से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर मिलने से जो नई पहचान मिली उसकी वजह से विभिन्न राजनैतिक पदों पर भी समूह सदस्य निर्वाचित हुई हैं। पंच-सरपंच से लेकर जपनद जिला पंचायत सदस्य, अध्यक्ष उपाध्यक्ष विधायक व राज्य सभा सदस्य जैसे पदों तक भी पहुंची हैं। इसके अलावा विभिन्न समितियों में भी महत्वपूर्ण पद मिले हैं।
ग्रामीण क्षेत्र में घूंघट की ओट में चूल्हे चौके तक सीमित रहकर गुमनाम जिंदगी जीने वाली महिलाएँ अपने परिवार गांव, जिले की पहचान व शान बन गईं।
समुदाय के बीच समूह की अवधारणा के प्रचार-प्रसार, क्षमता वर्धन, बैंक संयोजन, समूहों की आय अर्जन गतिविधियों में सहयोग आदि कार्य के लिये समूह सदस्यों में से ही सामुदायिक स्त्रोत व्यक्तियों का चिन्हांकन एवं प्रशिक्षण किया गया। सामुदायिक स्त्रोत व्यक्ति सामुदायिक संस्थाओं के स्थाई रूप से सषक्तिकरण में सहभागी बने, साथ ही इस कार्य से उन्हें अतिरिक्त आय भी प्राप्त हो रही है।
मिशन द्वारा लगभग 6000 महिलाओं को कम लागत कृषि एवं जैविक खेती पर प्रशिक्षित किया गया। इन्होंने मास्टर कृषि सी.आर.पी. के रूप में न केवल अपने घर, गांव जिला प्रदेश, बल्कि अन्य राज्यों जैसे-हरियाणा, उत्तरप्रदेश व पंजाब में भी सेवाएँ देकर अपनी अलग पहचान बनाई है। सामाजिक सषक्तिकरण के साथ-साथ आर्थिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी महिलाओं ने नये आयाम स्थापित किये हैं। समूहों से जुड़े कई ऐसे परिवार भी हैं जिनकी मासिक आय 50 हजार रूपये तक है। लाखों की संख्या में महिलाओं ने पुराने जीर्ण-शीर्ण घरों की जगह अपने पक्के मकान, दुकान आदि बनवा लिये, कृषि भूमि खरीदी है तथा साहूकारों के कर्ज जाल से मुक्ति पाकर नये जीवन की शुरूआत की है। बदलाव की नजीर देखें तो अकेले अजीराजपुर जिले के उद्यगढ़ क्षेत्र में 19 गांवों के 26 समूहों के 76 सदस्यों ने 26 लाख से अधिक रूपये से गिरबी रखी 176 एकड़ जमीन साहूकारों के कर्जे से वर्ष 2019 में मुक्त कराई। ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण विभिन्न जिलों में हैं। समूह सदस्यों की आय में वृद्धि होने से आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होने पर उन्होंने स्वयं की अपूर्ण पढाई फिर से शुरू कर व्यवसायिक कोर्स जैसे बी.एस.डब्ल्यू. एम.एस.डब्ल्यू. भी किया है। साथ ही बच्चों को अच्छे स्कूल में पढा रहे हैं, दो पहिया, चारपहिया वाहन, कृषि यंत्र आदि खरीदे हंै।
स्वयं का आर्थिक सामाजिक सशक्तिकरण करने के साथ-साथ अपने क्षेत्र में बाल विवाह रोकना, घरेलू हिंसा के विरूद्ध आवाज उठाना, नषा मुक्ति कराना, सामुदायिक विकास के कार्यो की निगरानी, गांव के बेरोजगार युवक युवतियों को रूचि अनुसार रोजगार, स्व-रोजगार प्रशिक्षण दिलाने जैसे काम विभिन्न उप-समितियों के माध्यम से महिलाएँ कर रही हैं। स्व-सहायता समूहों में मिले अवसर का पूरा लाभ उठाते हुए अपनी क्षमता के अनुसार काम करके प्रतिभा प्रदर्शन से मिली अलग पहचान की बदौलत ही महिलाओं ने ग्रामीण क्षेत्र में परिवारिक एवं सामुदायिक सत्ता पर अपना वर्चस्व कायम किया है, जो कि महिलाओं के आर्थिक एवं सामाजिक सषक्तिकरण के जीवंत उदाहरण हैं।